पलपल संवाददाता, जबलपुर। मध्यप्रदेश के जबलपुर में प्रशासन तंत्र पूरी तरह से ध्वस्त हो गया, अस्पताल से शमशान तक हा-हा कार मचा हुआ है, कोरोना संक्रमितों को न तो इलाज मिल रहा है, न ही रेमडेसिविर इंजेक्शन, मेडिकल से लेकर विक्टोरिया तक मरीजों के साथ हो रहे अमानवीय व्यवहार को रोकने वाला कोई नहीं, निजी अस्पतालों में रुपया देने के बाद भी इलाज संभव नहीं हो पा रहा है, जिससे जबलपुर के हालात दिनों दिन बिगड़ते ही जा रहे है, यदि इस ओर राज्य सरकार ने जल्द ही ध्यान नहीं दिया तो आने वाले दिनों में हालात और भी ज्यादा बद्तर हो जाएगें।
बताया जाता है कि क ोरोना संक्रमितों के आंकड़ो में बाजीगरी करके अपने आप को सफल बताने में जुटा प्रशासन शहर को सम्हालने में पूरी तरह से नाकाम हो चुका है, सारी व्यवस्थाएं कागजों तक ही सीमित है, हकीकत में तो अब मेडिकल से लेकर विक्टोरिया तक लोगों को भरती तो किया जा रहा है लेकिन इलाज नहीं हो रहा है, लचर व्यवस्थाओं के बीच जिदंगी और मौत के बीच जूझ रहे पीडि़तों को देखने वाला तक कोई नहीं, मेडिकल अस्पताल का तो यह आलम है कि जीवन रक्षक माना जाने वाला रेमडेसिविर इंजेक्शन भी मंहगे दामों में बेचा जा रहा है, वहीं प्रशासन कह रहा है कि पर्याप्त मात्रा में इंजेक्शन आ गए है, यदि इंजेक्शन आ गए है तो कहां है किसके पास है, कौन इसकी सप्लाई कर रहा है। इसका जबाव किसी के पास नहीं है। रेमडेसिविर इंजेक्शन की सप्लाई निजी अस्पतालों को की गई है ताकि मरीजों को उचित दामों पर इंजेक्शन मिल सके लेकिन निजी अस्पतालों में भी रेमडेसिविर इंजेक्शन 6 गुना दामों में बेचे जा रहे है। कुल मिलाकर हर तरफ व्यवस्थाएं ध्वस्त हो चुकी है, खासबात तो यह है कि पीडि़त या उनके परिजन किससे शिकायत करे, कहां जाए, कोई सुनने वाला ही नहीं है।
अधिकारी नहीं उठाते है फोन, फिर क्यों जारी किए नम्बर-
कहने के लिए निजी अस्पतालों में बेड उपलब्ध होने की जानकारी, कलेक्टर से लेकर तहसीलदार तक के मोबाइल फोन नम्बर प्रसारित किए गए जिनपर अपनी समस्या बताकर निराकरण कराया जा सकता है, लेकिन हकीकत में इन सारे नम्बरों पर आमजन या फिर कोई और व्यक्ति फोन लगाता है तो फोन नहीं उठाया जा रहा है, जैसे तैसे किसी ने फोन उठाया भी तो यह कहकर काट दिया जा रहा है कि हम व्यवस्था कर रहे है, इनके इंतजार में पीडि़त दम तोड़ देता है लेकिन व्यवस्थाएं नहीं हो पाती।
पर्याप्त आक्सीजन आई फिर भी हो रही मौत-
आक्सीजन की कमी का रोना रोया जा रहा था, जिसके चलते विधायक अजय विश्रोई, पूर्व मंत्री व विधायक तरुण भनोट, राज्यसभा सांसद विवेक तन्खा ने आक्सीजन खरीदकर व्यवस्था कराई, इसके अलावा शासकीय स्तर पर भी आक्सीजन मेडिकल, विक्टोरिया से लेकर निजी अस्पतालों तक पहुंचाई जा रही है इसके बाद भी आक्सीजन की कमी से मौत का सिलसिला जारी है। तो आक्सीजन कहां जा रही है, सूत्रों की माने तो समुचित मानिटरिंग न होने से हालात बिगड़ रहे है। ,
निजी अस्पताल में जगह नहीं, मेडिकल अस्पताल से भगा रहे-
सूत्रों की माने तो निजी अस्पतालों में मरीजों को भरती करने के लिए जगह नहीं है, मेडिकल व विक्टोरिया अस्पताल में मरीजों को भगाया जा रहा है ऐसे में पीडि़त अब कहां जाए, इस बात का जबाव किसी के पास नहीं है, इसके अलावा अन्य स्थानों पर कोविड सेंटर बनाए जा रहे है, वहां पर भरती कराने के लिए पहुंच हो तो तभी जगह मिल सकती है तो ऐसे में प्रशासनिक व्यवस्थाओं का आलम बेहतर तरीके से समझा जा सकता है। आम आदमी की प्रतिक्रिया जाने तो वे यही कहते नजर आ रहे है कि पूरा प्रशासन तंत्र फेल हो चुका है, जबलपुर अब भगवान भरोसे ही है।
सोशल मीडिया पर लोग निकाल रहे भड़ास-
प्रशासनिक अधिकारियों से लेकर स्वास्थ्य अधिकारियों तक फोन न उठाए जाने, अस्पतालों में मरीजों को जगह न मिलने, जीवन रक्षक माना जाने वाला रेमडेसिविर इंजेक्शन, आक्सीजन न मिलने आक्रोशित लोग अब सोशल मीडिया पर अपनी भड़ास निकाल रहे है, क्या करे जबलपुर में कोई सुनने वाला ही नहीं है।
Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-एमपी के इंदौर, भोपाल, उज्जैन में 26 अप्रेल तक लॉकडाउन बढ़ाया, जबलपुर में बढऩे के आसार
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