30 दिसम्बर 1944 को इंदौर, मध्य प्रदेश में जन्मे डॉ वेद प्रताप वैदिक भारतवर्ष के वरिष्ठ पत्रकार, राजनैतिक विश्लेषक, पटु वक्ता एवं हिन्दी प्रेमी थे. हिन्दी को भारत और विश्व मंच पर स्थापित करने की दिशा में सदा प्रयत्नशील रहे हैं. भाषा के सवाल पर स्वामी दयानन्द सरस्वती, महात्मा गांधी और डॉ राममनोहर लोहिया की परम्परा को आगे बढ़ाने वालों में डॉ वैदिक का नाम अग्रणी था. वैदिक जी अनेक भारतीय व विदेशी शोध-संस्थानों एवं विश्वविद्यालयों में ‘विजिटिंग प्रोफेसर’ रहे हैं. भारतीय विदेश नीति के चिन्तन और संचालन में उनकी भूमिका उल्लेखनीय है. अपने पूरे जीवन काल में उन्होंने लगभग 80 देशों की यात्रायें की.
स्तुत्य, डॉ. वैदिक की पत्रकारिता ने राजनीतिक चिंतन, अंतरराष्ट्रीय राजनीति और हिंदी के क्षेत्र में लंबे समय तक काम किया. अंतरराष्ट्रीय मामलों में जानकार होने के साथ ही उनकी रुसी, फारसी, जर्मन और संस्कृत भाषा पर पकड़ रही. डॉ. वैदिक नेे जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के ‘स्कूल ऑफ इंटरनेशनल स्टडीज’ से अंतरराष्ट्रीय राजनीति में पीएचडी की उपाधि प्राप्त की. वे भारत के ऐसे पहले विद्वान हैं, जिन्होंने अपना अंतरराष्ट्रीय राजनीति का शोध-ग्रंथ हिंदी में लिखा. उन्होंने अपनी पीएचडी के शोधकार्य के दौरान न्यूयॉर्क की कोलंबिया यूनिवर्सिटी, मॉस्को के ‘इंस्तीतूते नरोदोव आजी’, लंदन के ‘स्कूल ऑफ ओरिंयटल एंड अफ्रीकन स्टडीज़’ और अफगानिस्तान के काबुल विश्वविद्यालय में अध्ययन और शोध किया.
अभिभूत, हिन्दी में हस्ताक्षर अभियान का मार्गदर्शन करते हुए दिल्ली के राष्ट्रीय समाचार पत्रों तथा प्रदेशों और विदेशों के लगभग 200 समाचार पत्रों में भारतीय राजनीति और अंतरराष्ट्रीय राजनीति पर डॉ. वैदिक के लेख हर सप्ताह प्रकाशित होते थे. वे अक्सर कहते थे, हिन्दी महारानी है, तो अंग्रेजी नौकरानी. हमें अपनी महारानी का स्वाभिमान बचाना है. आपने जन दसेक्ष की स्थापना की थी. अंग्रेजी पत्रकारिता के मुकाबले हिन्दी में बेहतर पत्रकारिता का युग आरम्भ करने वालों में डॉ वैदिक का नाम अग्रणी है. उन्होंने सन् 1958 से ही पत्रकारिता प्रारम्भ कर दी थी. नवभारत टाइम्स में पहले सह सम्पादक, बाद में विचार विभाग के सम्पादक भी रहे. उन्होंने हिन्दी समाचार एजेन्सी भाषा के संस्थापक सम्पादक के रूप में एक दशक तक प्रेस ट्रस्ट ऑफ इंडिया में काम किया. सम्प्रति भारतीय भाषा सम्मेलन के अध्यक्ष तथा नेटजाल डाट काम के सम्पादकीय निदेशक हैं.
मां वाणी पुत्र डॉ वैदिक को काबुल विश्वविद्यालय द्वारा अफगानिस्तान सम्बन्धी शोधग्रन्थ पर दस हजार रुपये की सम्मान राशि. उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा ‘अफगानिस्तान में सोवियत-अमरीकी प्रतिस्पर्धा‘ ग्रन्थ पर गोविन्द वल्लभ पन्त पुरस्कार. उत्तर प्रदेश हिन्दी साहित्य सम्मेलन द्वारा हिंदी सेवा के लिये ‘पुरुषोत्तम दास टण्डन‘ स्वर्ण पदक. मधुवन, भोपाल द्वारा पत्रकारिता में ‘श्रेष्ठ कला आचार्य‘ की उपाधि. हिन्दी अकादमी, दिल्ली द्वारा पत्रकारिता के लिये इक्कीस हजार रुपये की सम्मान राशि. डॉ राममनोहर लोहिया सम्मान, कानपुर. इण्डियन कल्चरल सोसायटी द्वारा ‘लाला लाजपतराय सम्मान‘. मीडिया इण्डिया सम्मान, नई दिल्ली. प्रधानमन्त्री द्वारा रामधारी सिंह दिनकर शिखर सम्मान आदि पुरस्कारों से सम्मानित किया जाता रहा है. अविरल, हिन्दी योद्धा के तौर पर उभरी देश की आवाज़ को हमने 14 मार्च को सदा के लिए खो दिया. जो हमारे प्रेरणा पुंज थे और रहेंगे. ऐसी पत्रकारिता की अमिट हस्ताक्षर को शत-शत नमन…!