भारत के स्वतन्त्रता प्राप्ति संग्राम के महान सेनानी, रामकृष्ण विश्वास का हिंदुस्तान सदा ऋणी रहेगा .महान सपूत का अवतरण 16 जनवरी 1910 को सारातोली, चितगोंग, वर्तमान बांग्लादेश तत्कालीन अविभाजित भारत .उनके पिता का नाम दुर्गाकृपा बिस्वास था .रामकृष्ण बिस्वास महान क्रांतिकारी मास्टर सूर्यसेन जी के संगठन में सक्रिय सदस्य थे .सन 1930 में क्रांतिकारी रामकृष्ण बम बनाते समय बुरी तरह घायल हो गए थे .उन्ही दिनों चटगाँव के इन्स्पेक्टर जनरल मिस्टर क्रैग के काले कारनामों के कारण इस क्रान्तिकारी समूह ने उसका वध करने का निश्चय किया .इसका दायित्व रामकृष्ण विश्वास और कलिपदा चक्रवर्ती को सौंपा गया.
इस काम को करने के लिए 1 दिसंबर सन 1930 को चांदपुर पुलिस स्टेशन पर बम फेंका गया .घटनास्थल पर इन दोनों ने भूलवश क्रैग के स्थान पर इंस्पेक्टर तारिणी मुखर्जी को मार डाला .विश्वास और चक्रवर्ती दोनों को ही 2 दिसंबर सन 1931 को गिरफ्तार कर लिया गया .मुक़दमे के बाद विश्वास को फांसी और चक्रवर्ती को काला पानी की सजा सुनाई गई .निर्धनता के कारण रामकृष्ण विश्वास के परिजन और मित्र कलकत्ता की अलीपुर जेल में बंद उनसे मिलने आने में असमर्थ थे .
अतः संगठन द्वारा चटगाँव की ही निवासी और उस समय कलकत्ता में रह रही प्रीतिलता से उनसे मिलने जाने के लिए कहा गया .वे फांसी की प्रतीक्षा करते रामकृष्ण विश्वास से उनकी बहन बन कर लगभग 40 बार मिलीं और रामकृष्ण और उनके क्रांतिकारी विचारों से अत्यंत प्रभावित हुई .इसी संपर्क ने उनके मन में देश की आज़ादी के लिए सशस्त्र क्रान्ति का मार्ग अपनाने का विचार उत्पन्न कर दिया .4 अगस्त 1931 में रामकृष्ण विश्वास को अलीपुर सेन्ट्रल जेल में फाँसी दे दी गई तथा कलिपदा चक्रवर्ती को अंडमान निकोबार द्वीप समूह की सेलुलर जेल कालापानी भेज दिया गया।
स्तुत्य, शहीद रामकृष्ण विश्वास का मातृभूमि के प्रति ऐसा समर्पण और राष्ट्रभक्ति का जनून युवाओं के लिए प्रेरणास्रोत हैं .कर्मांजलि आनेवाली पीढ़ी को देश के वीर नायकों के पदचिन्हों पर चलकर स्वाधीनता के अमृतकाल को स्वर्णिम काल बनाने की दिशा में आरूढ़ होगा .तभी सुरक्षित, समृद्ध, विकसित और वैभवशाली राष्ट्र का योगदान होगा .बलिदान दिवस पर मां भारती के बेटे रामकृष्ण विश्वास को कृतज्ञ राष्ट्र का शत्-शत् नमन!