भवानी अष्टकम स्त्रोत्र का पाठ सम्पूर्ण मनोकामनएं पूर्ण करता

भवानी अष्टकम स्त्रोत्र का पाठ सम्पूर्ण मनोकामनएं पूर्ण करता

प्रेषित समय :20:51:25 PM / Sun, Mar 3rd, 2024
Reporter : reporternamegoeshere
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जगत गुरु आदि शंकराचार्य ने भवानी अष्टकम की रचना की है. माँ भगवती के चरणों को समर्पित है यह सुन्दर रचना. यह स्तोत्र भवानी अष्टकम न केवल दिव्य है बल्कि भक्ति और प्रेम से भर देता है.
भवानी अष्टकम लिखने के पीछे की कहानी इस प्रकार है. जैसा कि हम सभी जानते हैं कि आदि शंकर भगवान शिव के परम भक्त थे. हालाँकि, उन्होंने भगवान शिव की स्तुति में कई श्लोक लिखे लेकिन भगवती के बारे में कुछ नहीं लिखा.
एक बार ऐसा हुआ कि जगत गुरु आदि शंकराचार्य बीमार पड़ गया और उसे अत्यधिक प्यास लगी. लेकिन वह खुद पानी का गिलास उठाकर भी पानी का गिलास नहीं उठा सकते थे बह शरीर से इतने कमजोर हो चुके थे. उस समय माता भगवती प्रकट हुई परन्तु लेकिन उनकी मदद नहीं की.

जब गुरु जी ने माता से पूछा कि वह उनके इस रोग का इलाज क्यों नहीं कर रही है. तब माता भवानी ने उत्तर दिया कि अब आपके भगवान शिव कहाँ हैं जिनकी स्तुति में आपने इतनी कविताएँ लिखी हैं.

आप भगवान शिव से मदद मांगें. अंत में, आदि शंकराचार्य को अपनी गलती का एहसास हुआ और भवानी अष्टकम की रचना हुई | भक्ति का अमृत शक्ति उपासकों तक भी पहुंचना चाहिए. इसलिए उन्होंने यह मनमोहक भवानी अष्टकम लिखा है.

भवानी अष्टकम में माँ भवानी की स्तुति में आठ श्लोक हैं जिसमें माता के कठोर रूप का वर्णन हैं फिर भी दया से भरी हुई हैं. इसके अलावा, मां भवानी जो कोई भी इस स्तोत्र को प्यार और पूरी भक्ति के साथ पढ़ता है, वह शक्ति, स्वास्थ्य और धन प्रदान करता है.

भवानी अष्टकम स्त्रोत्र हिंदी अर्थ के साथ. 

