मोक्षदायिनी सप्तपुरियां कौन-कौन सी हैं?

मोक्षदायिनी सप्तपुरियां कौन-कौन सी हैं?

प्रेषित समय :18:14:26 PM / Tue, Jan 14th, 2025
Reporter : पलपल रिपोर्टर

सनातन धर्म में भारत के मुख्य धार्मिक सात नगरों को बहुत पवित्र और आस्था से परिपूर्ण बताया गया है. इन्हे धार्मिक सप्तपुरी भी कहा जाता है. भगवान कृष्ण , श्री राम , शिव और विष्णु से इन शहरों का सम्बन्ध है. यहा देवताओ ने कई लीलाए की है, इन सभी धार्मिक शहरो के नाम भारत के प्राचीन धर्म ग्रंथो में बड़े आदर के साथ लिए जाते है.
सप्तपुरी पुराणों में वर्णित सात मोक्षदायिका पुरियों को कहा गया है. इन पुरियों में 'काशी', 'कांची' (कांचीपुरम), 'माया' (हरिद्वार), 'अयोध्या', 'द्वारका', 'मथुरा' और 'अवंतिका' (उज्जयिनी) की गणना की गई है----
'काशी कांची चमायाख्यातवयोध्याद्वारवतयपि, मथुराऽवन्तिका चैताः सप्तपुर्योऽत्र मोक्षदाः'.
 'अयोध्या-मथुरामायाकाशीकांचीत्वन्तिका, 
 पुरी द्वारावतीचैव सप्तैते मोक्षदायिकाः.'
पुराणों के अनुसार इन सात पुरियों या तीर्थों को मोक्षदायक कहा गया है. इनका संक्षिप्त विवरण इस प्रकार है-

1. अयोध्या

अयोध्या उत्तर प्रदेश प्रान्त का एक शहर है. दशरथ अयोध्या के राजा थे. श्रीराम का जन्म यहीं हुआ था. राम की जन्म-भूमि अयोध्या उत्तर प्रदेश में सरयू नदी के दाएँ तट पर स्थित है. अयोध्या हिन्दुओं के प्राचीन और सात पवित्र तीर्थस्थलों में से एक है. अयोध्या को अथर्ववेद में ईश्वर का नगर बताया गया है और इसकी संपन्नता की तुलना स्वर्ग से की गई है.
रामायण के अनुसार अयोध्या की स्थापना मनु ने की थी. कई शताब्दियों तक यह नगर सूर्य वंश की राजधानी रहा. अयोध्या एक तीर्थ स्थान है और मूल रूप से मंदिरों का शहर है. यहाँ आज भी हिन्दू, बौद्ध, इस्लाम और जैन धर्म से जुड़े अवशेष देखे जा सकते हैं. जैन मत के अनुसार यहाँ आदिनाथ सहित पाँच तीर्थंकरों का जन्म हुआ था.

2. मथुरा

,पुराणों में मथुरा के गौरवमय इतिहास का विषद विवरण मिलता है. अनेक धर्मों से संबंधित होने के कारण मथुरा में बसने और रहने का महत्त्व क्रमश: बढ़ता रहा. ऐसी मान्यता थी कि यहाँ रहने से पाप रहित हो जाते हैं तथा इसमें रहने करने वालों को मोक्ष की प्राप्ति होती है.
वराह पुराण में कहा गया है कि इस नगरी में जो लोग शुध्द विचार से निवास करते हैं, वे मानव के रूप में साक्षात देवता हैं. श्राद्ध कर्म का विशेष फल मथुरा में प्राप्त होता है. मथुरा में श्राद्ध करने वालों के पूर्वजों को आध्यात्मिक मुक्ति मिलती है.उत्तानपाद के पुत्र ध्रुव ने मथुरा में तपस्या कर के नक्षत्रों में स्थान प्राप्त किया था.
पुराणों में मथुरा की महिमा का वर्णन है. पृथ्वी के यह पूछने पर कि मथुरा जैसे तीर्थ की महिमा क्या है? महावराह ने कहा था- "मुझे इस वसुंधरा में पाताल अथवा अंतरिक्ष से भी मथुरा अधिक प्रिय है. वराह पुराण में भी मथुरा के संदर्भ में उल्लेख मिलता है, यहाँ की भौगोलिक स्थिति का वर्णन मिलता है.यहाँ मथुरा की माप बीस योजन बतायी गयी है.
इस मंडल में मथुरा, गोकुल, वृन्दावन, गोवर्धन आदि नगर, ग्राम एवं मंदिर, तड़ाग, कुण्ड, वन एवं अनगणित तीर्थों के होने का विवरण मिलता है. इनका विस्तृत वर्णन पुराणों में मिलता है. गंगा के समान ही यमुना के गौरवमय महत्त्व का भी विशद विवरण किया गया है. पुराणों में वर्णित राजाओं के शासन एवं उनके वंशों का भी वर्णन प्राप्त होता है.

