बेटियां जान हैं
वर्षा आर्या
उम्र - 13 वर्ष
कपकोट, उत्तराखंड
खुशियों जहान होती हैं बेटियां
सपनों की अरमान हैं बेटियां
एक छोटी से मुस्कान होती हैं बेटियां
धरती पर महान होती हैं बेटियां
फिर क्यों लोग बोझ समझते हैं?
जन्म लेने से क्यों रोकते हैं?
क्या जीने का इन्हें अधिकार भी नहीं?
जिनसे है यह संसार सारा
बस दुनिया में लाकर तो देखो
जीने का बहाना ढूंढ लेंगी
इन्हें एक बार अपना कर तो देखो
खुशियों के ये ख़ज़ाने ढूंढ लेंगी
मेरे सपने
सिमरन सहनी
मुजफ्फरपुर, बिहार
उड़ने दो मुझे क्यों रोकते हो?
मैं भी तो उड़ना चाहती हूं
अपनी पहचान बनाना चाहती हूं
नई-नई बुलंदियों को छूना चाहती हूं
क्यों मुझे सपने देखने नहीं देते हो?
देखने से पहले ही उसको तोड़ देते हो?
हमेशा मैं ही क्यों रुकूँ?
सबके सामने क्यों झुकूं?
क्यों बिना गलती के ताने मैं सुनूं?
क्यों समाज के डर से हमेशा जियूं?
कभी तो कोई मेरी भी सुनता,
कभी तो कोई यह भी कहता,
क्या है तेरे मन में?
काश ! कभी ऐसा भी होता
मेरे भी होते सपने पूरे,
न चुकानी पड़ती कोई कीमत इसकी,
मेरे इन सपनों और उड़ान की
(चरखा फीचर)
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