आतंकिस्तान : नहाय क्या निचोय क्या ?

मित्रों यह लेख मैंने 23 सितंबर 2017 को लिखा था . इस आलेख में 2 साल पूर्व की पाकिस्तानी अर्थव्यवस्था का सटीक विश्लेषण विभिन्न सूचना वाले को एवं जानकारियों के आधार पर कर दिया गया था. अगर पाकिस्तान की प्रोमिलिट्री डेमोक्रेसी मैं किसी भी तरह का प्रोग्रेसिव नजरिया दिखाई देता तो निश्चित तौर पर बीते 2 सालों में भारत पाकिस्तान से इतना मजबूत नहीं होता जितना कि आज की स्थिति में है आज युद्ध की संभावना हो या ना हो युद्ध की स्थिति बनी हुई है. एक कहावत है कि छोटी सोच और पैर की मोच कभी भी दौड़ने नहीं देती दौड़ने क्या चलने भी नहीं देती !.... और पाकिस्तान ने अपनी छोटी सोच के चलते अपने संपूर्ण विकास कार्यक्रमों के बारे में ना सोचते हुए केवल हिंसक बर्ताव अपने हमसाए मुल्क यानी हमारे हिंदुस्तान से जारी रखा. सुधि पाठकों हिंसा किसी भी स्थिति में ग्लोबल व्यवसायिकता के दौर में किसी भी देश के लिए लाभकारी नहीं हो सकती आइए देखें 23 सितंबर 2017 का यह आलेख पसंद आए तो शेयर अवश्य करें भारतीय उपमहाद्वीप क्षेत्र में आतंक का आवास बना पाकिस्तान कितना भी कोशिश करे भारत की बराबरी कदापि नहीं कर सकता । बावज़ूद इसके की चीन का उसे सपोर्ट हासिल है । चीन से इसकी रिश्तेदारी केवल एक आभासी वर्चुअल रिश्तेदारी है । रहा सवाल पाकिस्तान की आतंकी आश्रय शाला का तो वह अपनी आवाम की जगह आतंक को सर्वाधिक बड़ी जवाबदेही मानता है । कारण यह भी है कि टेरेरिज्म से पाक सेना को राहत मिलती है । यानी पाकिस्तान आतंकियों आउटसोर्सिंग से सैन्यकर्मियों की पूर्ति करते हुए मिलिट्री स्थापना व्यय  कम करता है ।  भारतीय विदेशी मुद्रा भण्डार नवीनतम प्रकाशित आंकड़ों के आधार पर 400.72 अरब USD हो गया . यह समाचार भारतीयों के लिए एक सुखद एवं उत्साहित करने वाली खबर है.  सरकारी मुद्दों पे संवेदित खबरिया चैनल का एक विश्लेषण देखिये  NDTV ने अपनी खबर में भारतीय विदेशी मुद्रा भण्डार के मामले में अपनी छोटी किन्तु असरदार रिपोर्ट में स्वीकारा है कि भारत में अप्रत्याशित ढंग से विदेशी मुद्रा भण्डार में इजाफा हुआ है. सितम्बर 2017 में हुई समीक्षा के हवाले से प्रकाशित समाचार के अनुसार :-    रिजर्व बैंक के आंकड़ों के अनुसार विदेशी मुद्रा भंडार में इस बढ़ोतरी की प्रमुख वजह विदेशी मुद्रा परिसंपत्तियों (एफसीए) का बढ़ना है. समीक्षा अधीन सप्ताह में यह 2.56 अरब डॉलर बढ़कर 376.20 अरब डॉलर हो गईं. देश का स्वर्ण भंडार इसी अवधि में बिना किसी बदलाव के 20.69 अरब डॉलर पर अपरिवर्तित रहा. भारत का विदेशी ऋण 13.1 अरब डॉलर यानी 2.7% घटकर 471.9 अरब डॉलर रह गया है. यह आंकड़ा मार्च, 2017 तक का है. इसके पीछे प्रमुख वजह प्रवासी भारतीय जमा और वाणिज्यिक कर्ज उठाव में गिरावट आना है. आर्थिक मामलों के विभाग की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि 