जयसिंह रावत. इस कुंभ वर्ष में मकर संक्रांति, मौनी अमावस्या, बसंत पंचमी, माघ पूर्णिमा और महाशिवरात्रि के 5 स्नान पर्वों के निकल जाने के बाद उत्तराखंड सरकार ने अंततः डरते-डरते शेष चार स्नान पर्वों के लिये हरिद्वार महाकुंभ की अधिसूचना जारी करने के साथ ही हाईकोर्ट और केन्द्र सरकार के हस्तक्षेप के बाद बाहर से आने वाले स्नानार्थियों के लिये कोरोना नेगेटिव रिपोर्ट अनिवार्य तो कर दी मगर राज्य सरकार के पास न तो करोड़ों लोगों के प्रमाणपत्रों को जांचने और न ही इतने लोगों की रेंडम जांच की समुचित व्यवस्था है। विभिन्न पर्वों पर अब तक कई लाख यात्री बेरोकटोक झुण्ड बना कर हरिद्वार आ चुके हैं। राज्य सरकार ने वर्ष 2010 के कुंभ में 9 करोड़ स्नानार्थियों के हरिद्वार पहुंचने का दावा किया था। अतीत में कुंभ और महामारियों का चोली दामन का साथ रहा है और 1891 के कुंभ में फैला हैजा तो यूरोप तक पहुंच गया था। इसी प्रकार कई बार कुंभ में फैली प्लेग की बीमारी भारत के अंतिम गांव माणा तक पहुंच गई थी।
महाकुंभ से पहले हरिद्वार में कोरोना का उभार
उत्तराखंड में हरिद्वार जिला सबसे अधिक कोविड-19 प्रभावित जिलों में शामिल है। वहां हर रोज दस-बीस मामले सामने आ रहे हैं। महाकुंभ के आयोजन से ठीक पहले हरिपुर कलां स्थित एक आश्रम में 32 कोरोना संक्रमित श्रद्धालु मिलने से हरिद्वार में हड़कंप मच गया। संक्रमितों में आश्रम के कर्मचारी, विद्यार्थी और वृद्ध शामिल थे। कुंभ क्षेत्र में आठ महीने बाद एक बार फिर कोरोना संक्रमण ने बड़ी दस्तक दी है। बीते साल जुलाई और अगस्त माह में औद्योगिक क्षेत्र सिडकुल में कई फैक्ट्रियों में बड़ी संख्या में कोरोना संक्रमित मिले थे। एक नामी कंपनी में तो 250 से अधिक कोरोना संक्रमित मिले थे। अब महाकुंभ से ठीक पहले इतनी बड़ी संख्या में संक्रमित मिलने से मेला प्रशासन, जिला प्रशासन और स्वास्थ्य विभाग भी सकते में हैं।
करोड़ों स्नानार्थियों की जांच अत्यंत कठिन चुनौती
गंगा के किनारे हरिद्वार, शिप्रा के तट पर उज्जैन, गोदावरी के तट पर नासिक और गंगा यमुना के संगम पर प्रयागराज इलाहाबाद में सदियों से चले आ रहे कुंभ महापर्वों पर करोड़ों सनातन धर्मावलंबियों की आस्था की डुबकियां के साथ ही महामारियों का भी लम्बा इतिहास है। अकेले हरिद्वार में एक सदी से कम समय में ही केवल हैजा से ही लगभग 8 लाख लोगों की मौत के आंकड़े दर्ज हैं। अतीत में जब तीर्थ यात्राी हैजे या प्लेग आदि महामारियों से दम तोड़ देते थे तो उनके सहयात्री उनके शवों को रास्ते में ही लावारिस छोड़ कर आगे बढ़ जाते थे। इनमें से कुछ शव जानवर खा कर मानवभक्षी हो जाते थे तो कुछ सड़ गल कर महामारी का विस्तार कर देते थे। आज हालात काफी कुछ बदल तो गये हैं मगर फिर भी कोरोना के मृतकों के शवों के साथ छुआछूत का व्यवहार आज भी कायम है। सरकार के पास न तो करोड़ों लोगों की एक साथ कोरोना टेस्ट कराने और न ही उनके नेगेटिव होने के प्रमाणपत्रों की जांच की इतनी व्यवस्था है।
कुंभ के आधे से अधिक पहले ही निकल गये
प्राचीन काल में जहां मेले का संचालन अखाड़े और पंडे पुजारी करते थे वहीं अंग्रेजों के शासन के साथ ही कुंभ मेले में सरकार का हस्तक्षेप शुरू हुआ और वहां सफाई व्यवस्था के साथ ही टीकाकरण तथा पुलिसिंग जैसी प्रशासनिक व्यवस्थाएं शुरू हुईं। हालांकि शासन का हस्तक्षेप तब भी पंडा समाज और सन्यासियों को गंवारा नहीं था जो कि आज भी नहीं है। इसलिए सरकार आज भी महामारी रोकने के लिये कुंभ में कठोर कदम उठाने के लिये डरती रही है। उसी डर और संकोच का परिणाम है कि कुंभ के आधे से अधिक स्नान पर्व निकलने पर भी सरकार असमंजस की स्थिति से बाहर नहीं निकल सकी।
अंग्रेजों ने महामारी रोकने के इंतजाम शुरू किये
