बसंत पंचमी को 1000 ई. को मालवा में अवतरित भोजदेव, राजा भोज परमार या पंवार वंश के नवें राजा थे. उनके जीवन का अधिकांश युद्धक्षेत्र में बीता तथापि उन्होंने अपने राज्य की उन्नति में किसी प्रकार की बाधा न उत्पन्न होने दी. स्तुत्य, सांस्कृतिक गौरव के जो स्मारक हमारे पास हैं, उनमें से अधिकांश राजाओं के राजा भोज की देन हैं. चाहे विश्वप्रसिद्ध भोजपुर मंदिर हो या विश्वभर के शिवभक्तों के श्रद्धा के केंद्र उज्जैन स्थित महाकालेश्वर मंदिर, धार की भोजशाला हो या भोपाल का विशाल तालाब- ये सभी राजा भोज के सृजनशील व्यक्तित्व की अनुपम भेंट हैं. राजा भोज नदियों को चैनलाइज या जोड़ने के कार्य के लिए भी पहचाने जाते हैं. आज उनके द्वारा खोदी गई नहरें और जोड़ी गई नदियों के कारण ही नदियों के इस पानी का लाभ आम लोगों को मिल रहा है. भोपाल शहर इसका बड़ा तालाब इसका उदाहरण है. वो कालजई सोच आज देश के लिए पावन धारा बन गई. उसी दिशा में सरकार नदी जोड़ो अभियान को प्रमुखता से ले रही है. उन्होंने जहां भोज नगरी (वर्तमान भोपाल) की स्थापना की वहीं धार, उज्जैन और विदिशा जैसी प्रसिद्ध नगरियों को नया स्वरूप दिया. उन्होंने केदारनाथ, रामेश्वरम, सोमनाथ, मुण्डीर आदि मंदिर भी बनवाए, जो हमारी समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर हैं. समृद्ध संवाहक राजा भोज ने शिव मंदिरों के साथ ही सरस्वती मंदिरों का भी निर्माण किया. राजा भोज ने धार, मांडव तथा उज्जैन में @सरस्वतीकण्ठभरण@ नामक भवन बनवाए थे जिसमें धार में @सरस्वती मंदिर@ सर्वाधिक महत्वपूर्ण है. पहले इस मंदिर में मां वाग्देवी की मूर्ति होती थी. मुगलकाल में मंदिर परिसर में मस्जिद बना देने के कारण यह मूर्ति अब ब्रिटेन के म्यूजियम में रखी है. गुजरात में जब महमूद गजनवी (971-1030 ई.) ने सोमनाथ का ध्वंस किया तो यह दु:खद समाचार शैव भक्त राजा भोज तक पहुंचने में कुछ सप्ताह लग गए. उन्होंने इस घटना से क्षुब्द होकर सन् 1026 में गजनवी पर हमला किया और वह क्रूर हमलावर सिंध के रेगिस्तान में भाग गया. तब राजा भोज ने हिंदू राजाओं की संयुक्त सेना एकत्रित करके गजनवी के पुत्र सालार मसूद को बहराइच के पास एक मास के युद्ध में मारकर सोमनाथ का बदला लिया और फिर 1026-1054 की अवधि के बीच भोपाल से 32 किमी पर स्थित भोजपुर शिव मंदिर का निर्माण करके मालवा में सोमनाथ की स्थापना कर दी. परमारवंशीय राजाओं ने मालवा के एक नगर धार को अपनी राजधानी बनाकर 8वीं शताब्दी से लेकर 14वीं शताब्दी के पूर्वार्ध तक राज्य किया था. उनके ही वंश में हुए परमार वंश के सबसे महान अधिपति महाराजा भोज ने धार में 1000 से 1055 ईसवीं तक शासन किया. वह बड़े दानी और धर्मात्मा थे. उनके बारे में प्रसिद्ध था कि वह ऐसा न्याय करते कि दूध और पानी अलग-अलग हो जाए. अपने शासन काल के अंतिम वर्षों में भोज परमार को पराजय का अपयश भोगना पड़ा. गुजरात के चालुक्य राजा तथा चेदि नरेश की संयुक्त सेनाओं ने लगभग 1060 ई. में भोज परमार को पराजित कर दिया. इसके बाद ही उसकी मृत्यु हो गई और भारत के वीर महाराजा का अस्त हुआ. महाराजा भोज के साम्राज्य के अंतर्गत मालवा, कोंकण, खानदेश, भिलसा, डूंगरपुर, बांसवाड़ा, चित्तौड़ एवं गोदावरी घाटी का कुछ भाग शामिल था. राजा भोज को उनके कार्यों के कारण उन्हें @नवसाहसाक@ अर्थात् @नव विक्रमादित्य@ भी कहा जाता था. महाराजा भोज इतिहास प्रसिद्ध मुंजराज के भतीजे व सिंधुराज के पुत्र थे. उनकी पत्नी का नाम लीलावती था. राजा भोज खुद एक विद्वान होने के साथ-साथ काव्यशास्त्र और व्याकरण के बड़े जानकार थे और उन्होंने बहुत सारी किताबें लिखी थीं. मान्यता अनुसार भोज ने 64 प्रकार की सिद्धियां प्राप्त की थीं तथा उन्होंने सभी विषयों पर 84 ग्रंथ लिखे. प्राप्त उल्लेखों के अनुसार भोज की राजसभा में 500 विद्वान थे. इन विद्वानों में नौ (नौरत्न) का नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं. महाराजा भोज ने अपने ग्रंथों में विमान, बड़े जहाज बनाने की विधि का विस्तृत वर्णन किया है. इसके अतिरिक्त उन्होंने रोबोट तकनीक पर भी काम किया था. ऐसे दूरदर्शी साहसी, लेखक और वैज्ञानिक थे महाराजा धिराज राजा भोज