रमेश ओझाः ऊँची उडान की सोच जीवन का संकट न बने!

रमेश ओझाः ऊँची उडान की सोच जीवन का संकट न बने!

प्रेषित समय :16:45:21 PM / Tue, Mar 9th, 2021

व्यूज. देश और दुनिया में बदलते समय के साथ विभिन्न विषयों को लेकर दृष्टिकोण व सोच में भी बदलाव आता है और पक्ष-विपक्ष के स्वर भी उभरते हैं, परन्तु हमारे परम्परागत नियम, प्रकृति प्रदत्त व्यवस्थाओं के साथ जीवन का समन्वय करने की सोच को हम बनाये रखते हैं. महिलाओं के अधिकार, उन्हंे समानता का दर्जा देना और उन्हें सुरक्षा देने की बात लम्बे समय से चर्चा में है. ससंद से लेकर घर तक हर स्तर पर महिलाओं को अधिकार सम्पन्न बनाने और समाज में सम्मान देने की बात होती है, परन्तु यह सोच कितनी प्रभावी हो पाई हैं यह चिन्तन का विषय है. घर व परिवार में महिलाओं का सम्मान व फैसलों में भागीदारी बढ़ी है, इसमें कोई संदेह नहीं है, परन्तु सामाजिक स्तर के फैसलों और राजनीति के मामलों में आज भी बराबरी की बात पूरी तरह नहीं हो पाई है. अपनी मंजिल की और क्रमशः चल रहा यह कारवां भविष्य में अपने मुकाम पर पहुंचेगा इसमें कोई संदेह नहीं हैं.

बात करें महिलाओं की समानता की तो कई मामलों में हमारे परम्परागत नियम, प्रकृति की व्यवस्थाओं के साथ समयबद्ध जीवनयापन की बात को मानना हमारे सफल जीवन का प्रमुख आधार है. परिवार में बेटी होने पर माता पिता उसके जीवन को सुरक्षित बनाकर बेहतर भविष्य की चिन्ता में जन्म से ही लग जाते हैं. बेहतर शिक्षा देने के बाद उसे सुरक्षित परिवार व जीवनसाथी के साथ विदा करने की भावना के साथ वे सतत जुटे रहते हैं. विवाह की आयु अब सरकारी व्यवस्थाओं से उपर उठ चली हैं और 22 वर्ष से विवाह की संभावनाओ के द्वार खुल जाते हैं, जो पुरूष के लिये 27 से 30 वर्ष तक सामान्य व महिलाओ के लिये 24 से 26 वर्ष तक सामान्य श्रेणी के माने जाते हैं.

हमारी सनातन परम्पराएं रही हैं कि हर काम को निश्चित आयु वर्ग में करना सफल जीवन का आधार है, अतः विवाह भी समय पर हो इस हेतु परिवारजनों के प्रयास जारी रहते हैं. वर्तमान में कुछ करने की सोच के साथ किस्मत आजमा रहे युवा वर्ग को इस बात को समझना होगा कि विवाह के बाद भी उसकी क्षमता व योग्यता के अनुसार प्रगति के अवसर मिलना संभव है, परन्तु अविवाहित रहकर उचीं उड़ान भरने की सोच से काम करने वाले युवाओं को अपने माता-पिता के मानसिक तनाव को भी ध्यान में रखकर काम करने का प्रयास करने की जरूरत है. वयस्क होने के बाद अपने फैसले खुद करने की सोच और माता-पिता की अपेक्षाओं को पूरा नहीं करने की प्रवृत्ति के चलते होने वाली समस्याओं का आंकलन लम्बे समय बाद ही हो पाता है, परन्तु यह देखकर माता-पिता किन परिस्थितियांे व वेदनाओं से गुजरते हैं, इस और युवा वर्ग ध्यान दे तो कई परेशानियों से बचा जा सकता है. माता पिता अपने बच्चों के लिये बेहतर फैसले कर सकते हैं और उस पर चिन्तन कर ध्यान दें, यह आवश्यक है, इस तरह की सोच नहीं होने पर परिवारों से सम्बद्ध समस्यायें बढ़ती रहेंगी, इसमें कोई शक नहीं है. विवाह के मामले में आयु वर्ग को ध्यान में रखना अत्यन्त आवश्यक है, इस विषय को आज के युवाओ को समझाना महत्वपूर्ण व आवश्यक हो गया है.

