आरएसएस की ताकत? कोई ईर्ष्या तो कर सकता है, लेकिन इंकार नहीं

भारतीय राजनीति में आरएसएस का प्रत्यक्ष हस्तक्षेप नहीं होने के बावजूद आरएसएस की ताकत को सियासी दुनिया नजरअंदाज नहीं कर सकती है? आरएसएस की ताकत से कोई भी ईर्ष्या तो कर सकता है, लेकिन उसकी ताकत से इंकार नहीं कर सकता है. अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि यदि संघ का समर्थन भाजपा को नहीं मिले तो भाजपा की सियासी सफलताएं आधी भी नहीं बचेंगी?
कुछ समय पहले देश के पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के आरएसएस के कार्यक्रम में भाग लेने के कारण संघ एक बार फिर चर्चाओं में है. बगैर किसी आधार के संघ की आलोचना तो होती रही है, परन्तु संघ के खिलाफ ठोस सबूतों का अभाव रहा है, यही नहीं... समय-समय पर संघ ने देश-समाज में अपनी श्रेष्ठ भूमिका अदा करके यह साबित किया है कि निस्वार्थ सेवा-समर्पण और राष्ट्रहित में आरएसएस सर्वश्रेष्ठ है. 
कांग्रेस के साथ संघ का कभी वैचारिक साथ नहीं हुआ, बावजूद इसके अनेक ऐसे अवसर आए जब राजनीति से ऊपर उठ कर कांग्रेस नेताओं ने संघ के बेहतर कार्यों को करीब से देखा और प्रशंसा की? सेवा और समर्पण के ऐतिहासिक पन्ने बताते हैं कि वर्ष 1962 में देश पर चीन का आक्रमण हुआ था तब... भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू चीन की दगेबाजी से बेहद परेशान थे, लेकिन संघ ने कांग्रेस से अपने वैचारिक विरोध से हट कर देशहित में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई? सेना की मदद के लिए संघ के स्वयंसेवक बड़े उत्साह से सीमा पर पहुंचे. 
यही नहीं, इससे पहले 1947 में विभाजन के समय भी संघ ने पाकिस्तान से जान बचाकर आए लोगों के लिए हजारों राहत शिविर लगाए थे.
आजादी के बाद कश्मीर के महाराजा हरिसिंह भारत विलय का निर्णय नहीं ले पा रहे थे तब सरदार पटेल ने गुरु गोलवलकर से सहयोग मांगा, वे श्रीनगर पहुंचे, महाराजा हरिसिंह से मिले और इसके बाद महाराजा हरिसिंह ने कश्मीर के भारत में विलय का प्रस्ताव दिल्ली भेज दिया.
इसके अलावा, 1965 के पाकिस्तान से युद्ध के समय लालबहादुर शास्त्री ने आरएसएस को याद किया था, नतीजा? कानून-व्यवस्था की स्थिति संभालने में मदद देने संघ आगे आया और दिल्ली का यातायात नियंत्रण अपने हाथ में लिया जिससे इन कार्यों में लगे पुलिसकर्मी वहां की जिम्मेदारी से मुक्त हो कर सेना को सहयोग कर पाए? ऐसे युद्ध के समय हवाईपट्टियों की सफाई और घायल सैनिकों के लिए रक्तदान करने में भी संघ के स्वयंसेवक सबसे आगे थे. 
गौरतलब है कि... दादरा, नगर हवेली और गोवा के भारत विलय में भी आरएसएस की महत्वपूर्ण भूमिका थी?
वर्ष 1975 से 1977 के बीच आपातकाल के दौरान आरएसएस का संघर्ष और सक्रियता सर्वश्रेष्ठ रही... आजादी की इस दूसरी लड़ाई में संघ की भूमिका बेमिसाल ऐतिहासिक अध्याय है?
गैरकांग्रेसियों की जनता पार्टी के गठन से लेकर केन्द्र की सत्ता तक उन्हें पहुंचाने में संघ का योगदान अविस्मरणीय है... आपातकाल के दौरान पर्चे बांटना, पोस्टर चिपकाना, जनता को जानकारियां/सूचनाएं देना और जेलों में बंद विभिन्न नेताओं-कार्यकर्ताओं के मनोबल को बनाए रखने में आरएसएस की विशेष भूमिका रही. 
जनसेवा के हर कार्य में संघ के समर्पित स्वयं सेवक हमेशा आगे रहे, चाहे 1971 में ओडिशा में आए भयंकर चक्रवात का संकट हो या भोपाल की गैस त्रासदी... वर्ष 1984 में हुए सिख विरोधी दंगे हों या गुजरात का भूकंप, बाढ़ का प्रकोप हो या युद्ध के घायलों की सेवा, स्वयंसेवकों ने बगैर किसी भेदभाव के पूरी ताकत के साथ सेवाकार्य किए.
आरएसएस तकरीबन एक सदी की सेवा, संघर्ष, और समर्पण से तैयार विशाल संगठन है, किसी संगठन के इसके करीब पहुंचने की कल्पना भी बेहद मुश्किल है? यही वजह है कि... संघ की ताकत से कोई भी ईष्र्या तो कर सकता है, लेकिन उसकी ताकत से इंकार नहीं कर सकता है. 

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