कहते हैं पुलिस में जिसका ज़मीर ज़िन्दा है, वो ही देश और समाज को कुछ दे सकता है. जिसके पास जोश, जूनून और जज़्बात हो वही समाज के लिए कुछ कर सकता है और उसी का इस्तकबाल होता है. आज हम जिस जाँबाज के जज़्बे, जुनून और जमीर की बात करने जा रहे हैं उसके कंधे पर चमकते बे-दाग़ उजले सितारे उसकी जिंदगी और ज़िंदादिली की कहानी ब्यान कर रहे थे वो कोई और नहीं राजस्थान पुलिस का जाबांज सिपाही सब दिलों का अजीज अमित सिहाग था. जिसका काम,व्यवहार अपने आप में बोलता था. जिसके कारण ही उसकी पीठ पर पुलिस के बड़े अधिकारियों का हाथ धरा रहता था. जिसका ख़ुद का हाथ मजबूर और मज़लूम के सिर पर रखा हो तो उस पर सभी यकीन करते हैं. इस यकीन का नाम ही अमित सिहाग था. जिसके चाल, चलन, चरित्र पर पुलिस बेड़े को ही नहीं, पूरे शहर के आम नागरिक को भी नाज़ था और अब वो अमित सिहाग देखते ही देखते पलभर में सब से बोलना बतळावना छोड़ अचानक दुनिया से रुख़सत कर गया. पूरा शहर स्तब्ध है!
बिछड़ा कुछ इस अदा से
कि रुत ही बदल गई
इक शख़्स सारे शहर को
वीरान कर गया.
20 अगस्त 2024 की शाम ढले पुलिस इंस्पेक्टर अमित सिहाग ने पहले सांसें छोड़ी और फिर ऑंखें बंद कर ली. दिल ने धड़कना छोड़ दिया, मौत ने यही बहाना बनाया था. ”भाई जी” वर्ष 2008 में चूरू के शहर सुजानगढ़ से ख़ाकी पहन जोधपुर आये थे और अपने नाम, काम व व्यवहार के साथ "पुलिस बेड़े का इक़बाल बुलंद" कर गये. "ख़ाकी" छोड़ "तिरंगे" में लिपट वापस सुजानगढ़ लौट गये. उम्र भी 47 साल ही हुई थी और एक "इन्सान" को दुनिया से वहां बुला लिया गया जहाँ से कोई लौटकर वापस नहीं आता.
" अ ल वि दा "
अमित की पहली पोस्टिंग नागौर जिले में थी, वे 1999 बैच के पुलिस अधिकारी थे. वर्ष 2008 में जोधपुर ग्रामीण और फिर शहर में पुलिसिंग करते-करते यहीं रच बस गये थे. चूरू की पैदाइश, चूरू हरियाणा से लगता हुआ, चाल-चलन बोल-बतळावण का सारा कल्चर हरयाणवी. ऊपर से 'जाट का छोरा' सबसे 'खड़ी बोली' में ही मिलता था और इस खड़ी बोली में ही सबको अपना बना लेता था यो जाटों का छोरा. जबकि मारवाड़ का कल्चर एकदम बिल्कुल उलट था. जी, हुकुम सा, का सम्बोधन लगाकर बात करने वालों को तब अमित बड़ा अखरता था. लेकिन अमित जिससे भी मिला, उसने "भाई जी" के सम्बोधन से उससे अपना अटूट रिश्ता बना लिया था.
अमित जब जोधपुर आये तब के पुलिस बेड़े में ज़्यादातर अफ़सर 'राजपूत सरदार' ही हुआ करते थे. आधे से अधिक थानों में इन राजपूत सरदारों की ही तैनाती थी. ये वो ज़माना था, जब जाट-राजपूतों की आपस जबरदस्त भिड़ंत व प्रतिद्वंद्विता थी. थानेदार राजवीर सिंह और अमित सिहाग इस हरियाणवी अंदाज को लेकर अक्सर भिड़ लेते थे. सिर्फ हरयाणवी और मारवाड़ी 'लहजा' ही इसकी वजह होती थी. दोनों जवान लोंडे थे, इनके बुक्कड़ बड़े फड़फड़ाते थे. लेकिन बाद में जब दोनों में समझ बनी तो लगा कि इनसे घनिष्ठ मित्र कोई नही है. बेड़े में हर राजपूत सरदार के लिए अमित भाई से ज़्यादा थे. ये "भाई जी" रिश्तों की बानगी बन गया था अमित सिहाग.
