अन्ना हजारे के अनशन के अर्थ-भावार्थ?

जैसी कि आशंका थी, इस बार भी अन्ना हजारे का अनशन आश्वासन पर खत्म हो गया! रालेगण सिद्धि गांव में अनशन पर बैठे अन्ना हजारे से कृषि मंत्री राधामोहन सिंह, महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस और केंद्रीय मंत्री सुभाष भामरे ने मुलाकात की और 31 जनवरी 2019 से अनशन पर बैठे अन्ना ने इस मुलाकात के बाद अपना अनशन खत्म कर दिया.
सीएम फडणवीस ने प्रेस से कहा कि- अन्ना हजारे की मांगों पर सराकात्मक तरीके से विचार किया जाएगा. लोकायुक्त कानून से देश को नया रास्ता मिलेगा. इससे छोटे इलाके में भ्रष्टाचार रुकेगा. और, इसके बाद अन्ना हजारे अनशन खत्म करने पर सहमत हो गए.
उन्होंने यह भी कहा कि हमने तय किया है कि लोकपाल सर्च कमेटी 13 फरवरी को बैठक करेगी और सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों का पालन किया जाएगा. एक ज्वॉइंट कमेटी का गठन किया गया है, यह एक बिल तैयार करेगी और इसे अगले सत्र में लाया जाएगा.
लेकिन, तस्वीर अभी भी साफ नहीं है कि उनकी प्रमुख मांगों को वास्तव में कैसे पूरा किया जाएगा?
याद रहे, अन्ना हजारे की मांग थी कि- केंद्र में लोकपाल और महाराष्ट्र में लोकायुक्त तुरंत प्रभाव से लागू किया जाए. अन्ना का तो यह भी कहना था कि अगर लोकपाल लागू होता तो राफेल जैसा घोटाला नहीं हो पाता!
दरअसल, अपनी मांगे मनवाने के लिए बीसवीं सदी का अनशन का तरीका अब उतना प्रभावी इसलिए नहीं है कि वर्तमान राजनेताओं का नैतिकता से कुछ खास लेनादेना नहीं है. यह तो लोकसभा चुनाव करीब हैं इसलिए इतनी भी सुनवाई हो गई, वरना हाल के कुछ अनशन पर नजर डालें तो अनशन कितना भी लंबा चलता, सरकार पर असर नहीं होने वाला था?
विभिन्न सियासी दल भी इस सच्चाई से परिचित हैं और इसीलिए शिवसेना ने भी अन्ना हजारे के अनशन पर चिंता व्यक्त की थी. शिवसेना सांसद संजय राउत का कहना था कि सरकार उनकी जान से खेल रही है, हम लगातार उनके संपर्क में हैं. सरकार चाहती है कि अन्ना जल्दी अपना अनशन खत्म करें.
उल्लेखनीय है कि महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के प्रमुख राज ठाकरे धरने पर बैठे समाजसेवी अन्ना हजारे से मिलने रालेगण सिद्धि पहुंचे थे और अन्ना हजारे से मिलने के बाद राज ठाकरे ने उन्हें अपना समर्थन देते हुए कहा था कि अन्ना हजारे ऐसे लोगों के लिए अपनी जान को दांव पर लगा रहे हैं जिन्हें उनकी परवाह नहीं है.
इतना ही नहीं, राज ठाकरे ने अन्ना से मिलने के बाद पीएम मोदी सरकार के प्रति खासी नाराजगी व्यक्त करते हुए कहा था कि- अन्ना को इस निर्दयी सरकार के लिए अपनी जान की बाजी नहीं लगानी चाहिए. उन्होंने यह भी कहा कि यह अब तक की सबसे बड़ी झूठ बोलने वाली सरकार है!
इस अनशन प्रकरण के सियासी संकेत यही हैं कि अब अनशन जैसे बीसवीं सदी के ऐसे तौर-तरीकों से वर्तमान राजनेताओं और सरकारों को सही निर्णय लेने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता है, मतलब... भविष्य में अन्ना कोई आंदोलन करना चाहें तो उन्हें सोच-समझ कर कदम उठाना होगा!

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