नवीन कुमार
महाराष्ट्र के सियासी इतिहास में मुख्यमंत्री का ताज कांटों से ही सुशोभित दिखता रहा है. इससे राज्य के वर्तमान मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे भी अछूते नहीं हैं. महत्वाकांक्षा ने ही उन्हें सीएम बनने के लिए बागी बनाया. उन्होंने भाजपा के शिवसेना को खंडित करने के खेल को सफल बनाते हुए अपना भी सपना पूरा कर लिया. रिक्शा चालक से सीएम बन गए और अब खुद को आम आदमी का सीएम जताने की कवायद में लगे हुए हैं. शिवसेना में नेता रहते हुए उन्होंने यह सीखा कि कार्यकर्ता के रूप में काम करने से पहचान मिलती है. वही जोश सीएम बनने के बाद भी उनमें दिख रहा है. वह आम जनता के बीच जाकर उनकी समस्या को सुलझाने की कोशिश करते हैं. किसी भी घटना या दुर्घटना के दौरान वह एक कार्यकर्ता के रूप में काम भी कर रहे हैं. ज्यादा से ज्यादा समय वह अपने सियासी काम में देते हैं. इसका असर उनके स्वास्थ्य पर भी पड़ रहा है. वह बीमार भी रहने लगे हैं. उनके सहकर्मियों और शुभचिंतकों को उनके स्वास्थ्य की चिंता है. अस्वस्थ अवस्था में वह अपने गांव चले जाते हैं और खेत में समय गुजारते हुए अतिरिक्त ऊर्जा अपने अंदर भरकर मंत्रालय लौटते हैं. ऐसी दिनचर्या के बीच काम करने वाले शिंदे सियासी दबाव का बोझ भी उठा रहे हैं ताकि अपने विरोधियों के सामने कमजोर न दिखें.
भाजपा ने जब बागी शिंदे को सीएम बनाकर अपनी गोद में बिठाया तब वह एक दमदार नेता के रूप में उभरे थे. लेकिन जब भाजपा ने एनसीपी को तोड़कर अजित पवार गुट को शिंदे सरकार में शामिल किया तो उसके बाद से शिंदे को एक कमजोर नेता के रूप में पेश किया जाने लगा है. शिंदे की कुर्सी कब खिसच जाएगी कहा नहीं जा सकता है. अजित गुट सरकार में जिस तरह से काम कर रहा है उससे ऐसा दृश्य दिख रहा है कि शिंदे पर कुर्सी छोड़ने का दबाव डाला जा रहा है. मौके को भांपते हुए विपक्ष लगातार कह रहा है कि शिंदे की कुर्सी पर जल्द ही अजित विराजमान होंगे. फिलहाल अजित सरकार में देवेंद्र फडणवीस के बाद वाले उपमुख्यमंत्री हैं. एनसीपी से बगावत करने वाले अजित गुट को सरकार में शिंदे गुट से ज्यादा अहमियत मिल रही है. अजित के साथ उनके आठ विधायकों को मंत्री बना दिया गया. सरकार में शामिल होने से पहले ही अजित ने कहा था कि वह सीएम बनना चाहते हैं. अजित और उनके गुट की अहमियत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह के आगे भी बढ़ने लगी है. इसे शिंदे पर अलग तरह का दबाव माना जा रहा है. इसका एहसास शिंदे को है. मगर वह इसके विरोध में कुछ नहीं बोल सकते. बोलने पर बात वही होगी कि आ बैल मुझे मार.
वैसे, भाजपा महाराष्ट्र में अलग तरह का सियासी खेल खेल रही है. यह माना जा रहा है कि दागियों को बागी बनाया जा रहा है और सरकार में शामिल करके उसे बेदाग किया जा रहा है. शरद पवार हों या उद्धव ठाकरे हों या कांग्रेस सब यही कह रहे हैं कि ईडी के डर से लोग भाजपा सरकार में जा रहे हैं. इसमें काफी सच्चाई है कि महाराष्ट्र की वर्तमान सरकार में शिंदे और अजित गुट के कई विधायक ईडी की जांच में फंसे थे और अब जांच नहीं होने से वे राहत महसूस कर रहे हैं. इस तरह की बात अब बहुत आम हो गई है और राज्य की जनता को सब कुछ मालूम है. इसलिए विपक्ष ने यही बात ज्यादा दोहराने के बजाय अगले साल होने वाले लोकसभा और विधानसभा के चुनावों पर फोकस कर लिया है. इसके साथ ही मुंबई महापालिका का चुनाव भी पक्ष और विपक्ष के लिए मायने रखता है. इस चुनाव की भी घोषणा कभी भी हो सकती है. यह महापालिका देश का सबसे धनी महापालिका है. इस पर अब तक उद्धव ठाकरे की शिवसेना का राज रहा है. लेकिन अब इस पर भाजपा सत्ता करना चाहती है जिसके लिए उसे शिंदे और अजित गुट का पूरा समर्थन मिलेगा. ठाकरे गुट भी अपनी तैयारी में कोई कमी नही कर रहा है. इसके लिए उसे कांग्रेस के साथ शरद पवार गुट का सहयोग मिल सकता है. अगर सहयोग वाली रणनीति कामयाब हुई तो चुनाव के नतीजे भी चौंकाने वाले हो सकते हैं.
