क्या 40 करोड़ लोग जा सकतें है आय के निचले स्तर पर ?

कोरोनावायरस संक्रमण का भारतीय अर्थव्यवस्था पर गहरा प्रभाव पड़ सकता है यह जानकारी विश्व श्रम संगठन जिसे इंटरनेशनल लेबर ऑर्गेनाइजेशन भी कहा जाता है जिसका प्रधान कार्यालय जिनेवा स्विट्जरलैंड में स्थित है द्वारा जारी ताजा रिपोर्ट में कहा गया है कि इससे अगले 6 माह में ही बेहद नकारात्मक परिणाम देखने को मिल सकते हैं
विश्वव्यापी लॉक डाउन के स्थिति उत्पन्न हो सकती है इसका यह आशय नहीं है की लॉक डाउन से नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है बल्कि यह है कि जीवन बचाने के लिए विश्व की सरकारों द्वारा किया जा रहा है यह प्रभावी कार्य एक ऐसी परिणीति भी दे सकता है जिसका अनुमान सामान्य लोग वर्तमान में नहीं लगा पा रहे
आईएलओ का मानना है कि विश्व में 75 खरब की जनसंख्या है जिसका 33 खरब हिस्सा वर्किंग फोर्स के रूप में चिन्हित है
श्रम संगठन की रिपोर्ट बताती है कि वर्किंग फोर्स अर्थात 33 खरब आबादी का 81% हिस्सा जो लगभग दो खरक से अधिक होगा बुरी तरह प्रभावित हो सकता है
यह वैश्विक आंकड़ा है भारत जी इस आंकड़े में ब्राजील और नाइजीरिया के साथ सम्मिलित किया गया है उसका कारण बताते हुए श्रम संगठन का मानना है कि यहां 90% जनसंख्या इनफॉरमल सेक्टर मैं कार्य कर रही है
यही हो तब का है जो रोजगार एवं वेतन के संदर्भ में सर्वाधिक प्रभावित होने जा रहा है
अपनी रिपोर्ट में विश्व श्रम संगठन ने यह अवगत कराया है कि 40 करोड़ भारतीय लोग रोजगार में उतना लाभ नहीं पाएंगे जितना कि कोरोनावायरस के विस्तार के पूर्व पा रहे हैं 
अर्थव्यवस्था में ऐसी गिरावट द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद पहली बार देखने को मिल सकती है 
वैसे भी भारतीय अर्थव्यवस्था लिक्विडिटी पर आधारित है विश्व श्रम संगठन का अनुमान सही प्रतीत होता है
रिपोर्ट को देखा जाए तो स्पष्ट है कि उत्पादन रियल स्टेट ट्रेडिंग प्रशासनिक क्षेत्र शिक्षा खनिज आदि क्षेत्र तेजी से प्रभावित हो सकते हैं 
अगर यह स्थिति है तो इसकी वजह केवल अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कंपनियों का उत्पादन प्रभावित होना भी है आरती कंपनीयाँ भी इससे अछूती नहीं रहेगी
आईटी कंपनी को अपना आकार कम करना होगा जिसका अर्थ है कि वह अपने कर्मचारियों की छटनी भी कर सकती है 
इससे अवश्य शिक्षित एवं प्रशिक्षित बेरोजगारी में बढ़ोतरी हो सकती है
इसका दूसरा पहलू यह भी है कि अगर अकेले यूरोप ने ऐसी कंपनियों के लिए अपनी आर्थिक नीतियों में व्यवस्था कर ली होगी तो यह बेरोजगारी तेजी से नहीं बढ़ेगी इसका दूसरा पहलू यह भी है कि दक्षिण एशिया भारत पाकिस्तान बांग्लादेश के आईटी प्रोफेशनल्स वर्क फ्रॉम होम डिस्टेंस वर्किंग के मामले में सक्षम है और यदि आईटी सेक्टर की कंपनियां किसी तरह सरवाइव कर लेती है तो निश्चित तौर पर आय में कमी अवश्य हो सकती है परंतु बेरोजगारी की दर में वृद्धि नहीं होगी
परंतु अगर प्रोडक्शन और ट्रेडिंग करने वाली कंपनियों की स्थिति नकारात्मक रुझान दिखाती है तो यह तय है कि आईटी कंपनियां भी अवश्यंभावी शुरू से प्रभावित होंगी जिसका सीधा असर दक्षिण एशियाई देशों से काम में नियोजित वर्क फोर्स पर असर अवश्य पड़ेगा वर्तमान में अमेरिका द्वारा वहां काम कर रहे नागरिकों को वीजा देने में विलंब किया जा रहा है जिसकी दो वजह हैं


एक - अमेरिका में तेजी से फैलता कोरोना वायरस संक्रमण और उसके प्रबंधन में उत्पन्न समस्याएं


