अरुण शौरीः श्रीमती गांधी में कई खासियत थी जैसे उनमें शर्म थी, लेकिन मौजूदा सरकार में वह भी नहीं है?

श्रीमती इंदिरा गांधी में कई खासियत थी जैसे उनमें शर्म थी, लेकिन मौजूदा सरकार में वह भी नहीं है!
अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में मंत्री रहे अरुण शौरी पीएम नरेन्द्र मोदी की सरकार के कामकाज और सियासी तौर-तरीकों पर प्रश्नचिन्ह लगाते रहे हैं.
इंडियन एक्सप्रेस बातचीत में उनका कहना था कि- मुझे लगता है कई बड़े पेड़ कुल्हाड़ी से काटे जाने के बजाए धीरे-धीरे दीमक की वजह से ही गिर जाएंगे?
ऐसे में हम नागरिकों को समय रहते जागना पड़ेगा. न्यायपालिका के मामले में हमें जवाबदेही तय करनी होगी और यह लगातार फैसलों के विश्लेषण करने से होगी!
अरुण शौरी का कहना था कि- अटल बिहारी वाजपेयी भी आरएसएस के साथ जुड़े हुए थे, लेकिन मुझे नहीं लगता है कि वह उनकी तरह सोचते थे. आज आरएसएस का मध्यम नेतृत्व पूरी तरह से सरकार के साथ चल रहा है. आज उनके पास अधिकारीक गाड़ियां हैं और उन्हें सैल्यूट किया जाता है. यह ग़लतफहमी है कि नरेंद्र मोदी आरएसएस को लेकर सचेत हैं. नरेंद्र मोदी जानते हैं कि आरएसएस का वरिष्ठ नेतृत्व सिर्फ दिखावा है. सभी राज्यों के आरएसएस के नेता और हर जिले के मुख्य नेता मोदी के हाथ में हैं, अब वह उनके उपकरण है और वर्चस्व बनाने के लिए विचारधारा हमेशा से एक उपकरण रही है?
इन दिनों अरुण शौरी की चर्चा उनकी किताब- प्रिपेयरिंग फॉर डेथ, के लिए भी हो रही है, जिसके बारे में उनका कहना है कि- मृत्यु शाश्वत सत्य है, जिस प्रकार इंसान जीवन सहजता से जीता है उसी प्रकार उसे विचलित हुए बगैर अपने अंत की भी तैयारी करनी चाहिए!
प्रिपेयरिंग फॉर डेथ में लोगों के अनुभवों, किताबों की व्याख्याओं, व्यवहार्य सुझावों के माध्यम से यह प्रदर्शित करने का प्रयास किया गया है कि- जब मृत्यु सामने हो तब कैसे हमारा दिमाग शांतिपूर्ण अंत को प्राप्त सकता है.
खबरें हैं कि इसमें उन्होंने यह भी बताने का प्रयास किया है कि- अगर अनुष्ठान, तीर्थयात्रा और मंत्र हमारी मदद करने के लिए हैं, तो हमें क्या करना चाहिए?
उनका कहना है कि- हर अध्याय, हर घटना में व्यवहारिक सीख हैं. मैंने ध्यान पर कुछ उन बातों को भी संक्षेप में प्रस्तुत किया है, जो मुझे उपयोगी लगी हैं और जब मैं कुछ माह पहले आईसीयू में था तो उन्होंने वास्तव में मेरी मदद की थी!
अरुण शौरी की प्रचलित कुडली पर नजर डालें तो राजनीति के कारक ग्रह राहु की महादशा में उन्होंने राजनीति और पत्रकारिता के क्षेत्र में कामयाबी का परचम लहराया, लेकिन उनको योग्यता के सापेक्ष परिणाम नहीं मिला, उनका ज्यादातर समय संघर्ष में ही गुजरा. राहु की महादशा समाप्त होने के साथ ही पीएम नरेन्द्र मोदी की केन्द्र में सत्ता आई, तो अरुण शौरी भी बीजेपी के अन्य कई योग्य प्रमुख नेताओं की तरह किनारे कर दिए गए!

प्रदीप द्विवेदी के अन्य अभिमत

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