पक्ष और विपक्ष अपने चुनावी समीकरण पर जिस तरह से काम कर रहे हैं उसमें पक्ष और विपक्ष दोनों गठबंधन में काफी उठापटक भी दिख रहे हैं. इसमें सबसे ज्यादा चर्चा में शिंदे हैं. शिंदे पर तो सबसे बड़ा दबाव सीएम की कुर्सी छोड़ने को लेकर है. विपक्ष भी लगातार कह रहा है कि शिंदे की जगह अजित सीएम बनेंगे. इसका जवाब देते हुए भाजपा के कुछ नेता कह रहे हैं कि 2024 के चुनाव तक शिंदे ही सीएम हैं. इसका यह भी मतलब निकाला जा रहा है कि शिंदे 2024 के चुनाव के बाद सीएम नहीं होंगे. उधर अजित गुट यह खुलकर नहीं कह रहा है कि शिंदे ही सीएम रहेंगे. अलबत्ता अजित गुट के नेता कह रहे हैं कि अजित पवार मुख्यमंत्री बन सकते हैं. खुद अजित ने भी कहा है कि अभी मुख्यमंत्री की वेकैंसी नहीं है. यानी आने वाले समय में अजित के लिए यह वेकैंसी आ सकती है. वैसे, शिंदे सहित उनके गुट के 16 विधायकों पर अयोग्यता की तलवार लटकी हुई है. इस पर विधानसभा अध्यक्ष क्या फैसला सुनाते हैं उस पर सबकी नजर है. हालांकि, इसको लेकर शिंदे ने अपना विश्वास नहीं खोया है. वह आश्वस्त हैं कि फैसला उनके ही पक्ष में आएगा. शिंदे पर यह भी एक तरह का दबाव है और इसे भी वह अपनी तरह से झेल रहे हैं.
यह तो सच है कि शिंदे ने जब भाजपा के साथ मिलकर सरकार बनाई तब उन पर किसी तरह का दबाव नहीं था. दबाव तंत्र तो अजित गुट के सरकार में शामिल होने के बाद बढ़ा है. वह अपने गुट के उन सारे विधायकों को मंत्री पद नहीं दिला पाए जिनसे उन्होंने वादा किया था. शिंदे की तरह उनके गुट के सभी विधायक बागी बनने वाले नहीं थे. लालच तो थी ही कि उद्धव ठाकरे सरकार में मंत्री नहीं बन पाए तो शिंदे सरकार में मंत्री पद का लाभ उठाएंगे. अब शिंदे गुट के विधायक आवाज उठाने लगे हैं. क्योंकि, अजित गुट के आठ विधायकों को कैबिनेट स्तर के मंत्री पद की शपथ दिला दी गई. शिंदे इससे पहले से ही अपने गुट के विधायकों के दबाब को झेल रहे हैं. उनके गुट के विधायक भरत गोगावले ने दावा किया कि कई विधायकों ने मंत्री बनने के लिए शिंदे पर यह कहकर दबाव बनाया कि अगर उन्हें मंत्री नहीं बनाया तो उनकी पत्नी खुदकुशी कर लेगी. एक विधायक ने यह कहकर मंत्री पद पाया कि अगर उसे मंत्री नहीं बनाया तो नारायण राणे उनकी राजनीति खत्म कर देंगे. दबाव का एक तरीका यह भी रहा कि अगर मंत्री नहीं बनाया तो इस्तीफा देकर सरकार से बाहर हो जाएंगे. विधायक बच्चू कडू तो खुलकर मंत्री पद मांग रहे हैं. गोगावले स्वयं मंत्री बनने का इंतजार कर रहे हैं. शिंदे अपने विधायकों को खुश करने के लिए दिल्ली का चक्कर लगा चुके हैं. दिल्ली दरबार भी शिंदे पर अलग तरह का दबाव डाल रखा होगा. ऐसे में शिवसेना के बागी विधायकों के अंदर यह भावना पैदा हो रही है कि शिंदे अब कमजोर पड़ रहे हैं. एक कार्यक्रम में शिंदे के नहीं पहुंच पाने से उनका नाम हटाकर उनकी कुर्सी पर अजित को बिठा दिया गया जिसको लेकर काफी चर्चा हुई. शिंदे पर भाजपा का दबाव शुरू से ही रहा है. कुछ मामलों में उनसे पहले उपमुख्यमंत्री फडणवीस ही फैसला ले लेते हैं. ताजा मामला प्याज को लेकर है. केंद्र ने प्याज का निर्यात शुल्क 40 फीसदी बढ़ा दिया है जिससे किसान परेशान हैं. इस पर जापान से ही फडणवीस ने अमित शाह से बात की और 2410 रूपये प्रति क्विंटल के दर से दो लाख टन प्याज खरीदने का फैसला ले लिया. इससे किसानों के बीच अपनी छवि बनाने का मौका सीएम शिंदे को नहीं मिल पाया. दबाव के इन सारे तरीकों को झेलते हुए शिंदे सियासी मुकाबले के लिए डटे हुए हैं.
Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-चाचा-भतीजे के पारिवारिक खेल में उलझ गई महाराष्ट्र की राजनीति
#महाराष्ट्र में उलझा सियासी समीकरण, कई मोर्चों पर असमंजस के हालात?
रतन टाटा को मिला उद्योग रत्न अवॉर्ड, महाराष्ट्र सरकार ने बिजनेस टाइकून को किया सम्मानित
#महाराष्ट्र गोदावरी परुलेकर.... जिन्होंने पहला संगठित साक्षरता अभियान शुरू किया!
#MaharashtraPolitics शरद पवार पर निर्भर महाराष्ट्र की सियासी दशा और दिशा?
महाराष्ट्र : ठाणे के सरकारी अस्पताल में हाहाकार, एक ही रात में 17 मरीजों की मौत
चुनाव पूर्व ओपिनियन पोल के भंवर जाल में फंसे महाराष्ट्र के राजनीतिक दल