पालघर पर टिप्पणी मत करो सवाल के उत्तर दे दो

इस आर्टिकल को किसी भी स्थिति में सांप्रदायिक नजरिए से पढ़ने की आवश्यकता नहीं है क्योंकि यह आर्टिकल केवल लचर प्रशासनिक व्यवस्था पर प्रकाश डाल रहा है. लल्लनटॉप के इस प्रसारण को देखें जिसमें स्थिति बेहतर स्पष्ट रुप से विश्वास करने योग्य है जिसमें उन्होंने आवश्यकता को रेखांकित किया है. इस रिपोर्ट में सौरभ द्विवेदी साफ तौर पर कहते हैं कि उस स्थान पर रहने वाले लोग उग्र थे कारण था उस क्षेत्र में बच्चोंं का अपहरण हो जाना. वहां के निवासियोंं द्वारा जन रक्षक समिति बनाकर अनजान लोगों को प्रताड़ित करना शुरू कर दिया. इतना ही नहीं उन्होंने एक डॉक्टर और पुलिस को भी लिंचिंग का टारगेट बनाया. स्पष्टट है कि पल भर के पुलिस प्रशासन ने 8 दिन सेे चली आ रही कथित परिस्थिति पर कोई फुलप्रूफ कार्यक्रम तैयार नहीं किया. और यह घटना हो गई. इस आलेख का यह आशय कदापिि नहीं की हम किसी संप्रदाय बिंदु को यहां प्रमुखता दे रहे हैं
हमारे प्रश्न है कि सोशल मीडिया के रिस्पांस बिल ठेकेदार खासतौर पल-पल में ट्वीट करने वाली सेलिब्रिटी जो आधी रोटी में दाल लेकर उच्च करना शुरू कर देते हैं ने महाराष्ट्र सरकार को क्या क्या और कैसे कैसे सुझाव दिए. पर आप जानते हैं की
आयातित विचारधारा की  भीड़ ने  कसम खा ली है कि वह पालघर का जिक्र ना करेंगे और ना ही वे किसी भी स्थिति में अवार्ड वापस करेंगे. क्योंकि अब उनके पास अवार्ड नहीं बचे हैं और पालघर में जो हुआ वह होना ही था क्योंकि गलतफहमी हो गई थी . है न इस तरह की गलतफहमी का अर्थ है कि अगर आप यानी केवल आप गलतफहमी में  कानून हाथ में लें तो ले सकते हैं !
पता नहीं कौन सा संविधान इनके पास है जिस पर यह चलते हैं . यही आतंकवाद है यही नक्सलवाद है.
चलो ठीक है कुछ मत करो संवेदनाएं तो है नहीं तो व्यक्त क्या करोगे. यदि संवेदना नहीं है तो मेरे कुछ सवालों का जवाब दे दो . नीचे दिए प्रश्नों को देखकर आप महसूस करेंगे कि कुछ प्रश्न काफी तीखे हैं परंतु यह बात नहीं है ऐसे प्रश्न सहज और जरूरी भी तो हैं.
1. गलतफहमी या भ्रम किसी की हत्या का अधिकार देता है क्या ऐसा कोई संशोधन बिल महाराष्ट्र में पास हो गया है
2. जिन भी लोगों पर प्राथमिकी दर्ज की है उनकी सूची साथ में जारी क्यों नहीं की गई
3. क्या वहां बच्चा चोरी करने की घटनाएं आमतौर पर होती रहती है पालघर से कितने बच्चे चोरी हुए हैं उनकी लिस्ट तो थाने में मौजूद होगी ना उसे प्रकाशित क्यों नहीं किया. यहां समझने की यह बात भी है कि पुलिस स्वयं कथित तौर पर मॉब लिंचिंग की शिकार हुई है तो क्या पुलिस ने कोई फुलप्रूफ कार्रवाई की.
4. पुलिसवाला मॉब को नियंत्रित रखने में सक्षम नहीं था तो क्या उस पास मोबाइल भी नहीं था कि वह अतिरिक्त फोर्स मांग ले क्या आपने उसकी एफ आई आर भी की है
5. गलती और गलतफहमी से हुई हत्या हत्या नहीं होती इसे किस रनिंग में रख रहे हैं आप .
6. साधुओं की ₹50000 और सोने की कीमती धातु से बनी पूजन सामग्री गलती से लूटी है या गलतफहमी से
7. इसे मॉब लिंचिंग नहीं कहा जा सकता यह सुनियोजित हत्या है जिसमें महाराष्ट्र पुलिस का सिपाही भी शामिल है यद्यपि ऐसा लगता है कि वह स्वयं को असहाय महसूस कर रहा है. पुलिस वाला एक था या एक से अधिक किस बात की पुष्टि वीडियो से जो हमने देखा नहीं हो पा रही है
8. महाराष्ट्र के गांव में अव्यवस्था का अर्थ क्या निकालें
इन सवालों का जवाब आप देंगे या रवीश कुमार स्वरा भास्कर अथवा आयातित विचारधारा का कोई शीघ्र बताएं .
आलेख में हम बार-बार यह कहना चाहते हैं कि यह व्यवस्था पर प्रहार है ना कि किसी जाति धर्म वर्ण से संबंधित ही है.

गिरीश बिल्लोरे “मुकुल” के अन्य अभिमत

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