कुंभ और महामारियों का चोली दामन का साथ माना जाता रहा है। भारत में ईस्ट इंडिया कंपनी की घुसपैठ के बाद 1783 कुंभ के पहले 8 दिनों में ही हैजे से लगभग 20 हजार लोगों के मरने का उल्लेख इतिहास में आया है। हरिद्वार सहित सहारनपुर जिले में 1804 में अंग्रेजों का शासन शुरू होने पर कुंभ में भी कानून व्यवस्था और सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिये उनका हस्तक्षेप शुरू हुआ। अंग्रेजों ने शैव और बैरागी आदि सन्यासियों के खूनी टकराव को रोकने के लिये सेना की तैनाती करने के साथ ही कानून व्यवस्था बनाये रखने और महामारियां रोकने के लिये पुलिसिंग शुरू की तो 1867 के कुंभ का संचालन अखाड़ों के बजाय सैनिटरी विभाग को सौंपा गया। उस समय संक्रामक रोगियों की पहचान के लिये स्थानीय पुलिसकर्मियों को तैनात किया गया। उसके बाद 1885 के कुंभ में भीड़ को नियंत्रित करने के लिये बैरियर लगाये गये। सन् 1891 में सारे देश में हैजा फैल गया था। उस समय पहली बार मेले में संक्रमितों को क्वारंटाइन करने की व्यवस्था की गयी। पहली बार मेले में सार्वजनिक शौचालयों और मल निस्तारण की व्यवस्था की गयी। खुले में शौच रोकने के लिये 332 पुलिसकर्मी तैनात किये गये थे लेकिन पुलिस की रोकटोक के बावजूद लोग तब भी खुले में शौच करने से बाज नहीं आते थे और उसके 130 साल बाद आज भी स्थिति में ज्यादा बदलाव नहीं आया। दक्षिण अफ्रीका से लौटने के बाद जब गांधी जी कुंभ मेले के दौरान हरिद्वार पहुंचे थे तो उन्होंने भी लोगों के जहां तहां खुले में शौच किये जाने पर दुख प्रकट किया था।
महामारी रोकने के लिये लगा था कुंभ पर प्रतिबंध
आर. दास गुप्ता (टाइम ट्रेंड ऑफ कॉलेरा इन इण्डिया-13 दिसम्बर 2015) के अनुसार हरिद्वार 1891 के कुंभ में हैजे से कुल 1,69,013 यात्री मरे थे। विश्वमॉय पत्ती एवं मार्क हैरिसन ( द सोशल हिस्ट्री ऑफ हेल्थ एंड मेडिसिन पद कॉलोनियल इंडिया) के अनुसार महामारी पर नियंत्रण के लिये नॉर्थ वेस्टर्न प्रोविंस की सरकार ने मेले पर प्रतिबंन्ध लगा दिया था तथा यात्रियों को मेला क्षेत्रा छोड़ने के आदेश दिये जाने के साथ ही रेलवे को हरिद्वार के लिये टिकट जारी न करने को कहा गया था। आर. दास गुप्ता एवं ए.सी. बनर्जी ( नोट ऑन कालेरा इन द यूनाइटेड प्रोविन्सेज) के अनुसार सन् 1879 से लेकर 1945 तक हरिद्वार में आयोजित कुंभों और अर्ध कुंभों में हैजे से 7,99,894 लोगों की मौतें हुईं।
हरिद्वार कुंभ में हैजा ही नहीं बल्कि चेचक, प्लेग और कालाजार जैसी बीमारियां भी बड़ी संख्या में यात्रियों की मौत का कारण बनती रहीं। सन् 1898 से लेकर 1932 तक हरिद्वार समेत संयुक्त प्रान्त में प्लेग से 34,94204 लोग मरे थे। सन् 1867 से लेकर 1873 तक कुंभ क्षेत्रा सहित सहारनपुर जिले में चेचक से 20,942 लोगों की मौतें हुयीं। सन् 1897 के कुंभ के दौरान अप्रैल माह में प्लेग से कई यात्राी मरे। यह बीमारी सिन्ध से यात्रियों के माध्यम से हरिद्वार पहुंची थी। प्लेग के कारण कनखल का सारा कस्बा खाली करा दिया गया था। सन् 1844 में प्लेग की बीमारी का प्रसार रोकने के लिये कंपनी सरकार ने हरिद्वार में स्नानार्थियों के प्रवेश पर रोक लगा दी थी। सन् 1866 के कुंभ में अखाड़ों और साधु सन्तों ने भी सोशल डिस्टेंसिंग का पालन किया था। उसी दौरान ब्रिटिश हुकूमत ने हरिद्वार में खुले में शौच पर प्रतिबंध लगा दिया था। उसी साल कुंभ मेले के संचालन की जिम्मेदारी स्वास्थ्य विभाग को सौंपी गयी थी!
Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-जगतगुरु शंकराचार्य की सरकार को चेतावनी: कुंभ में आने वाले श्रद्धालुओं को न किया जाये बेवजह परेशान
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