जबलपुर. गुरु प्रसाद पवार, भृत्य, दैनिक वेतन भोगी के रूप में दिनांक 23/11/1989 को आदिवासी विकास विभाग, छिंदवाड़ा के आधीन नियुक्त हुए थे. वह निरंतर रिक्त पद के विरुद्ध कार्य कर रहे थे. उनके साथ नियुक्त कुछ भृत्यों को कुछ साल पूर्व वर्ष 2009 में ही नियमित कर दिया गया था. शासन की विनियमितीकरण नीति के अनुसार, श्री पवार को दिनांक 06/06/18 को विनियमित कर दिया गया था अपितु, पद रिक्त होने के बाद भी, शासन की नियमितीकरण नीति के विरुद्ध उन्हें नियमितीकरण से वंचित रखा गया था.
विभाग के मनमाने रवैये के खिलाफ उन्होंने उच्च न्यायालय जबलपुर की शरण ली थी. श्री पवार के ओर से उच्च न्यायालय, जबलपुर के वकील अमित चतुर्वेदी ने बताया है कि श्री पवार निरन्तर सहायक आयुक्त आदिवासी विकास, छिंदवाड़ा को आवेदन देकर नियमितीकरण की मांग कर रहे थे. अपितु विभाग असंवेदनशील बना रहा. उच्च न्यायालय ने इसे गम्भीर माना. कोर्ट के अनुसार, विभाग नियमितीकरण नीति के अनुसार, श्री पवार के नियमितीकरण पर विचार करने के लिए कर्तव्य के आधीन है. उच्च न्यायालय, जबलपुर ने याचिका का पर निर्णय करते हुए विभाग को निर्देश दिये हैं की वह श्री पवार के नियमितीकरण के दावे पर तीन माह के भीतर नियमितीकरण नीति के अनुसार निर्णय ले.
Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-एमपी हाईकोर्ट का ओबीसी आरक्षण पर बड़ा फैसला: सभी भर्तियां 14 प्रतिशत आरक्षण के अनुसार होगी
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