अशोक कुमार झा. हिंदुस्तान एक ऐसा देश है जहां से आईआईएम से निकले हुए हमारे जवान दुनिया भर की बड़ी-बड़ी कंपनियां चला रहे हैं। हमारे यहां की आईआईटी से निकले हुए इंजीनियर पूरी दुनिया में तकनीक विकसित कर रहे हैं लेकिन जब अपने देश के भीतर पिछले एक साल से चलते आ रहे कोरोना वायरस के खतरे से जूझने की बात आयी तो हमारे इन तमाम मैनेजमेंट और इंजीनियरिंग के जानकार लोगों का तजुरबा हमारे काम नहीं आ सका क्योंकि हमने अपने उन हुनरमंद लोगों के हुनर को समझना जरूरी नहीं समझा जिसका परिणाम यह यह हुआ कि आज समूचा देश में कोरोना से मौतों का सिलसिला चल पड़ा और अब यह ऐसा भयावह रूप ले चुका है जिसे न तो हम रोक पा रहे हैं और न ही मौतों के बाद अपने लोगों को एक इज्जत का अंतिम संस्कार दे पा रहे हैं।
वैसे कहने को हमारे देश में आपदा प्रबंधन नाम का एक विभाग भी है, वह विभाग वास्तव में क्या काम करता है, यह सिर्फ हमारी सरकार ही समझ पाती है। देश की आम जनता को उसके काम के बारे में कुछ भी समझ में नहीं आता क्योंकि आज तक यह विभाग देश में आने वाली किसी भी आपदा को रोक पाने या कम कर पाने में कभी कामयाब नहीं हो पाया है। यही इस विभाग की हकीकत है।
कोविड के मामले में इस विभाग की नाकामयाबी तो आम बात है, पर लापरवाही भी साफ देखने को मिल रही है क्योकि यह ऐसा विभाग है जहाँ बाढ़ के महीनों में स्थिति से निपटने के लिए रबर की बोट तक साल भर पहले से ही खरीद कर रख ली जाती है। भले ही उसके बावजूद लोगों को बाढ़ का दंश झेलना पड़े, यह अलग बात है परन्तु साल भर पहले से चल रहे कोरोना महामारी से जूझने के लिए हमने समय रहते कोई कारगर योजना नहीं बना पायी जिसे हमें आज स्वीकार करना होगा।
हमने इस कोविड महामारी के दौरान आधा दर्जन प्रदेशों में चुनाव लड़ने की अभूतपूर्व तैयारियां की जो दिख रहा है। अगर हम कोशिश करते तो हिंदुस्तान के नक्शे को देखकर कोरोना के आज के हाल का अंदाजा शायद पहले ही लगा लेते और उसी अनुरूप हम अपने तैयारियों में लग जाते। राज्यों की जनसंख्या और उसकी भौगोलिक स्थिति के हिसाब अपनी तैयारियों को जारी रख सकते थे जो हमने नहीं किया।
इसके लिये हमें कोरोना की पहली लहर के बाद और दूसरी लहर के आने के पहले राज्यों के साथ समन्वय बनाकर किन-किन राज्यों में तैयारी कैसी है और जहां पर तैयारियों में कमी है वहां पर क्या किया जाना है, इसके प्रति गंभीर होते और अपने नौकरशाहों को इसे पूरा कराने की सख्ती के साथ जवाबदेही देते तो शायद आज हमारी स्थिति ऐसी नहीं होती। हमने पिछले साल महामारी एक्ट के तहत देश के सारे अधिकार अपने हाथों में लेकर राज्यों को पूरे देश में एक साथ लाक डाउन करके घंटे घंटे में हुकुम भेजे और क्या खुला रहेगा और क्या बंद रहेगा, इन नियमों को राज्यों पर लादा और उसका मॉनिटरिंग भी केंद्र द्वारा किया जाता रहा जिसका परिणाम भी दिखा कि हमारे यहाँ विदेशों की तुलना में काफी कम नुकसान उठाना पड़ा।
पिछले साल केंद्र द्वारा राज्यों से हर घंटे में जवाब मांगे जाते रहे , जानकारी मांगी जाती रही और उन्हें नोटिस दिए जाते रहे जो एक सही और उपयुक्त कदम था परंतु इस दूसरी लहर में हमने इस अंदाजे से तैयारियां नहीं की कि किस राज्य में कोरोना की दूसरी लहर कहां तक पहुंच सकती है, उसमें कितने लोग बीमार हो सकते हैं, कितनों को ऑक्सीजन लग सकते हैं और कितने को वेंटिलेटर लगेंगे।
