डॉ. अरविंद मिश्रा. भारत के प्रमुख वैज्ञानिक सलाहकार विजय राघवन तीसरी लहर की चेतावनी दे रहे हैं जबकि दूसरी लहर की भनक इन्हें नहीं हो पायी। अब यह पेशबंदी है कि यदि अगली लहर आयी तो कम से कम कुछ तो ये चेहरा दिखाने लायक रहें। दूसरी लहर की भयावहता का तनिक भी अंदेशा इन महानुभावों को नहीं था और इसलिए अस्पतालों की आपात व्यवस्था और ऑक्सीजन की मांग को लेकर सिस्टम फेल हो गया। अब तीसरी लहर की बात करके मौजूदा विकराल संकट से ध्यान हटाने का ही यह शातिर उपक्रम है जिसके झांसे में अपना सुप्रीम कोर्ट भी आ गया है।
इस समय बात केवल महामारी के मौजूदा प्रचंड वेग को संभालने की है जिसमें सारी व्यवस्था त्राहिमाम त्राहिमाम कर रही है। विदेशों से भारी सहायता आ रही है जिसकी युद्ध स्तर पर इन्वेन्ट्री बनाने और तुरंत राज्यों को सिलसिलेवार सौंपते जाने की फौरी जरूरत है। अगर कार्गो ब्यूरोक्रेटिक रुकावटों में फंसा तो समय पर मिली सहायता का कोई मतलब नहीं रह जायेगा। इस फ्रंट पर सरकार क्या कर रही है, एकदम संवादहीनता की स्थिति है।
मुझे कोरोना महामारी की जो अल्प समझ उपलब्ध साहित्य के निरंतर अवगाहन से है, उस आधार पर नहीं लगता कि कोई तीसरी भयावह लहर अब आयेगी। यही लहर जितना डैमेज कर पायेगी करके शान्त हो जायेगी। हर्ड इम्यूनिटी हासिल नहीं भी होती तो इतने लोग संक्रमित होकर उबर जायेंगे कि अब कोई लहर बन ही नहीं पायेगी। बस छिट पुट इधर उधर आग भड़केगी मगर वहीं सीमित रह जायेगी यानी क्लस्टर में इक्का दुक्का जगहें जो अभी बची रहेंगी वहां कोरोना फैलेगा मगर लहर के रूप में नहीं स्थानिक (एन्डेमिक) बीमारी जैसे सर्दी जुकाम की तरह।
हां, जिस तरह अचानक ही महामारी की दूसरी भयावह लहर ने आकर हमें दबोच लिया और हम हतप्रभ से असहाय से रह गये, तुरत कुछ कर भी नहीं सकते थे - अब हमारी चिकित्सा व्यवस्था को मुकम्मल रखना होगा। यह एक बड़ा सबक है। इस लिहाज से तीसरी लहर का हौव्वा ठीक लगता है अन्यथा यही दूसरी लहर ही व्यापक जनहानि की ओर बढ़ चली है। माह जुलाई तक यह दावानल ठंडा हो चुका रहेगा।
तब तक वे भाग्यशाली जन जो संक्रमण की चपेट में नहीं आये हैं या उनसे भी अधिक भाग्यशाली जो संक्रमित होकर भी सकुशल हैं, सावधानी में तनिक भी कोताही न करें। यही मानकर चलिए कि दूसरी लहर ही निर्णायक है। इससे बच निकले तो विजेता रहेंगे। जो संक्रमित हो चुके, उनकी तो बल्ले बल्ले है क्योंकि कुदरती एण्टीबाॅडीज का उनका जखीरा कुछ माह तो उनका रक्षा कवच बनेगा ही।
कोरोना के नये वेरिएंट भले ही आंशिक बदलाव लिये हों मगर संक्रमित हो चुके लोगों की प्रतिरक्षा फौज उन पर भी प्रभावकारी होगी। हां, वैक्सीन जन्य इम्यूनिटी कितनी कारगर होगी, अभी यह विवादित है। कुछ ऐसे मामले भी आ चुके हैं जिनमें वैक्सीन के दोनों डोज के बाद भी संक्रमण से मृत्यु हो गयी। यह भी एक सबक है कि फिलहाल इस दूसरी लहर के थमने तक हम कोविड एप्रोप्रियेट व्यवहार - मास्क, दो गज की दूरी और सैनिटाइजर, साबुन को अपनाये रहें।
एक और बात। विवाह की तिथियां अब भी टाल दें। जब मौत मुँह बाये निगलने को तैयार हो उसमें विवाहोत्सव? इतना बड़ा जोखिम? क्यों भाई, वर पक्ष वधू पक्ष के लोगों की जान इतनी सस्ती है क्या? भाई, जीवन रहा तो शादी फिर हो जायेगी और अच्छी तरह। खुशनुमा माहौल में। टली हुई तिथि, मुहूर्त तो फिर भी लौट आयेगा मगर जो जीवन चला गया वह तो गया? कहां लौट के आयेगा?
Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-IMA एमपी ने बनाया प्रदेश का सबसे बड़ा टेली-कंस्लटेटिंग ग्रुप, कोरोना संबंधित नि:शुल्क जानकारी मिलेगी
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