नई दिल्ली. केंद्र ने सोमवार को सुप्रीम कोर्ट से आग्रह किया कि वैक्सीनेशन पॉलिसी, मैन्यूफैक्चरिंग और निर्यात से संबंधित मुद्दों को उन्हें ले लेना चाहिए, क्योंकि विभिन्न उच्च न्यायालयों के आदेश कोविड 19 महामारी के खिलाफ लड़ाई में कंफ्यूजन क्रिएट कर सकते हैं.
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता और वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे और मुकुल रोहतगी, सीरम इंस्टीट्यूट और भारत बायोटेक की ओर से कोर्ट में पेश हुए. उन्होंने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि विभिन्न हाईकोर्ट इस बारे में पूछ रहे हैं कि कितने टीकों का उत्पादन किया जा रहा है? कितनी विदेश भेजी गई हैं? सभी लोगों को टीका कब लगाया जाएगा? रोहतगी ने कोर्ट में कहा कि ये बेहद महत्वपूर्ण मामला है और उन्होंने हाईकोर्ट में दायर सभी मामलों को सुप्रीम कोर्ट में स्थानांतरित करने का आग्रह करते हुए याचिका दायर की.
वहीं केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में अपने हलफनामे में जजों, वकीलों और कोर्ट के कर्मचारियों को फ्रंटलाइन कार्यकर्ता मानने की मांग को खारिज करते हुए जवाब दिया कि पेशे या बिजनेस के आधार पर कोविड-19 वैक्सीनेशन को प्राथमिकता नहीं दी जा सकती है.
केंद्र द्वारा अपने शपथपत्र में कहा गया कि 45 साल से कम उम्र के वकीलों व अन्य के लिए अलग श्रेणी बनाना कतई सही नहीं है. ऐसा करने से अन्य कार्यों व व्यवसायों से जुड़े लोगों एंव समान भौगोलिक स्थिति और परिस्थिति में काम करने वाले लोगों के साथ अन्याय होगा. केंद्र ने कहा कि टीकाकरण संबंधी निर्णय लेने का अधिकार पूरी तरह कार्यपालिका का है यह न्यायिक समीक्षा का विषय कदापि नहीं है.
इसके बाद चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया एसए बोबडे और जस्टिस एएस बोपन्ना और वी रामासुब्रमण्यम की पीठ ने कहा कि वह इस याचिका और इससे संबंधित अन्य मामलों के सुप्रीम कोर्ट में स्थानांतरण संबंधी याचिका पर 18 मार्च को सुनवाई करेगी.
Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-बॉम्बे हाईकोर्ट ने वकीलों से कहा, वैक्सीन के लिए स्वार्थी मत बनिए
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