भोपाल से एक फोन आते ही बहाल कर दी गई जबलपुर मेडिकल यूनिवर्सिटी की परीक्षा नियंत्रक

भोपाल से एक फोन आते ही बहाल कर दी गई जबलपुर मेडिकल यूनिवर्सिटी की परीक्षा नियंत्रक

प्रेषित समय :16:19:56 PM / Sun, Jun 20th, 2021

पलपल संवाददाता, जबलपुर. मध्यप्रदेश की जबलपुर स्थित मेडिकल यूनिवर्सिटी इन दिनों रिजल्ट में किए गए घोटाले को लेकर चर्चाओं में है, जिसके चलते यूनिवर्सिटी की एक्जाम कंट्रोलर वृंदा सक्सेना को कुलपति ने हटा दिया था, लेकिन भोपाल से एक फोन आने के बाद कुलपति ने 24 घंटे में ही अपना आदेश बदलते हुए डाक्टर सक्सेना को बहाल कर दिया. सोशल मीडिया पर कुलपति के दोनों आदेश वायरल होने के बाद से चर्चाओं का दौर शुरु हो गया है.

सूत्रों की माने तो मेडिकल यूनिवर्सिटी में छात्रों को पास-फेल कराने को लेकर लाखों रुपए का वारे-न्यारे किए गए, जिस ठेका कंपनी को पारदर्शिता के लिए लाया गया है, उसी ने कुछ अधिकारियों के साथ मिलकर सारा खेल रचा, कई डेंटल व नर्सिंग के छात्रों के प्रायोगिक परीक्षा के नम्बर बदल दिए गए. इस मामले में जांच समिति की रिपोर्ट आने के बाद परीक्षा नियंत्रक वृंदा सक्सेना को कुलपति टीएन शुक्ला ने तत्काल प्रभाव से प्रभार वापस ले लिया, कुलपति का यह आदेश 24 घंटे तक भी स्थाई नहीं रह पाया, भोपाल से एक फोन आने के बाद ही कुलपति को अपना निर्णय बदलना पड़ा और वृंदा सक्सेना को फिर एक्जाम कंट्रोलर का प्रभार दे दिया गया. बहाली किए जाने का आदेश सोशल मीडिया पर वायरल होने के बाद चर्चाओं का दौर शुरु हो गया है कि परीक्षा नियंत्रक की भूमिका किसी भी विश्वविद्यालय में काफी अह्म होती है, उसी पर अनियमितताओं के आरोप लगे हो तो जांच प्रभावित हो सकती है, जरुरी रिकार्ड भी गायब हो सकते है.

सबसे खासबात यह भी है कि एक ओर परीक्षा नियंत्रक पर इतनी मेहरबानी दिखाई जा रही है तो दूसरी ओर मेडिकल यूनिवर्सिटी भी ठेका कंपनी पर मेहरबान है, छात्रों को पास व फेल कराने के बाद जांच के दायरे में आई ठेका कंपनी ने रिजल्ट के साथ ही आर्थिक अनियमितताए भी की है, अधिकारियों की मिलीभगत से कंपनी के संचालन का खर्च भी विश्वविद्यालय से वसूलती रही. जबकि अनुबंध के अनुसार कामकाज से संबंधित संसाधनों के लिए विवि और निजी कंपनी. माइंड लॉजिक्स इन्फोटेक बेंगलुरु को मिलकर खर्च उठाना था. इसी तरह निजी सर्विस प्रोवाइडर कंपनी ने अनुबंध की शर्ताे को भी पूरा नहीं किया, विश्वविद्यायल ने कंपनी के इंटरनेट, बिजली के बिलों का भुगतान भी अपनी मद से कर दिया, जबकि आधी राशि सर्विस प्रोवाइडर कंपनी को देना थी, सिर्फ एक साल का इंटरनेट का 41 लाख रुपए का बिल दूरसंचार कंपनी को भुगतान किया गया. इसी तरह बिजली के बिलों में भी छूट दी गई, खासबात तो यह है लम्बे समय से चल रहे इस खेल का किसी को पता भी नही चल सका. 

Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-

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