पीएम नरेन्द्र मोदी ने कभी देश में विभिन्न प्रदेशों के विधानसभा चुनाव और लोकसभा चुनाव को एक साथ कराने की अपील की थी. करीब एक वर्ष पहले नीति आयोग की गवर्निग काउंसिल की बैठक को संबोधित करते हुए पीएम नरेन्द्र मोदी ने सभी पक्षों से इस बारे में गंभीरता से विचार करने और इस मुद्दे पर व्यापक बहस करने की अपील भी की थी. पीएम नरेन्द्र मोदी का कहना था कि इसके वित्तीय फायदे के अलावा भी कई तरह के लाभ हो सकते हैं.
उल्लेखनीय है कि- केन्द्र में सत्ता में आने के बाद पीएम नरेन्द्र मोदी लगातार देश में हर चुनाव को एकसाथ करवाने का मुद्दा उठाते रहते हैं, जबकि गैरभाजपाई दल इससे सहमत नहीं रहे है. तब, गवर्निग काउंसिल की बैठक के बाद नीति आयोग के उपाध्यक्ष का कहना था कि- पीएम ने सभी का ध्यान इस बात की ओर आकर्षित किया कि देश हमेशा चुनाव के मोड में ही रहता है. इस हालात का समाधान निश्चित तौर पर निकालने की जरुरत है, लेकिन इसके लिए हमें व्यापक स्तर पर बहस और विचार-विमर्श करना होगा!
बड़ा प्रश्न यह था कि- पीएम मोदी क्यों एकसाथ चुनाव पर जोर डाल रहे थे? और गैरभाजपाई क्यों सहमत नहीं थे?
एकसाथ चुनाव में जीतने के लिए दो बड़ी आवश्यकताएं हैं, एक तो इसके लिए किसी भी राजनीतिक दल के पास अच्छीखासी धनराशि होनी चाहिए, और दूसरा- राजनीतिक दल के पास हर जगह पर्याप्त संख्या में कार्यकर्ताओं के साथ मजबूत जमीनी संगठन भी होना चाहिए. जाहिर है, केवल बीजेपी ही इस वक्त इन मोर्चो पर सक्षम है.
लेकिन, इस एक वर्ष में देश की सियासी तस्वीर बदल गई है. उत्तर भारत के तीन प्रमुख राज्य- एमपी, राजस्थान और छत्तीसगढ़, बीजेपी के हाथ से निकल गए हैं, इसलिए अब एक देश, एक चुनाव जैसी धारणा ठंडे बस्ते के हवाले कर दी गई है, जबकि पहले माना जा रहा था कि लोकसभा चुनाव के साथ बीजेपी शासित कुछ राज्यों में समय पूर्व विधानसभा चुनाव हो सकते हैं.
महाराष्ट्र, हरियाणा, झारखंड जैसे राज्यों में अब विधानसभा भंग करके लोकसभा-विधानसभा चुनाव एकसाथ शायद ही हों? इन राज्यों में लोकसभा चुनाव के कुछ समय बाद ही विधानसभा चुनाव होंगे, लेकिन जनता का सियासी रूख देखते हुए अब इन राज्यों में निधारित समय पर ही चुनाव होंगे, कारण? यदि केन्द्र में बीजेपी फिर से सत्ता पर कब्जा करने में कामयाब हो जाती है तो विधानसभा चुनाव में इसका फायदा मिलेगा और यदि केन्द्र में बीजेपी सरकार बनाने में नाकामयाब रहती है तो विधानसभा चुनाव के लिए नई रणनीति बनाने का अवसर मिल जाएगा.
यदि ऐसे राज्यों में लोकसभा चुनाव के साथ विधानसभा चुनाव होते हैं तो यह भी संभव है कि केन्द्र की सत्ता तो बीजेपी के हाथ से निकल ही जाए, प्रादेशिक सत्ता से भी बीजेपी बेदखल हो जाए, इसीलिए... अभी तो केवल लोकसभा चुनाव- एक देश, एक चुनाव, फिर कभी!