नजरिया. देश में कोराना की दूसरी और ज्यादा असरदार लहर शुरू हो गई है, लेकिन नेताओं को चुनाव में हार-जीत की पड़ी है, जनता की जिंदगी-मौत से उनका कोई लेना देना नहीं है.
जिन्हें आदर्श और नैतिक उदाहरण पेश करने चाहिए, वे ही कोरे सैद्धांतिक प्रवचन दे रहे हैं, किन्तु प्रायोगिक तौर पर एकदम लापरवाह हैं.
नक्सली हमले, चुनाव में हिंसा और कोरोना के कहर को नजरअंदाज करते हुए ज्यादातर नेता सत्ता पर कब्जा जमाने के रास्ते तलाश रहे हैं.
बंगाल के चुनाव में नरेंद्र मोदी का कहना है कि चुनाव में हार निश्चित देख दीदी अब अपने पुराने खेल पर उतर आई हैं. बंगाल में दीदी और टीएमसी द्वारा हिंसा की कोशिश की जा रही है.
इधर, पीएम मोदी टीएमसी पर हिंसा के आरोप लगा रहे हैं और उधर, कूच बिहार में मतदान के दौरान हुई हिंसा में चार लोगों की मौत हो गई, जबकि तीन गंभीर रूप से घायल हो गए हैं. तृणमूल कांग्रेस ने इन्हें अपना कार्यकर्ता बताया है और इसके मद्देनजर टीएमसी ने चुनाव आयोग को पत्र भी लिखा है.
खबर है कि पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी रविवार को कूचबिहार में उस जगह का दौरा करेंगी, जहां फायरिंग में चार लोगों की मौत हो गई है.
यकीनन, अच्छे प्रजातंत्र के लिए चुनाव जरूरी हैं, परन्तु इससे भी ज्यादा जरूरी है, कोरोना जैसे संक्रमण से जनता को मुक्ति दिलाने की, जबकि ज्यादातर नेता जनता को सैद्धांतिक उपदेश दे रहे हैं- दो गज दूरी, मास्क है जरूरी और प्रायोगिक चुनावी रैलियों में न दो गज दूरी और न ही मास्क जरूरी है!
Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-अभिमनोजः देश में चुनाव ज्यादा जरूरी हैं या जनता की कोरोना से सुरक्षा?
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