दो - अमेरिका पूंजी प्रबंधन की समस्या


उपरोक्त दोनों कारणों से कंपनियों के शेयरों में गिरावट हो रही है जैसा कि आप टेलीविजन पर प्रसारित होने वाले समाचारों में सो नहीं रहे होंगे
अभी यह कहना जल्दबाजी ही होगा की कोरोनावायरस संक्रमण की समस्या स्थाई है निश्चित तौर पर भारत सहित यूरोप के कई देश इसके समाधान में तेजी से काम कर रहे हैं और यह विश्वास है कि कोरोनावायरस संक्रमण को रोकने का कोई उचित प्रबंध सुनिश्चित हो जाएगा
यहां कृषि वैज्ञानिकों से यह आव्हान किया जाता है कि वह उत्पादन क्षमता बढ़ाने के और अधिक प्रयास करें ताकि आगामी 2 से 3 वर्षों में जब तक इस महामारी के कारण होने वाली संभावित महामंदी का प्रभाव रहेगा तो भी भारत एक उच्च स्तरीय उत्पादक के रूप में उभर के आए और वह विश्व व्यापार ने भले ही बहुत अधिक हिस्सेदारी ना दिखा पाए पर उसका अनाज भंडार कम से कम अगले 3 वर्षों के लिए पर्याप्त रहे इस तथ्य को हमें उसी नजरिए से देखना है जिस नजरिए से आपने हमने भारत के ऐतिहासिक स्वरूप का अध्ययन किया है भारत कृषि प्रधान देश रहा है और रहेगा भी वर्तमान में अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन द्वारा जारी रिपोर्ट तब तक एकांगी है जब तक की आर्थिक औद्योगिक मुद्दे पर अध्ययन करने वाली किसी विश्वसनीय और सर्वमान्य संस्था की रिपोर्ट नहीं आ जाती
रिपोर्ट में भारत की अर्थव्यवस्था में कृषि के योगदान के संबंध में टिप्पणी नहीं है  इसलिए अगले छह माह में 40 करोड़ लोगों को प्रभावित होने की बात गलत अनुमान है ऐसा मैं स्वयं के नजरिए से कहता हूं भारतीय युवा शक्ति को खेतों की ओर मुड़ना ही चाहिए भारतीय वर्कफोर्स कृषि आधारित उत्पादों की ट्रेडिंग में भी तेजी से काम कर सकते हैं
यहां यह बात भी स्पष्ट कर देनी आवश्यक है कि इस संभावित महामंदी का असर अवश्य होगा भारत में भी हम इसे देख सकेंगे लेकिन मध्यमवर्ग जो सर्वाधिक कार्यशील समुदाय है वह निश्चित तौर पर रोजगार के विकल्पों पर काम अवश्य करेगा भारत सरकार की स्टार्टअप योजना जैसी योजनाओं ने युवाओं को अपनी रुचि दिखानी ही होगी यद्यपि पूरे विश्व की सरकारों को इंटरनेशनल लेबर ऑफ डाइजेशन ने चार स्तंभों में सलाह दी है जो इस प्रकार है
1 टैक्स में कमी या उसका पुनरीक्षण करना, धन का प्रवाह करना
2 जॉब को बचाए रखना उसके लिए आर्थिक नीतियों में बदलाव अथवा उसका पुनरीक्षण करना
3 अगले 6 महीनों तक कम से कम सोशल डिस्टेंसिंग को बनाए रखना यथासंभव वर्क फ्रॉम होम जैसी प्रणाली को जारी रखना
4 समुदाय के साथ सरकार का बेहतर समन्वयन भी एक महत्वपूर्ण स्तंभ होगा समुदाय में उत्पादन से जुड़े लोग ओपिनियन लीडर्स वर्क फोर्स आदि से सतत समन्वय बेहद जरूरी होगा 
कोरोनावायरस संक्रमण को रोकने के लिए नागरिकों को चाहिए कि अगले 15 से 20 दिनों में अगर लॉक डाउन समाप्त भी हो जाता है तब भी वे सोशल डिस्टेंसिंग को किसी भी हालत में मेंटेन करके चलें
जहां तक रोजगार में कमी का संकेत है वह अवश्यंभावी है उसे रोका नहीं जा सकता भले ही 40 करोड़ भारतीय इससे प्रभावित ना हो तब भी 20 करोड़ जनसंख्या का प्रभावित होना तय है
क्योंकि रिपोर्ट के अनुसार छोटे और अत्यंत छोटे व्यापारियों को यह समस्या आ सकती है अतः मितव्ययिता, एवम श्रम तथा पूंजी का उत्कृष्ट प्रबंधन ही भारत के छोटे व्यापारियों को संकट से उबारने में सबसे ज्यादा सहायक होगा
यहां यह भी कहना जरूरी है कि भारत के अधिकांश युवा जो अप्रवासी हैं और विभिन्न क्षेत्रों में विदेशों में कार्यरत हैं केवल अपनी योग्यता और क्षमता के आधार पर यूरोप में रुक सकेंगे ऐसा नहीं है कि केवल योग्यता और क्षमता का ही मूल्यांकन किया जावेगा बल्कि कंपनियां क्लाइंट कंपनियों से कार्य मिलने या ना मिलने के कारण भी कटौती कर सकती है
कुल मिलाकर स्थिति नाजुक हो सकती है अगर नागरिक और सरकार दोनों के बीच बेहतर समन्वय संवाद स्थापित ना हुआ तो अभी विश्व स्वास्थ संगठन के अलावा व्यापारिक तथा औद्योगिक विषयों की समीक्षा एवं रिपोर्ट प्रस्तुत करने वाली सर्वमान्य संस्थाओं के विश्लेषण के बाद विस्तृत रूप से कुछ कहा जा सकता है यह आलेख केवल अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन की अनुमान पर आधारित है
 

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