डॉ. अरविंद मिश्रा. यह बिलकुल स्पष्ट है कि सार्स सीओवी- 2 यानी नए कोरोना वायरस और उनके नित नए वैरिएंट के विरुद्ध अलग अलग टीकों का प्रभाव भी एक सा नहीं रहेगा. यह अलग अलग होगा. लगभग अस्सी फीसदी सुरक्षा के दावे तो हैं, शत प्रतिशत किसी के भी नहीं.
एस्ट्राजेनेका की हमारे यहां कोविशील्ड 79 फीसदी तक सुरक्षा का दावा कर चुकी है. इसे लेकर अनेक विवाद भी उठे हैं मगर संतोष है कि विवाद अब निपट गए हैं. सत्तर फीसदी तक या थोड़ा ऊपर सुरक्षा का आशय यह है कि इन टीकों के लगाए जाने के बाद भी एक बड़ी संख्या में लोग कोरोना वायरस से संक्रमित हो सकते हैं. नये वैरिएंट के आते रहने पर जिन्हें कोरोना पहले भी हो चुका है, वे भी संक्रमित हो सकते हैं क्योंकि शरीर की प्रतिरक्षा फौज नए दुश्मनों को पहचानने में चूक कर सकती है.
फिर यह सवाल मौजूं है कि टीके लगवाने का फायदा ही क्या जब इनके लगाए जाने के बाद भी कोरोना हो सकता है? टीके लगवाने के पक्ष में दो प्रमुख दलील हैं - पहली तो यह कि यह कम से कम आपको लगभग सत्तर-अस्सी फीसदी तो सुरक्षा का मौका दे ही रही हैं.
दूसरी सबसे अच्छी बात यह कि जानलेवा संक्रमण से यह सौ फीसदी सुरक्षा दे रही है यानी एक तरह से जान न जाने की शर्तिया सुरक्षा और यही सबसे महत्वपूर्ण बात है. थोड़ा बहुत तबीयत तो भारी होती ही रहती है. बस गंभीर जटिलता न उत्पन्न हो, यही अपेक्षा रहती है जिसके लिये टीके भरोसेमंद हैं. इसलिए यदि आपने टीका न लगवाया हो तो सर्वोच्च प्राथमिकता पर लगवा लीजिए.
मनुष्य में कोरोना महामारी का ‘संक्रमण काल‘ अमूमन चार हफ्ते का होता है. इसके बाद बीमारी से मुक्ति मिल जाती है मगर कुछ के लोगों में बीमारी लंबा खिंचती है जिसे चिकित्सा जगत ‘लांग कोविड‘ (पोस्ट एक्यूट कोविड 19 सिंड्रोम) कह रहा है. अब कोरोना को एक बहु अंगीय (मल्टी ऑर्गन) रोग के रूप में पहचाना गया है जिसमें कई लक्षण दिख सकते हैं. यूके वेरिएंट पेट संबंधी विकार उत्पन्न कर रहा है जिसका टाइफाइड के रुप में आरंभ मे कुछ चिकित्सकों द्वारा गलत निदान किए जाने के मामले भी सामने आ चुके हैं.
लांग कोविड में चार सप्ताह के बाद भी कोरोना रोगी में हरारत - सुस्ती, थोड़ा श्रम पर हाफना, छाती में दर्द के लक्षण दिखते हैं. इससे जाहिर है कि अस्पताल से डिस्चार्ज होने के बाद भी कोरोना रोगी की देखभाल की जरूरत है इसलिए आवश्यकता अब अलग कोविड क्लीनिक की हैं जहां लांग कोविड के रोगी मुकम्मल चिकित्सा की सुविधा पा सकें और ऐसे कोविड क्लीनिक में सभी चिकित्सा फील्ड के विशेषज्ञों की मौजूदगी की सिफारिश हो रही है जिससे रोगियों की मुकम्मल देखभाल (इंटीग्रेटेड केयर) हो सके.
जिन्हें गंभीर कोविड संक्रमण हो चुका है और उम्रदराज हैं और वेंटिलेटर भी रखा गया हो, उन्हें लांग कोविड का खतरा ज्यादा है और इनमें भी जिन्हें शुगर बीपी या कैन्सर रहा हो, खास सावधानी और देखभाल चाहिये. इस महामारी से होने वाले मनोविकारों के लिए मनोचिकित्सकों की मांग भी बढ़ेगी. जन स्वास्थ्य के क्षेत्र में ये चुनौतियां हमारे लिए नई हैं.
Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-एमपी में विस्फोटक हुआ कोरोना: इंदौर, भोपाल, जबलपुर सहित 13 शहरों में लग सकता है दो दिन का लॉकडाउन
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