जबलपुर. मध्य प्रदेश में फिर बिजली गुल हो सकती है. बिजली अधिकारियों-कर्मचारियों ने सरकार को 18 सूत्रीय मांगों को पूरा करने के लिए एक महीने का अल्टीमेटम दिया है. बिजली संगठनों ने ऊर्जा मंत्री प्रद्युम्न सिंह तोमर पर मांगों को अनदेखा करने का बड़ा आरोप भी लगाया. बिजली संगठनों ने कहा कि उनके 70 हजार कर्मचारी नए साल में जनवरी से चरणबद्ध तरीके से हड़ताल पर जाएंगे. इस हड़ताल में नियमित, संविदा और आउट सोर्स के कर्मचारी शामिल होंगे.
राजधानी भोपाल में शनिवार को प्रदेश के 52 जिलों के तमाम बिजली संगठनों के पदाधिकारियों ने बैठक की. बैठक उन 18 सूत्रीय मांगों को लेकर ली गई, जिनको लेकर ऊर्जा मंत्री प्रद्युम्न सिंह तोमर ने 1 महीने में पूरा करने का आश्वासन दिया था. एक महीना बीत जाने के बावजूद भी उन मांगों पर विचार नहीं किया गया, उन्हें अनदेखा किया गया. बता दें, प्रदेश में बिजली विभाग में 29 हजार नियमित कर्मचारी, 6 हजार संविदा कर्मचारी और 35 हजार आउटसोर्स कर्मचारी हैं.
मप्र यूनाइटेड फोरम फॉर पावर एंप्लॉय एवं इंजीनियर्स के प्रदेश संयोजक वीकेएस परिहार ने कहा कि ऊर्जा मंत्री ने कर्मचारियों को एक महीने में मांगों को पूरा करने का आश्वासन दिया था. हम बार-बार मंत्री से अपनी मांगों को लेकर मिल चुके हैं. हर बार आश्वासन मिलता है. पिछली बार भी एक महीने में मांगों को पूरा करने का आश्वासन मिला था. हमारी मांगों को सरकार जानबूझकर अनदेखा कर रही है. इसलिए हमने यह फैसला लिया है कि पंचायत चुनाव के बाद जनवरी में फिर से सभी बिजली कर्मचारी एक साथ पूरी ताकत से अनिश्चितकालीन हड़ताल पर जाएंगे. इस हड़ताल से बिजली से जुड़े तमाम कामकाज प्रभावित हो जाएंगे और बिजली उपभोक्ताओं को भी इससे दिक्कत हो सकती है.
ये है मुख्य मांग
1. बिजली कंपनियों में हजारों इंजीनियर वरिष्ठता हासिल कर चुके हैं. उनकी पदोन्नति नहीं हो रही है. वे बिना पदोन्नति के सेवानिवृत्त हो रहे हैं.
2. संविदा कर्मियों को काम करते हुए न्यूनतम सात वर्ष और अधिकतम 15 वर्ष हो चुके हैं. इन्हें नियमित नहीं किया जा रहा है.
3. बिजली कंपनियों के प्रमुख पदों पर अभी तक विभाग के ही मैदानी व अनुभवी अधिकारियों को रखा जाता था, जिनके स्थान पर राज्य प्रशासनिक सेवाओं के अधिकारियों को रखने की शुरुआत की गई है.
4. बिजली से जुड़ी कुछ व्यवस्थाओं को निजी हाथों में दिया जा रहा है, जबकि पूरा सेटअप बिजली कंपनियों का है. निजीकरण व्यवस्था के कारण कंपनियों में शासकीय पद खत्म होंगे. बेरोजगारी बढ़ेगी.
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