नजरिया. कोरोना का रास्ता अस्पताल जाता है और किसान आंदोलन का रास्ता संसद जाता है, यह कहना है किसान नेता और भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय प्रवक्ता राकेश टिकैत का, उनका तो यह भी कहना है कि किसान आंदोलन से पीछे हटने वाले नहीं हैं, छह माह का आंदोलन ज्यादा नहीं है, किसान तो 2024 तक आंदोलन के लिए तैयार हैं, जब तक तीनों कृषि कानून वापस नहीं होंगे, तब तक वह पीछे नहीं हटेंगे!
खबर है कि टिकैत का कहना था कि हिसार में सरकार व पुलिस द्वारा जो किया गया, वह ठीक नहीं था. पहले सरकार ने समझौता किया, अब एफआइआर दर्ज की जा रही है. जो किसान घायल हुए है, क्या सरकार उनकी शिकायत पर भी पर्चा दर्ज करेगी?
कोरोना के बीच आंदोलन करने के प्रेस-प्रश्न पर टिकैत का कहना है कि आंदोलन ने उन्हें एकजुटता व मजबूती सिखाई है. कोरोना का रास्ता अस्पताल जाता है और किसान आंदोलन का रास्ता संसद जाता है, दोनों के रास्ते पूरी तरह से अलग हैं.
कोरोना संकट के अवसर का लाभ मोदी सरकार किसान आंदोलन को समाप्त करनेे के लिए लेना चाहती है, लेकिन लगता नहीं है कि इससे कुछ खास फायदा होगा, क्योंकि कृषि कानूनों को लेकर मोदी सरकार जिस तरह से एक्सपोज हो गई है, उसके बाद यह आंदोलन तो गांव-गांव तक पहुंच गया है और इसका असर तो ताजा चुनावों में भी नजर आ चुका है, लिहाजा इससे कोई खास फर्क नहीं पड़ता है कि धरना-प्रदर्शन स्थल पर कितने किसान हैं, आंदोलन चल रहा है या समाप्त हो गया है!
बड़ा सवाल यह है कि किसान अपना आंदोलन क्यों समाप्त करें? कोरोना संकट में समय की नजाकत देखते हुए मोदी सरकार कृषि कानून क्यों नहीं समाप्त करती?
Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-अभिमनोजः क्या मोदी सरकार को कोर्ट की नाराजगी भी नजर नहीं आ रही है?
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