महिला समानता व सशक्तता की बात को व्यक्तिगत मानकर प्रयास करना भी किसी भी स्थिति में ठीक नही माना जा सकता है. परिवार के पुत्र या पुत्री की सफलता पूरे परिवार की सफलता है, ऐसी सोच को मानना होगा. पुत्री या पुत्र के साथ बिना भेदभाव शिक्षा व अन्य कार्यों के अवसर देने वाले माता-पिता के साथ दुव्र्यवहार करने वाले युवाओं को अपनी सोच में सुधार करना होगा.

महिला को सशक्त करने की बात करना तार्किक है, परन्तु उसके शुभचिन्तक माता-पिता का सम्मान करते हुए उनकी भावनाओं के अनुरूप काम करना भी उतना ही तार्किक व आवश्यक है. कई कारण व सोच के साथ अपने बच्चों को अध्ययन से लेकर अन्य सुविधायें उपलब्ध करवाने वाले माता-पिता के प्रयासों की मीनमेख निकाल कर उन्हें चिन्ता देना उपलब्धि नहीं है, उनके प्रयासों व कार्यों से जो संभव हुआ है, वो अन्य कितनों को उपलब्ध है, ऐसी सोच से आगे बढ़े तो माता-पिता के प्रति दुव्र्यवहार की गुंजाईश नही बनती है. आमतौर पर माता या पिता में से एक के प्रति बच्चे का झुकाव अधिक होता है, परन्तु दूसरा भी आपके प्रति उतना ही संवेदनशील है, चाहे वह इसे प्रकट करे या न करें, इस बात को समझने में लम्बा समय लग जाता है और समझ आने पर वो व्यक्तित्व मौजूद नहीं रहता है. तब अपने कार्यों को लेकर सिर्फ आत्मग्लानि संभव होती है. ऐसे समय को मौका देना ठीक नहीं है.

वर्तमान में सबसे महत्वपूर्ण मित्र मण्डली व उसके विचार से प्रभावित होकर काम करना है. जीवन के विभिन्न कार्यों को निर्धारित समय पर नहीं करने वाला व विभिन्न क्षेत्रों में सफलता से दूर एक असफल मित्र या साथी आपको कितना सफल बना सकता है, इस बात पर ध्यान दें तो कई समस्याओं से बचा जा सकता है. मित्र या साथी की सोच या जीवन शैली आपके लिये उदाहरण बने ऐसा हर मामले में आवश्यक नहीं है. ऐसे असफल साथी या मित्र से जितना जल्दी दूर होंगे उतनी जल्दी मानसिक शांति व सफलता का मार्ग प्रशस्त होगा!

Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-

इस्राइली दूतावास के बाहर बम ब्लास्ट ईरान ने कराया था दिल्ली में, इसके लिए भारतीयों का ही किया इस्तेमाल

उत्तराखंड के सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत दिल्ली तलब, बढ़ी राजनीतिक हलचल

सीएम केजरीवाल का बड़ा ऐलान: अब दिल्ली का होगा अपना शिक्षा बोर्ड, कैबिनेट ने दी मंजूरी

महाराष्ट्र में एक दिन में आये कोरोना के दस हजार से ज्यादा मामले, दिल्ली में भी बढ़े केस

आज से दिल्ली सहित इन रेलवे स्टेशनों पर तीन गुने महंगे हुए टिकट

नवजात बच्चों को कॉक्लियर इंप्लांट की सुविधा मुफ्त देगी दिल्ली सरकार: सत्येंद्र जैन

Leave a Reply