2015-16 के मुकाबले 2016-17 में हालत बेहतर हुए हैं और ऋण प्रबंधन सीमाओं के तहत बना हुआ है. मार्च, 2017 की समाप्ति पर सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) और विदेशी ऋण का अनुपात घटकर 20.2% रह गया है, जो मार्च 2016 की समाप्ति पर 23.5% था. मार्च, 2017 की समाप्ति पर लॉन्ग टर्म विदेशी कर्ज 383.9 अरब डॉलर रहा है जो पिछले साल के मुकाबले 4.4% कम है. समीक्षावधि में कुल विदेशी ऋण का 81.4% लॉन्ग टर्म विदेशी ऋण है. उपरोक्त समाचार के साथ साथ जब हमने दक्षिण एशिया के अन्य प्रमुख देशों पाकिस्तान और बंगला देश की आर्थिक स्थिति की पता साजी की तो ज्ञात हुआ कि दक्षिण एशिया में पाकिस्तान एक फिसड्डी देश है बेशक बंगला देश से भी पीछे . भारत के खजाने में 400.72 अरब डालर , बांगला देश में 33 अरब  डालर , तो आतंकिस्तान में कुल 20 अरब डालर शेष है.  पाकिस्तान को 1 डालर के मुकाबले 105.462  पाकिस्तानी रूपए खर्च करने होते हैं . जबकि भारत में एक डालर 64.80 बांगला देश में 1 USD के लिए 81.93 टके खर्च करने होते हैं .  उसका विदेशी मुद्रा भण्डार इसी तरह कम होता रहेगा तो पाकिस्तान के पास केवल तीन विकल्प शेष  हैं    एक - अपने रूपए का अवमूल्यन करे    दो   - विश्व मुद्रा कोष सहायता ले.  तीन   -  चीन से मदद में तेज़ी आए सबसे पहले तीसरे बिंदु का खुलासा करना ज़रूरी है कि चीन से उसे मदद मिलती रहेगी. किन्तु चीन की मदद एक ऐसे ब्याजखोर साहूकार की होती है जो भविष्य में सर्वाधिक शोषण करता है. ऐसी स्थिति की जिम्मेवारी पाकिस्तानी सैन्य डेमोक्रेटिक सिस्टम की है. साथ ही आप समझ पा रहे होंगे कि पाकिस्तान अब बेहद नाज़ुक दौर से गुज़र रहा है.  मौद्रिक अवमूल्यन तब सफल साबित  होता है जबकि देश में विकास  की धारा बहाने के वैकल्पिक रास्ते मौजूद हों . पाकिस्तान में ऐसा नहीं है वहां मानवता कराहती है जिसकी चीखें विश्व को सुनाई नहीं दे रहीं चिकित्सा ,शिक्षा, और आतंरिक सुरक्षा एवं भयमुक्त समाज निर्माण  के मामलों में पाकिस्तानी फैडरल एवं राज्यों की  सरकारें  असहाय एवं सफल हैं.   विकास गतिविधियों में फिसड्डी आतंकिस्तान को सितम्बर 2017 यूएन की 72 वीं सालाना बैठक में विश्वसमुदाय के सामने बेहद अपमानजनक परिस्थियों का सामना तक करना पड़ा है. किसी भी राष्ट्र के प्रबंधन कर्ताओं का धर्म लोकसेवा है न कि आत्मकेंद्रित होकर स्वयं का भला करना . पाकिस्तानी मीडिया अब तो खुल के आरोप लगाने लगा है कि – “पाकिस्तान के नेता अपने बच्चों को पाकिस्तान में रहने नहीं देते क्योंकि न तो वे पाकिस्तान को उनकी पौध के काबिल समझते और न ही खुदके रहने लायक समझतें हैं” इसी सितम्बर 2017 यूएन की 72 वीं सालाना भारत ने  खुले तौर पर एक दिन पाकिस्तान को आतंकिस्तान का दर्ज़ा दिया दूसरे दिन वजीर-ए-खारजा श्रीमती सुषमा स्वराज ने बता दिया कि हम विकास के पैरोकार हैं जबकि पाकिस्तान आतंक का न केवल पैरोकार है बल्कि वो विश्व के लिए भी खतरा बन गया है.  