उन्नासी वर्षों की यात्रा से विश्व-नेतृत्व की दहलीज़ तक,भारत का समय अब है!

उन्नासी वर्ष पहले, आधी रात के सन्नाटे में जब भारत ने स्वतंत्रता का पहला श्वास लिया, तो वह केवल एक राजनीतिक घटना नहीं थी. वह एक संपूर्ण सभ्यता के पुनर्जन्म का क्षण था. तिरंगा जब लाल किले की प्राचीर पर लहराया, तो हर गाँव, हर शहर, हर हृदय में आत्मसम्मान का एक दीप जल उठा. यह दीप केवल एक दिन के लिए नहीं था; इसे जलाए रखना हमारी पीढ़ियों की जिम्मेदारी बन गई.

आज हम उस गौरवशाली यात्रा के उन्नासी वर्ष पूरे कर चुके हैं. इस दौरान हमने अनगिनत उपलब्धियाँ हासिल कीं — वैज्ञानिक प्रगति, आर्थिक विकास, सांस्कृतिक पुनर्जागरण और लोकतांत्रिक मजबूती. परंतु, क्या हम इस यात्रा को केवल अतीत की गौरवगाथा के रूप में देखेंगे, या इसे विश्व नेतृत्व की ठोस राह में बदलेंगे? भारत विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र और पाँचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है. पर असली चुनौती है — हमारा यह सामर्थ्य मानवता के हित में किस तरह दिशा पाए. विश्व-नेतृत्व की ओर बढ़ने के लिए हमें पाँच मूल स्तंभों पर ध्यान केंद्रित करना होगा: शिक्षा से नवाचार तक, आत्मनिर्भर कृषि-उद्योग, स्वदेशी रक्षा सामर्थ्य, स्वच्छ ऊर्जा नेतृत्व, और अटूट सामाजिक एकता.

शिक्षा किसी भी राष्ट्र की आत्मा होती है. हमारी शिक्षा प्रणाली ने साक्षरता के स्तर को बढ़ाया है, पर यह पर्याप्त नहीं है. हमें शिक्षा को सिर्फ़ पढ़ाई-लिखाई तक सीमित न रखकर ज्ञान, कौशल और शोध आधारित प्रणाली बनानी होगी. विद्यालय और विश्वविद्यालय शोध और नवाचार के केंद्र बनें. तकनीकी और व्यावसायिक शिक्षा को मज़बूत किया जाए ताकि युवा केवल नौकरी खोजने वाले नहीं, बल्कि नौकरी पैदा करने वाले बनें. प्राथमिक स्तर से ही आलोचनात्मक सोच, रचनात्मकता और डिजिटल साक्षरता को बढ़ावा दिया जाए. यदि हम अपने युवाओं को विश्व स्तर पर प्रतिस्पर्धा के योग्य बनाएँ, तो यही पीढ़ी भारत को आर्थिक और तकनीकी महाशक्ति बना सकती है.

भारत की रीढ़ उसकी कृषि है. परंतु, आधुनिक भारत में केवल पारंपरिक खेती से हम वैश्विक प्रतिस्पर्धा में आगे नहीं बढ़ सकते. कृषि में वैज्ञानिक तकनीक, सिंचाई के आधुनिक साधन, और फसल विविधीकरण को बढ़ावा देना होगा. किसानों को उचित मूल्य और बाजार तक सीधी पहुँच मिलनी चाहिए. खाद्य प्रसंस्करण उद्योग और ग्रामीण आधारित लघु-उद्योगों को बढ़ावा देकर गाँव को ही उत्पादन और निर्यात का केंद्र बनाया जाए. जब कृषि और उद्योग साथ मिलकर आत्मनिर्भर बनेंगे, तो भारत की आर्थिक नींव अटूट हो जाएगी.