3. हरिद्वार
हरिद्वार उत्तराखंड में स्थित भारत के सात सबसे पवित्र तीर्थ स्थलों में एक है. भारत के पौराणिक ग्रंथों और उपनिषदों में हरिद्वार को मायापुरी कहा गया है. गंगा नदी के किनारे बसा हरिद्वार अर्थात हरि तक पहुंचने का द्वार है. हरिद्वार को धर्म की नगरी माना जाता है. सैकडों सालों से लोग मोक्ष की तलाश में इस पवित्र भूमि में आते रहे हैं.
इस शहर की पवित्र नदी गंगा में डुबकी लगाने और अपने पापों का नाश करने के लिए साल भर श्रद्धालुओं का आना जाना यहाँ लगा रहता है. गंगा नदी पहाड़ी इलाकों को पीछे छोड़ती हुई हरिद्वार से ही मैदानी क्षेत्र में प्रवेश करती है. उत्तराखंड क्षेत्र के चार प्रमुख तीर्थस्थलों का प्रवेश द्वार हरिद्वार ही है. संपूर्ण हरिद्वार में सिद्धपीठ, शक्तिपीठ और अनेक नए पुराने मंदिर बने हुए हैं.

4. काशी

वाराणसी, काशी अथवा बनारस भारत देश के उत्तर प्रदेश का एक प्राचीन और धार्मिक महत्ता रखने वाला शहर है. वाराणसी का पुराना नाम काशी है. वाराणसी विश्व का प्राचीनतम बसा हुआ शहर है. यह गंगा नदी किनारे बसा है और हज़ारों साल से उत्तर भारत का धार्मिक एवं सांस्कृतिक केन्द्र रहा है.
दो नदियों वरुणा और असि के मध्य बसा होने के कारण इसका नाम वाराणसी पडा. बनारस या वाराणसी का नाम पुराणों, रामायण, महाभारत जैसे अनेकानेक ग्रन्थों में मिलता है. संस्कृत पढने प्राचीन काल से ही लोग वाराणसी आया करते थे. वाराणसी के घरानों की हिन्दुस्तानी संगीत में अपनी ही शैली है.

5. कांचीपुरम

,कांचीपुरम तीर्थपुरी दक्षिण की काशी मानी जाती है, जो मद्रास से 45 मील की दूरी पर दक्षिण–पश्चिम में स्थित है. कांचीपुरम को कांची भी कहा जाता है. यह आधुनिक काल में कांचीवरम के नाम से भी प्रसिद्ध है. ऐसी अनुश्रुति है कि इस क्षेत्र में प्राचीन काल में ब्रह्मा जी ने देवी के दर्शन के लिये तप किया था.
मोक्षदायिनी सप्त पुरियों अयोध्या, मथुरा, द्वारका, माया(हरिद्वार), काशी और अवन्तिका (उज्जैन) में इसकी गणना की जाती है. कांची हरिहरात्मक पुरी है. इसके दो भाग शिवकांची और विष्णुकांची हैं. सम्भवत: कामाक्षी अम्मान मंदिर ही यहाँ का शक्तिपीठ है.

6. अवंतिका

उज्जयिनी का प्राचीनतम नाम अवन्तिका, अवन्ति नामक राजा के नाम पर था. इस जगह को पृथ्वी का नाभिदेश कहा गया है. महर्षि सान्दीपनि का आश्रम भी यहीं था.
उज्जयिनी महाराज विक्रमादित्य की राजधानी थी. भारतीय ज्योतिष शास्त्र में देशान्तर की शून्य रेखा उज्जयिनी से प्रारम्भ हुई मानी जाती है. इसे कालिदास की नगरी के नाम से भी जाना जाता है. यहाँ हर 12 वर्ष पर सिंहस्थ कुंभ मेला लगता है. भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में एक महाकाल इस नगरी में स्थित है.

7. द्वारका

द्वारका का प्राचीन नाम है. पौराणिक कथाओं के अनुसार महाराजा रैवतक के समुद्र में कुश बिछाकर यज्ञ करने के कारण ही इस नगरी का नाम कुशस्थली हुआ था.
बाद में त्रिविकम भगवान ने कुश नामक दानव का वध भी यहीं किया था. त्रिविक्रम का मंदिर द्वारका में रणछोड़जी के मंदिर के निकट है. ऐसा जान पड़ता है कि महाराज रैवतक (बलराम की पत्नी रेवती के पिता) ने प्रथम बार, समुद्र में से कुछ भूमि बाहर निकाल कर यह नगरी बसाई होगी.
हरिवंश पुराण के अनुसार कुशस्थली उस प्रदेश का नाम था जहां यादवों ने द्वारका बसाई थी. विष्णु पुराण के अनुसार,अर्थात् आनर्त के रेवत नामक पुत्र हुआ जिसने कुशस्थली नामक पुरी में रह कर आनर्त पर राज्य किया.
विष्णु पुराण से सूचित होता है कि प्राचीन कुशावती के स्थान पर ही श्रीकृष्ण ने द्वारका बसाई थी-
'कुशस्थली या तव भूप रम्या पुरी पुराभूदमरावतीव, सा द्वारका संप्रति तत्र चास्ते स केशवांशो बलदेवनामा'.

Astro nirmal

Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-