नजरिया. शिवसेना के चुनाव चिह्न पर सवालिया निशान के बीच शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे ने शुक्रवार को कहा कि- उनकी पार्टी का चुनाव चिन्ह तीर-धनुष कोई नहीं ले सकता ?
खबर है कि मातोश्री में प्रेस के समक्ष उन्होंने पार्टी के बागियों और बीजेपी को महाराष्ट्र में मध्यावधि चुनाव का सामना करने की चुनौती दी है!
यही नहीं, ठाकरे ने महाराष्ट्र में मध्यावधि चुनाव की मांग करते हुए कहा कि- उनके नेतृत्व वाली महा विकास आघाडी सरकार को जिस तरह से गिराया गया उसको लेकर जनता को अपना रुख स्पष्ट करने का मौका दिया जाना चाहिए ?
साथ ही, उनका यह भी कहना है कि- यदि चुनाव में लोग उनकी पार्टी का समर्थन नहीं करते हैं, तो वह इसे स्वीकार कर लेंगे, मध्यावधि चुनाव होने चाहिए, यदि हमने कोई गलती की है, तो लोग हमारा समर्थन नहीं करेंगे और यह हमें स्वीकार्य होगा!
ठाकरे का यह भी कहना है कि- 11 जुलाई 2022 को उच्चतम न्यायालय का आने वाला फैसला न केवल शिवसेना का भविष्य बल्कि भारतीय लोकतंत्र का भविष्य भी तय करेगा ?
सुप्रीम कोर्ट उस दिन शिवसेना के 16 बागी विधायकों को अयोग्य ठहराने के अनुरोध वाली याचिका पर अपना फैसला सुना सकती है!
खबरों की मानें तो इस दौरान ठाकरे ने शिवसेना के बागियों पर उस समय चुप्पी साधे रहने के लिए शब्दबाण चलाए और कहा कि- जब बीजेपी ने उन्हें और उनके परिवार को पिछले ढाई साल में निशाना बनाया और बदजुबानी की, आप उनके संपर्क में रहते हैं और अपनी ही पार्टी को इस तरह धोखा देते हैं ?
उद्धव ठाकरे का साफ कहना है कि- मुझे न्यायपालिका पर भरोसा है, बागी विधायकों को अयोग्य ठहराने के अनुरोध वाली याचिका पर उच्चतम न्यायालय का आदेश केवल शिवसेना तक ही सीमित नहीं होगा, बल्कि यह दिशा दिखाएगा कि लोकतंत्र किस तरफ जा रहा है ?
देश देख रहा है कि उच्चतम न्यायालय क्या फैसला देता है ?
क्योंकि.... यह देश में लोकतंत्र के भविष्य को भी रास्ता दिखाएगा और क्या लोकतंत्र के चारों स्तंभ अभी अपने कर्तव्यों का निर्वहन कर रहे हैं या नहीं ?
राजनीतिक जानकारों का मानना है कि उच्चतम न्यायालय के फैसले के बाद ही यह तय होगा कि कानून के साथ खेलनेवाला ऑपरेशन लोटस भविष्य में सियासी प्रदूषण फैलाने में कितना उपयोगी और असरदार रहेगा ?
इससे पहले की जनता सम्मान-रेखा लांघे, सुप्रीम कोर्ट विभिन्न अदालतों के फैसलों की समीक्षा करे ?
Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-अभिमनोजः महाराष्ट्र में मध्यावधि चुनाव! शरद पवार के दावे में कितना दम है?
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