पलपल संवाददाता, विदिशा. एमपी के विदिशा स्थित सिरोंज में होली दहन की परम्परा निराली है. यहां पर बंदूक की गोली से निकली आग से होली जलाई जाती है. वर्षो पुरानी परम्परा का निर्वहन इस वर्ष भी हुआ है. मुहूर्त के अनुसार रात एक बजे के लगभग होलिका दहन किया गया.
बताया गया है कि सिरोंज में सबसे प्राचीन होली हनुमान मंदिर के पास जलाई जाती है. होलिका दहन के पहले पूजन-अर्चन के बाद होली सजाकर आसपा घास का ढेर रखा जाता है. फिर उसी ढेर को निशाना बनाकर बंदूक से गोली दागी जाती है. जिसकी चिंगारी से घास में आग लग जाती है. इसके बाद होली का उत्सव शुरु हो जाता है. इसी होली की आग से शहर के अन्य होली व घर-घर में होली जलाई जाती है. इस संबंध में बताया गया है कि करीब 150 वर्ष पहले सिरोंज में रावजी की हवेली के पीछे मुन्नू भैया की हवेली थी. इसे 52 चौक की हवेली कहा जाता था. जहां कानूनगो रहा करते थे जिनका ओहदा तहसीलदार के बराबर माना जाता था. ये कानूनगो मुन्नू भैया के नाम से जाने जाते थे. यहां पर टोंक रियासत का दौर था. कानूनगो मुन्नू भैया के समय ही एक बार यहां टोंक रियासत के नवाब ने होलिका दहन पर बंदिश लगा दी थी. इससे हिंदुओं की भावनाएं आहत हुई थीं, लेकिन कोई कुछ नहीं कर पा रहा था. मन ही मन में सब आक्रोशित रहे लेकिन कोई कुछ कर नहीं पाया. निर्णय लिया गया कि होली तो जलना ही चाहिए. फिर कुछ सनातनी लोगों ने योजना बनाई, जिसके चलते लकड़ी व कंडो के ढेर लगाकर सूखी घास से ढांक दिया गया है. इसके बाद देर रात माथुर परिवार के सदस्यों ने इसी ढेर में बंदूक चला दी और होली जल उठी. इसके बाद से यह परम्परा बन गई और आज भी होलिका का दहन बंदूक की गोली से होने लगा. जिसका आज भी निर्वहन किया जा रहा है. गौरतलब है कि होलकर राज्य में यह रावजी की होली कहलाती थी. उस समय भी सूखी घास, रुई रखकर बंदूक से फायर कर आग उत्पन्न की जाती थी. उसी आग से होली जलाई जाती थी. बाद में होलकर स्टेट के कानूनगो परिवार ने बंदूक से फायर कर होली जलाई जाने लगीए जो आज भी जारी है. वर्तमान में भी कानूनगो माथुर परिवार इस परंपरा का निर्वहन कर रहा है.
Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-एमपी के फिर कोरोना सक्रिय, इंदौर, भोपाल, ग्वालियर में पाजिटिव मामले..!
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