जब अमित ने आँख बंद की और ख़बर शहर में फैली तो, हर तरफ़ चश्मतर थी. सबसे ज़्यादा राजपूत सरदार ही सदमे में थे. एडीसीपी वीरेंद्र सिंह राठौड़, नरपत सिंह राठौड़, एडिशनल एसपी चैन सिंह महेचा, रिटायर्ड एडिशनल एसपी जसवंत सिंह बालोत, कमल सिंह तंवर, खुद डिप्टी एसपी राजवीर सिंह चांपावत, देरावर सोढा सिंह की ऑंखें नम थी. इस ख़बर पर विश्वास करने को कोई तैयार नहीं था और आज भी सब सदमे से नहीं उबर पा रहे हैं.
जोधपुर शहर में सब इंस्पेक्टर अमित सिहाग को आते ही थाने चौकी नहीं मिले. तब के पुलिस इंस्पेक्टर कमल सिंह तंवर के साथ वाहन चोरों को पकड़ने के लिए इन्हें ज़िम्मा दिया गया था. दोनों ने कामयाबियों के बड़े डंके बजाये थे. अमित के जोश, जनून और जज़्बात के साथ पुलिसिंग, लगन, सूझबूझ व समझ देख सिटी एडिशनल एसपी राजेश सिंह और बाद में सवाई सिंह गोदारा ने अमित का हाथ पकड़ लिया. अफसरों के मिले अपार स्नेह व सहयोग ने अमित को पँख लगा दिये थे. आईपीएस भूपेंद्र कुमार दक, हरेंद्र महावर, दिनेश एम.एन. से आलोक श्रीवास्तव तक, सभी बड़े पुलिस अधिकारियों के दिल दिमाग़ से लेकर मोबाईल की फ़ोन बुक में "भाई जी" ने जगह बना ली थी.
अमित की पुलिसिंग अपने आप में एक अध्याय बन गई थी. वो पुलिस की एक एकेडमी बन गए थे. इस एकेडमी ने राजस्थान पुलिस को जमशेद ख़ान, शकील ख़ान , शमशेर ख़ान, गोकुल, उमेश यादव, क़मरुदीन, हिन्दू सिंह सोढा, चंचल शर्मा, श्रीराम और अनगिनत नाम दिए हैं जिन्होंने अमित से पुलिसिंग के गुर सीखते हुए ख़ुद को एकलव्य और अमित को "द्रोणाचार्य" मान लिया था. अमित ने ख़ुद भी नौकरी को दांतों से पकड़कर रखा और अपने से जुड़े हर बंदे को प्रेरणा दी कि पुलिस का इक़बाल बुलंद रहना ही रहना चाहिए और उसने साबित करके दिखा दिया कि अगर कोई अमित सिहाग की तरह ठान ले कि पुलिस का इस्तकबाल ऊँचा करना है तो उसे कोई रोक नहीं सकता. इसी भावना को आगे रखते हुए अमित ने राजस्थान पुलिस को अपना सौ प्रतिशत दिया.
हालांकि अमित चला गया. तिरंगे में लिपट कर भी गया. उसकी विदाई पर शोक, सदमा, श्रद्धांजलि, सलामी, गुलों का रीथ, मातमी धुन, गार्ड ऑफ़ ऑनर और नम ऑंखें सब थीं. अमित चिरनिद्रा में लीन हो गया. लेकिन वह अपने पुलिस के छोटे से कार्यकाल में राजस्थान ही नहीं पूरे देश की पुलिस को वो जज़्बा पकड़ा कर चला गया है जिसकी आज राजस्थान पुलिस को ही नहीं देश के पूरे पुलिस महकमे को इसकी जरूरत है. बहुत से ऐसे कारण है जिसके कारण पुलिस का मनोबल गिरा हुआ है अमित सोहाग ने अपनी सूझबूझ से उस गिरे हुए मनोबल को उठाया है. इसलिये ही पुलिस बेड़े में पिछले 50 वर्षों से इस तरह किसी को भी "आत्मीय श्रद्धांजलि" नसीब नहीं हुई.
जोधपुर शहर कह रहा है -
चल आँखें खोल अमित
तुझ से मिलने पूरा शहर उठकर आया है
किसी को यक़ीं आता नहीं है
तेरे जाने का
उन्हें लगता है उनके रोते रोते
तू उठेगा और कहेगा :
ग़म नहीं करना
गुलों की ज़िन्दगानी
मौत से कब ख़त्म होती है
मोहब्बत की कहानी
मौत से कब ख़त्म होती है
... और वो चले गये.
Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-राजस्थान: बिहार से लड़की खरीद कर की शादी, झगड़ा हुआ तो बांधकर बाइक से घसीटा
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