न तातो न माता न बन्धुर्न दाता
न पुत्रो न पुत्री न भृत्यो न भर्ता.
न जाया न विद्या न वृत्तिर्ममैव
गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि॥१॥
हिंदी अर्थ:- हे भवानी! पिता, माता, भाई बहन, दाता, पुत्र, पुत्री, सेवक, स्वामी, पत्नी, विद्या और व्यापार – इनमें से कोई भी मेरा नहीं है, हे भवानी माँ! एकमात्र तुम्हीं मेरी गति हो, मैं केवल आपकी शरण हूँ.
भवाब्धावपारे महादुःखभीरु
पपात प्रकामी प्रलोभी प्रमत्तः.
कुसंसारपाशप्रबद्धः सदाहं
गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि॥२॥
हिंदी अर्थ:- हे भवानी माँ, मैं जन्म-मरण के इस अपार भवसागर में पड़ा हुआ हूँ, भवसागर के महान् दु:खों से भयभीत हूँ. मैं पाप, लोभ और कामनाओ से भरा हुआ हूँ तथा घृणायोग्य संसारके (कुसंसारके) बन्धनों में बँधा हुआ हूँ. हे भवानी! मैं केवल तुम्हारी शरण हूँ, अब एकमात्र तुम्हीं मेरी गति हो.
न जानामि दानं न च ध्यानयोगं
न जानामि तन्त्रं न च स्तोत्रमन्त्रम्.
न जानामि पूजां न च न्यासयोगं
गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि॥३॥
हिंदी अर्थ:- हे भवानी! मैं न तो दान देना जानता हूँ और न ध्यानयोग मार्ग का ही मुझे पता है. तंत्र, मंत्र और स्तोत्र का भी मुझे ज्ञान नहीं है. पूजा तथा न्यास योग आदि की क्रियाओं को भी मै नहीं जानता हूँ. हे देवि! हे माँ भवानी! अब एकमात्र तुम्हीं मेरी गति हो, मुझे केवल तुम्हारा ही आश्रय है.
न जानामि पुण्यं न जानामि तीर्थ
न जानामि मुक्तिं लयं वा कदाचित्.
न जानामि भक्तिं व्रतं वापि मार्त
गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि॥४॥
हिंदी अर्थ:- हे भवानी माता! मै न पुण्य जानता हूँ, ना ही तीर्थों को, न मुक्ति का पता है न लय का. हे मा भवानी! भक्ति और व्रत भी मुझे ज्ञान नहीं है. हे भवानी! एकमात्र तुम्हीं मेरी गति हो, अब केवल तुम्हीं मेरा सहारा हो.
कुकर्मी कुसङ्गी कुबुद्धिः कुदासः
कुलाचारहीनः कदाचारलीनः.
कुदृष्टिः कुवाक्यप्रबन्धः सदाहं
गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि॥५॥
हिंदी अर्थ:- मैं कुकर्मी, कुसंगी (बुरी संगति में रहने वाला), कुबुद्धि (दुर्बुद्धि), कुदास(दुष्टदास) और नीच कार्यो में ही प्रवत्त रहता हूँ (सदाचार से हीन कार्य), दुराचारपरायण, कुत्सित दृष्टि (कुदृष्टि) रखने वाला और सदा दुर्वचन बोलने वाला हूँ. हे भवानी! मुझ अधम की एकमात्र तुम्हीं गति हो, मुझे केवल तुम्हारा ही आश्रय है.
प्रजेशं रमेशं महेशं सुरेशं
दिनेशं निशीथेश्वरं वा कदाचित्.
न जानामि चान्यत् सदाहं शरण्ये
गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि॥६॥
हिंदी अर्थ:- हे माँ भवानी! मैं ब्रह्मा, विष्णु, शिव, इन्द्र को नहीं जानता हूँ. सूर्य, चन्द्रमा,तथा अन्य किसी भी देवता को भी नहीं जानता हूँ. हे शरण देनेवाली माँ भवानी! तुम्हीं मेरा सहारा हो, मैं केवल तुम्हारी शरण हूँ, एकमात्र तुम्हीं मेरी गति हो.
विवादे विषादे प्रमादे प्रवासे
जले चानले पर्वते शत्रुमध्ये.
अरण्ये शरण्ये सदा मां प्रपाहि
गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि॥७॥
हिंदी अर्थ:- हे भवानी! तुम विवाद, विषाद में, प्रमाद, प्रवास में, जल, अनल में (अग्नि में), पर्वतो में, शत्रुओ के मध्य में और वन (अरण्य) में सदा ही मेरी रक्षा करो, हे भवानी माँ! मुझे केवल तुम्हारा ही आश्रय है, एकमात्र तुम्हीं मेरी गति हो.
अनाथो दरिद्रो जरारोगयुक्तो
महाक्षीणदीनः सदा जाड्यवक्त्रः.
विपत्तौ प्रविष्टः प्रनष्टः सदाहं
गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि॥८॥
हिंदी अर्थ:- हे माता! मैं सदा से ही अनाथ, दरिद्र, जरा-जीर्ण, रोगी हूँ. मै अत्यन्त दुर्बल, दीन, गूँगा, विपद्ग्रस्त (विपत्तिओं से घिरा रहने वाला) और नष्ट हूँ. अत: हे भवानी माँ! अब तुम्हीं एकमात्र मेरी गति हो, मैं केवल आपकी ही शरण हूँ, तूम्हीं मेरा सहारा हो.
॥इति श्रीमच्छड़्कराचार्यकृतं भवान्यष्टकं सम्पूर्णम्॥

Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-

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