रक्षा केवल सीमाओं की सुरक्षा नहीं, बल्कि आत्मनिर्भरता और तकनीकी श्रेष्ठता का प्रतीक भी है. हमें विदेशी हथियारों के आयातक से स्वदेशी तकनीक के निर्यातक बनने की दिशा में आगे बढ़ना होगा. रक्षा अनुसंधान संस्थानों और निजी उद्योगों में साझेदारी से अत्याधुनिक हथियार, ड्रोन, और साइबर सुरक्षा प्रणालियाँ विकसित की जाएँ. रक्षा उत्पादन में बढ़ी हुई आत्मनिर्भरता न केवल हमारी सुरक्षा को मजबूत करेगी, बल्कि रक्षा निर्यात से विदेशी मुद्रा भी लाएगी. भारत को केवल अपने लिए नहीं, बल्कि मित्र राष्ट्रों के लिए भी सुरक्षा समाधान का केंद्र बनना चाहिए.

21वीं सदी में ऊर्जा का भविष्य स्वच्छ और नवीकरणीय स्रोतों पर निर्भर है. सौर, पवन, और जैव ऊर्जा में अग्रणी बनकर भारत जलवायु परिवर्तन के संकट से निपटने में उदाहरण पेश कर सकता है. गाँव-गाँव तक सौर पैनल और माइक्रोग्रिड तकनीक पहुँचाई जाए. स्वच्छ ऊर्जा क्षेत्र में शोध और स्टार्टअप को सरकारी प्रोत्साहन मिले. इससे न केवल पर्यावरण सुरक्षित रहेगा, बल्कि भारत ऊर्जा के क्षेत्र में एक वैश्विक नेता के रूप में उभरेगा.

आर्थिक और तकनीकी प्रगति तभी टिकाऊ है, जब समाज एकजुट हो. जाति, धर्म, भाषा या क्षेत्रीयता के नाम पर बँटवारा हमारी सबसे बड़ी कमजोरी है. विविधता को केवल पाठ्यपुस्तक की पंक्तियों में नहीं, बल्कि व्यवहार और नीतियों में जीना होगा. हर नागरिक को समान अवसर और सम्मान मिले, यही लोकतंत्र का असली मापदंड है. भारत की सभ्यता ने सदियों से सहिष्णुता, करुणा और सहयोग की शिक्षा दी है. इन मूल्यों को नीतियों और कूटनीति का आधार बनाना होगा.

79 वर्षों की यात्रा ने हमें यह सिखाया है कि प्रगति कोई स्थायी मंज़िल नहीं, बल्कि निरंतर प्रयास का परिणाम है. अशोक चक्र के 24 आरे हमें यह याद दिलाते हैं कि राष्ट्र की गति कभी रुकनी नहीं चाहिए. आज का भारत मंगल और चंद्रमा को छू चुका है, वैश्विक खेलों और संस्कृति में अपनी पहचान बना चुका है, और तकनीक व विज्ञान में नई ऊँचाइयाँ छू रहा है. लेकिन इन उपलब्धियों को टिकाऊ और व्यापक बनाने के लिए दीर्घकालिक दृष्टि और अटूट इच्छाशक्ति चाहिए.

जब हम तिरंगे को लहराते हैं, तो केसरिया रंग हमें साहस का संदेश देता है — सही निर्णय लेने और कठिन सुधार लागू करने का साहस. सफ़ेद हमें सत्य और पारदर्शिता की याद दिलाता है, जो लोकतंत्र की आत्मा है. हरा हमें सतत विकास का आह्वान करता है, और अशोक चक्र हमें सतत गति का प्रतीक बनकर प्रेरित करता है.

यह उन्नासीवाँ स्वतंत्रता दिवस केवल उत्सव का दिन नहीं है. यह संकल्प का क्षण है कि भारत न केवल अपनी सीमाओं की रक्षा करेगा, बल्कि दुनिया को शांति, संतुलन और विकास का मार्ग दिखाएगा. यह समय है जब हम अपने अतीत से प्रेरणा लेकर, वर्तमान की चुनौतियों को स्वीकारते हुए, भविष्य को आकार दें. भारत का समय अब है — और हमें यह कदम दृढ़ता से उठाना होगा.

डॉ. सत्यवान सौरभ के अन्य अभिमत

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