हमने महाराष्ट्र जैसे संपन्न और विकसित राज्य से लेकर छत्तीसगढ़ और झारखंड जैसे नए और छोटे राज्य तक किसी भी राज्य में कोरोना की इस दूसरी लहर से निपटने की कोई तैयारी नहीं की जिसे हमें स्वीकार करना होगा जिसका आज नतीजा यह है कि आज बीमार को अस्पताल का बिस्तर नसीब नहीं हो पा रहा है और यदि उसे किसी भी तरह से बिस्तर मिल भी गया तो उसे ऑक्सीजन नहीं मिल पा रहा है। कुल मिलाकर तस्वीर ऐसी है कि कोरोना की पहली लहर के बाद से कोरोना की दूसरी लहर के बीच इस देश और इसके प्रदेशों ने कुछ भी नहीं सीखा।
जिस कारण जब करोना का दूसरा वार हुआ तो घुटनों पर लगी चोट से बिलबिलाने के अंदाज में हमारी सरकारे आनन-फानन में घटिया और काम चलाओ इंतजाम करने में लग गई जो कि नाकाफी तो थे ही बल्कि जनता के पैसों की बर्बादी भी थे। साथ ही इंसानी जिंदगी की बर्बादी तो सबसे ऊपर ही है।
आज हमारे देश के अधिकतर प्रदेशों का हाल ऐसा ही है जहाँ जल्दबाजी में केंद्र व राज्य सरकारों ने निजी अस्पतालों में कोरोना की जांच से लेकर वेंटिलेटर तक किसी इंतजाम को खुद परखा नहीं है क्यांेकि अभी हमारे पास अभी इतने वक्त नहीं हैं। हम मानें या न माने पर यह सच है कि हमारे सरकारों की प्राथमिकताएं महज राजनीतिक रही, चुनावी रही, आत्मरक्षा की रही, जीत की महत्वाकांक्षी की रही लेकिन कोरोना से दूसरे दौर से लड़ने की नहीं रही।
आज हिंदुस्तान के प्रदेशों की शासन की क्षमता को देखें तो यह साफ दिखता है कि क्षमता तो बहुत है लेकिन इसके इस्तेमाल की कोई तैयारी हमारे पास नहीं थी। हमारे जिन अफसरों पर पाँच साल की सरकारों के पहले और बाद की भी सरकार की जिम्मेदारी रहती है, उन्होंने भी अगर वक्त पर अपना काम किया होता और वक्त के हिसाब से अपनी तैयारियों में लगी होती तो आज हम इस हाल में नहीं होते।
हमें अभी जो ऑक्सीजन की जरूरत दिख रही है। उसका अगर हिसाब हमने पहले ही लगा लिया होता तो आज जो ऑक्सीजन का प्लांट हम लगाने जा रहे हैं, वह पहले लगा लिए होते और तब शायद ऑक्सीजन के अभाव में हमारे लोगों की मौतें नहीं हुई होती, अस्पतालों के बिस्तर जो आज हम कितने मरीजों की मौत हो जाने के बाद बनाने शुरू किए हैं, वह पहले ही तैयार किए गए होते तो बेड न मिल पाने के कारण जो मौते हुई है वह शायद नहीं होती।
हमने कोरोना की पहली लहर के बाद जो कोविड जांच का काम शुरू किया था, उसे बंद करना भी हमारी बहुत बड़ी भूल थी जिसका आज हम खामियाजा भुगतने को मजबूर हैं। हमें उसे बंद न करके लगातार जारी रखना चाहिए था जिससे हम तेजी से संक्रमितों का पहचान कर पाते और इतने निश्चिन्त नहीं हो जाते। इसके साथ ही हम विदेशों में वैक्सीन बांटने के साथ साथ अपने देश के लोगों के टीकाकरण की रफ्तार में जरूरत के हिसाब से और तेजी लाते। अगर हम इतना कर लेते तो शायद आज जो हम अपने लोगों को अंतिम संस्कार तक का सही इंतजाम न दे पाने के लिए जो इतना आँसू बहा रहे हैं, शायद तब ऐसी नौबत ही नहीं होती।
Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-दिल्ली में भी एक हफ्ते और बढ़ा लॉकडाउन, 17 मई तक जारी रहेंगी पाबंदियां
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