आइये एक नज़र इन दौनों देशों की आर्थिक स्थिति पर एक नज़र डालतें हैं  1.     विकासदर :- भारत – 7.57 पाकिस्तान :- 4.71 2.     प्रति नागरिक आय :- भारत – 5,350 पाकिस्तान :- 4,840 3.     बेरोजगारी :-  भारत – 3.6 , पाकिस्तान – 5.2      ये आंकड़े इस बात का सबूत हैं कि भारत किस प्रकार एक बड़ी जनसंख्या को प्रबंधित करते हुए विकास पथ पर अग्रसरित है जबकि पाकिस्तान 13 वीं बार अन्तराष्ट्रीय मुद्राकोष की शरण में जाने की दिशा में है . हालांकि भारतीय प्रतिव्यक्ति आय पाकिस्तान के सापेक्ष बहुत उत्साहित करने योग्य नहीं है तथापि यहाँ आप जान लीजिये कि भारत का अर्थतंत्र तेज़ी से पर कैपिटा इनकम को अगले तीन सालों में बहुत आगे ले जा सकता है और इसे चीन के सापेक्ष 13 से 14 हज़ार डालर तक आसानी से ले जावेगा . याद रखना होगा कि यह तथ्य भारतीय युवा जनसंख्या की कर्मठता , आतंरिक एवं सीमाओं पर शान्ति एवं विदेशी निवेश से होगा. इस विकास-प्रवाह को बनाए रखने के लिए समूचे राष्ट्र को बिना आपसी (सियासी, धार्मिक, क्षेत्रीयतावादी, जातिवादी ) संघर्ष के केवल राष्ट्र हित में सोचते और करते रहना होगा . अगर अगले तीन साल में हम चीन से आगे निकल गए तो कोई भी ताकत भारत के पासंग  अगले कम से कम  500 साल तक न बैठ सकेंगीं . इसी के सापेक्ष पाकिस्तान तेज़ी नीचे जा सकता है क्योंकि उसके पास सामाजिक  आर्थिक विश्लेषण के लिए समय नहीं है बल्कि अगर समय  है भी तो सियासी-इच्छा शक्ति आर्मी डामिनेटेड फैडरल प्रबंधन के कारण कश्मीर बलूच सिंध जैसी समस्याओं के साथ साथ आतंरिक आतंकवाद से जूझने पर खर्च करतें हैं . ऐसा नहीं है कि वहां {पाकिस्तान में } मेरे जैसी उम्र वाले विचारक न होंगे कर्मठ युवा न होंगें परन्तु उस तिलिस्मी देश के  अभागे नागरिकों को धर्मान्धता , भारत के खिलाफ उकसाने और झूठा इतिहास बताने का धीमा ज़हर  बाकायदा दिया जाता है. और भारतीय मुसलमान भारतीय अर्थतंत्र में एक बड़ी भूमिका का निर्वाह हुए अर्थतंत्र को मज़बूती देते नज़र आते हैं . एक छोटे से नगर जबलपुर (मप्र )का उदाहरण लें तो आप साफ़ समझ जाएंगे कि भरतीपुर जैसी जगह में मस्जिद, गुरुद्वारा , चर्च, और मंदिर में सबकी आस्थाएं परवान चढ़ रहीं होतीं हैं सभी एक दूसरे के साथ भारतीय बन के रहतें हैं. न कि हिन्दू-मुस्लिम-सिख-ईसाई बनकर ..! उसके पीछे आत्मीय संबंधो का सिंक्रोनैज़ेशन है. जबकि पाकिस्तान में ऐसा नहीं है. वहां तो आतंक की जड़ें बेहद गहरीं हैं . ये सभी लोग जानतें हैं. हाफ़िज़ सईंद इसका सर्वोच्च उदाहरण हैं . कहाँ गया होगा  पाकिस्तान को मिला विदेशी पैसा ..? ऐसी स्थिति में पाकिस्तान अनिवार्यरूप से मुद्राकोष से वित्तीय मदद अवश्य लेगा. और  IMFA से मिलने वाले संभावित धन से भी कोई लाभ मुझे तो नज़र नहीं आता . आपको याद होगा कि 1980 में पाकिस्तान ने 12वीं बार IMFA से वित्तीय मदद ली  थी , और भारत को वर्ष 1991 में सहायता मिली थी. पाकिस्तान  70 सालों में चीनी इमदाद से इतर 13वीं बार एक बार फिर कटोरा लिए खडा है. 