80 रुपए में तैयार होता था एक नकली रेमडेसिविर इंजेक्शन, 35 से 40 हजार में बिकता रहा, जबलपुर में मोखा ने कमाए 50 लाख रुपए

80 रुपए में तैयार होता था एक नकली रेमडेसिविर इंजेक्शन, 35 से 40 हजार में बिकता रहा, जबलपुर में मोखा ने कमाए 50 लाख रुपए

प्रेषित समय :16:45:02 PM / Mon, Jun 7th, 2021

पलपल संवाददाता, जबलपुर/इंदौर. गुजरात के मोरबी स्थित फार्म हाउस में एक नकली रेमडेसिविर इंजेक्शन को बनाने में महज 80 रुपए का खर्च आता था, जिसे कारोबारियों द्वारा मरीजों तक पहुंचाने में 30 से 40 हजार रुपए तक लिए गए है, इस तरह से नकली इंजेक्शन के कारोबार से जुड़े आरोपियों द्वारा महज पांच दिन में एक करोड़ रुपए कमा लिए जाते रहे. गुजरात से इंदौर, फिर जबलपुर सहित देश भर में फैले इस नेटवर्क का खुलासा करने के लिए पुलिस  की टीमें जुटी हुई है. इस मामले में अभी तक इंदौर पुलिस ने 29 आरोपियों को हिरासत में लिया है तो जबलपुर पुलिस ने सिटी अस्पताल के संचालक सरबजीतसिंह मोखा, उनकी पत्नी जसमीत, बेटे हरकरण, मैनेजर सोनिया, अस्पताल का दवा दुकान संचालक देवेश चौरसिया सहित अन्य को हिरासत में लेकर न्यायिक अभिरक्षा में जेल भेजा है. मोखा ने नकली इंजेक्शन में करीब 50 लाख रुपए कमाए है.

बताया जाता है कि नमक व ग्लूकोज से तैयार होने वाले इस नकली रेमडेसिविर इंजेक्शन से इंदौर में दस लोगों की मौत होने की पुष्टि हो चुकी है, वहीं कई पीडि़त पुलिस के सामने तक नहीं आ रहे है, गिरोह के सरगनाओं से इंदौर पुलिस ने जब पूछताछ की तो कई चौकाने वाले तथ्य सामने आए है, जिसमें यह पता चला कि नकली इंजेक्शन से आरोपियों द्वारा महज पांच दिन में एक करोड़ रुपए से ज्यादा कमाए जाते रहे, इंदौर पुलिस द्वारा की जा रही अभी तक की कार्यवाही में दर्ज किए गए पांच मामलों में 29 लोगों को हिरासत में लिया जा चुका है. जबकि जबलपुर में गठित एसआईटी को अभी तक नकली इंजेक्शन के सौदागर सिटी अस्पताल के संचालक सरबजीतसिंह मोखा का मोबाइल फोन तक नहीं मिल सका है, हालांकि मोबाइल की सीडीआर जरुर पुलिस को मिल गई है, जिसमें ऐसा तथ्य उजागर हुआ है कि पुलिस अधिकारी भी हैरत में है, गिरफ्तारी से पहले सरबजीतसिंह मोखा की एक सीएसपी व एएसपी स्तर से काफी देर तक बातचीत होने की जानकारी मिली है, इसके बाद से तरह तरह की चर्चाओं का दौर भी शुरु हो गया है.

पांच दिन की कमाई के बाद एक लाख वायल तैयार कर लिए-

पुलिस को पूछताछ में आरोपी कौशल वोरा ने पुलिस को बातया कि शुरुआत में इंजेक्शन बेचे गए जिसमें पांच दिन में ही एक करोड़ रुपए मिले, तभी उन्होने एक लाख वायल तैयार कर नकली इंजेक्शन तैयार करने की योजना बना ली, लेकिन इंदौर में सुनील की गिरफ्तारी के बाद ही कौशल वोरा व पुनीत को गुजरात पुलिस ने हिरासत में ले लिया.

गुजरात में कमाए 1 करोड़ 84 लाख-

पुलिस अधिकारियों की माने तो सूरत के ड्रग माफिया कौशल और पुनीत शाह ने पांच हजार इंजेक्शन सूरत व अहमदाबाद में बेचकर एक करोड़ 84 लाख रुपए कमाए थे, इसके बाद मध्यप्रदेश में सुनील के जरिए इंजेक्शनों की सप्लाई शुरु की.

आरोपी सुनील को मिले 26 लाख रुपए-

मध्यप्रदेश का काम सप्लायर सुनील को मिला, जिसमें सुनील ने सिर्फ इंदौर में ही अलग अलग लोगों को करीब 7 सौ इंजेक्शन बेचकर 56 लाख रुपए लिए, करीब एक इंजेक्शन आठ हजार रुपए में बेचता रहा. सुनील के दो खास युवक आशीष व प्रशांत ने भी करीब 100 इंजेक्शन दवा बाजार में बेचकर 24 लाख रुपए कमाए.

जबलपुर में मोखा ने 50 लाख रुपए कमाए-

इसी तरह जबलपुर में सुनील ने पांच सौ इंजेक्शन सिटी अस्पताल के संचालक सरबजीतसिंह मोखा को 7-8 हजार रुपए में बेचकर 40 लाख रुपए कमाए, इसके मोखा ने इंजेक्शनों में अपना लाभ निकालकर जबलपुर क्षेत्र में अधिक रेट में बेचकर करीब 50 लाख रुपए से ज्यादा की कमाई की है.

एमपी से आरोपियों को मिले करीब डेढ़ करोड़ रुपए-

नकली इंजेक्शन से जुड़े कारोबारियों ने एक इंजेक्शन 35 से 40 हजार रुपए में बेचकर करीब डेढ़ करोड़ रुपए मध्यप्रदेश से कमाए है,

जबलपुर में पुलिस अधिकारी से संपर्क में रहा मोखा-

चर्चाओं में यह बात भी सामने आ रही है कि मोखा का मोबाइल भले ही एसआईटी के हाथ न लग पाया हो लेकिन सीडीआर से बहुत सी बातें साफ हो गई है,  जांच में पता चला कि एक सीएसपी की मोखा से रात 3 बजे तक बात हुई थी. वहीं एएसपी स्तर के अधिकारी से भी मोखा की बात हुई थी. हालांकि तब मोखा के खिलाफ कोई प्रकरण दर्ज नहीं हुआ था. एफआईआर दर्ज होने के बाद जिस मोखा को गायब बताया जा रहा था. उसने खुद फोन कर पुलिस को अस्पताल में भर्ती होने की जानकारी दी थी. तब मोखा को भी यही लग रहा था कि अधिकारी और मददगार चेहरे उसे बचा लेंगे.

इस कंपनी का पत्र भी जांच में अह्म-

पुलिस अधिकारियों की माने तो रेमडेसिविर इंजेक्शन बनाने वाली माइलान कंपनी को पत्र लिखा गया था. इसी नाम के नकली इंजेक्शन सिटी अस्पताल में 171 मरीजों को लगाए गए थे. कंपनी ने पत्र में स्पष्ट कर दिया है कि जिस बैच नंबर का जिक्र किया गया हैए उस बैच नंबर का इंजेक्शन उसने कभी जबलपुर में भेजा ही नहीं है. अब कंपनी नकली इंजेक्शन में मिले सफेद पाउडर की जांच करेगी कि इसमें क्या मिला है और यह कोविड मरीजों को किस तरह प्रभावित कर सकता है.

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