मैं हूं मजदूर...

“ इंकलाब जिंदाबाद! हम अपना हक मांगते ना किसी से भीख मांगते. आवाज दो हम एक हैं. दुनिया के मजदूरों, एक हो जाओ! जैसे सशक्त नारे. और मेहनतकशों, एकजुट हो जाओ! सारी सड़कों पर गूँज उठा. ”

वितृष्णा, मैं हूं मजदूर, मजदूर ही रहूंगा और मजदूर ही मरूंगा यह करुणा आज भी झंझोर कर शर्मसार करती है. ग्लानि इस मर्ज का मर्म आखिर क्यों नहीं ढूंढ पाए. समझ से परे है. साधन, संसाधन और संपन्नता में कोई कमी नहीं है. फिर मजदूरों का ये हाल कैसा? क्यों हमारा श्रम रोटी-कपडा-मकान और कमाई-पढाई-दवाई की झंझावात में उलझता है? क्या मजदूर जैसा पैदा होता है वैसा ही मर जाए? हरगिज़ भी नहीं. मजदूरों को उनका वाजिब हक और अधिकार मिलना चाहिए, जिसके वह सच्चे हकदार हैं. अभिलाषा समृद्ध श्रम नीति सुदृढ़ राष्ट्र क्रांति का अनुष्ठान करेगी. कर्मवीरता में राष्ट्र का विकास और जन-जन का कल्याण निहित है. आईए हम सब मिलकर मैं मजदूर हूं, मैं मजबूत हूं के श्रमोमय से  राष्ट्रोदय की ओर आगे बढ़े.

कर्मपथ पर श्रम लथपथ

अगर हम बात करें तो मानव शक्ति, दिमागी कार्य, शारीरिक बल और प्रयास करने वाला. काम को मेहनत के द्वारा अपनी श्रम शक्ति को बेचें, उसी का नाम मजदूर है. मजदूर ही देश के विकास की रीड की हड्डी. मजदूर के पसीने से मूल्क लहलहाता है. सही मायनों में कहे तो मजदूर ही भाग्य विधाता है. अलबत्ता भाग्य विधाता ही अपने भाग्य को खोज रहा है? मजदूर आज मजबूर बनकर कर्मपथ पर चलकर श्रम लथपथ हो रहा है. इसके कारण और कारक किसे माने सरकारें, नियत, नीति, नेतृत्व, लालफीताशाही या अफसरशाही को. जो खोजे नहीं मिल रहा है. मिल जाता तो हमारे श्रमवीरों की हालतें ऐसी नहीं होती. बावजूद खोज खबर लेने की फ्रिक किसी को नहीं है?

मेहनतकशों, एकजुट हो जाओ

दौर में 1 मई अर्थात मई दिवस, जिसे श्रमिक दिवस या अंतर्राष्ट्रीय श्रमिक दिवस भी कहा जाता है, वह दिन है जो श्रमिकों और श्रमिक आंदोलन द्वारा किए गए संघर्षों और उपलब्धियों को याद करता है. इंकलाब जिंदाबाद! हम अपना हक मांगते ना किसी से भीख मांगते. आवाज दो हम एक हैं. दुनिया के मजदूरों, एक हो जाओ! जैसे सशक्त नारे. और मेहनतकशों, एकजुट हो जाओ! सारी सड़कों पर गूँज उठा. मजदूर दिवस दुनिया भर में श्रमिकों के प्रयासों का सम्मान करने और उन्हें शोषण से बचाने के लिए मनाया जाता है.

कानूनी प्रावधान

दरअसल, अभिरक्षा में कारखाना अधिनियम, 1948, औद्योगिक संघर्ष अधिनियम, 1947, भारतीय श्रम संघ अधिनियम, 1926, भृति-भुगतान अधिनियम, 1936, श्रमजीवी क्षतिपूर्ति अधिनियम, 1923 इत्यादि उद्योग तथा श्रम सम्बन्धी विधान की श्रेणी में आते हैं. हमारे संविधान में मजदूर को सम्मान जनक काम और मजदूरी देने के साथ-साथ कानूनी संरक्षण दिया है. काम का अधिकार और पूरी मजदूरी देने का प्रावधान कर शोषण से बचाने के लिए अलग से ही श्रम विधि का गठन कर शोषण कर्ता को दंड का प्रावधान भी किया गया है. अब कोई भी नियोजित ठेकेदार, कारखाना मालिक मजदूरों का शोषण नहीं कर सकता है. जो उनकी नोटिस बोर्ड तक ही सीमित दिखाई पड़ता है.

श्रममेय जयते! का यशोगान

बाकायदा, अर्धकुशल-अकुशल, कुशल-उच्च कुशल, दैनिक वेतन भोगी- संविदा कर्मी, अस्थाई-स्थाई, आउटसोर्सिंग- ठेकेदारी के फेर में अल्प वेतन और नियमितीकरण की भेंट चढ़ना हमारे मजदूरों की फितरत बन गई है. वह जैसा था, आज वैसा ही है, ये वाजिब नहीं हे. वह सामान्य कार्य-सम्मान वेतन. सम्मान सुरक्षा, सुविधाएं और न्याय की मांग करते-करते थक गया. धरना, प्रर्दशन, आंदोलनों और रैलियों में इनकी ऊर्जा नष्ट हो गई. बजाए कोई सुध ले. एक मजदूर, मजबूत भार होकर भी  मजबूर हो गया. कमशकम इन्हें जियो और जीने दो का अधिकार तो मिलना चाहिए, क्योंकि श्रमशक्ति ही देश की शक्ति है. तभी श्रममेय जयते! का यशोगान जन- गण में होगा. अन्यथा श्रम तार-तार हो जाएंगा.

हेमेन्द्र क्षीरसागर के अन्य अभिमत

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