12 बार अमेरीकी इमदाद के साथ संभावित रूप से बड़ा  क़र्ज़ लेने वाले पाकिस्तान ने प्राप्त धन का उपयोग न तो विकास में किया न ही जीवन-समंकों को सुधारने में बल्कि अब तो सवाल ये है कि इतनी मदद भारत को आज़ादी के बाद से हासिल होना शुरू हो जाती तो भारत आज के भारत से 25 साल आगे होता.  पाकिस्तान के सन्दर्भ में देखें तो आपको समझ आएगा कि उसे मिलने वाली विदेशी धनराशी भारत के खिलाफ आतंक, गुड और बैड आतंकवाद वाले  सैनिक प्रशासन के सिद्धांत के चलते कपूर हो गया होगा. बचा-खुचा धन भ्रष्टाचार के हवन कुंड में अवश्य ही गया होगा .  पाकिस्तानी रूपए के अवमूल्यन के क्या परिणाम होंगे ..? सुधि पाठको , बेहद विस्तार से पाकिस्तानी अर्थशास्त्र को आपने पूर्व के पैराग्राफ देख ही लिया होगा , फिर भी बताना ज़रूरी है कि – पाकिस्तानी दुष्प्रबंधन में  अर्थव्यवस्था में तेज़ी से मुद्रा स्फीति एवं मूल्यों की अस्थिरता के चलते घरेलू उत्पादकता घटेगी बावजूद इसके कि कई मामलों में पाकिस्तान के पास सिंध और बलोचस्तान में प्रचुर मात्रा में खनिज संसाधन हैं तथा कृषि उत्पादों के कुछ मामलों में तो पाकिस्तान भारत से अधिक उत्तम है का भी लाभ पूंजी के अभाव में न मिल सकेगा क्या भारत से पाकिस्तान युद्ध करेगा ? इस सवाल का उत्तर ग्लोबलाईजेशन के इस युग में नहीं में है. बल्कि अगर भारत के साथ युद्ध किया भी गया तो “अबकी बार पाक में भारत सरकार” की स्थिति को नकारना भी गलत ही होगा. भारत ने विश्व के समूचे अतिमहत्वपूर्ण देशों के साथ स्नेहिल रिश्ते बना लिए . विश्व के आम नागरिक भारतीय संस्कृति , इसकी डेमोक्रेसी, के प्रशंसक भी हैं . इस बात का इल्म पाकिस्तान सरकार को और उनके सैन्य प्रशासन को है. वे  कभी भी ऐसा नहीं करेंगे . साथ ही युद्ध का विचार कुछ लोगों के मन में अवश्य है परन्तु वे यदि ऐसा करते हैं तो तय है कि युद्धोंमादित उत्साह रुदन में बदलने में कोई विलम्ब न होगा. मेरे मित्र अक्सर पूछतें हैं कि – चीन ने डोकलाम के बाद भारत से सम्बन्ध सुधार लिए हैं ..? मेरा उत्तर यही होता है कि – “पाकिस्तान चीन के सामने आया एक भिक्षुक है भारत चीन के बीच व्यावसायिक सम्बन्ध हैं. अब बताएं आप चीन होते मैं भारत होता और रामलाल जी पाकिस्तान होते तो ऐसी स्थिति में आप किसके साथ कॉफ़ी हाउस जाते ?” मित्र मुस्कुराकर कहते कोई भी अध्यात्मिक भिक्षुकों के अलाव दरवाजे पर आए भिखारी के साथ कॉफी तो क्या पानी भी न पिएगा.. हा...हा...हा..!

गिरीश बिल्लोरे “मुकुल” के अन्य अभिमत

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