किसी और की गलती की सजा इस वक्त सारा देश पा रहा है. अच्छी बात है कि इस दौरान समाज और सरकार ने गरीबों को राहत प्रदान करने, सहयोग देने के बारे में सोचा, लेकिन कईं ऐसे वर्ग हैं, जो भविष्य की बढ़ती आर्थिक जिम्मेदारियों को लेकर भारी तनाव में हैं.
ऐसा ही वर्ग है- किरायेदार. देश में करोड़ों किरायेदार हैं, कुछ मकान के, तो कुछ दुकान के. इन किरायेदारों का कामधंधा तो बंद हो गया है, लेकिन किराये का मीटर चालू है? वे आनेवाले समय में कहां से किराया देंगे?
यदि किराया नहीं देंगे तो मकान-दुकान मालिक के घर-परिवार का खर्च कैसे चलेगा? स्थिति सामान्य होने के बाद किरायेदार और मकान मालिकों के बीच विवाद होंगे, सो अलग!
किरायेदारों के लिए केवल मकान मालिकों से किराया माफ कर देने की अपील के साथ छोड़ देने से यह समस्या खत्म नहीं होगी, बल्कि अचानक घोषित लाॅक डाउन के बाद जिस तरह अफरा-तफरी का माहौल बना था, वैसी ही समस्या खड़ी हो जाएगी?
उस समय मजबूर मजदूर तो बच्चों के साथ सैकड़ों किमी पैदल चल कर जैसेतैसे अपने घर पहुंच गए थे, लेकिन आगे के तनाव का क्या?
ये मजदूर भी अपने मकान मालिक को किराया कहां से देंगे? दिल्ली, मुंबई जैसे शहरों में किराए के मकानों में रहने वाल ऐसे लोग, जो अपने घर आ गए है, उनका सारा सामान वहीं पड़ा है, उसका क्या होगा?
यह समय केवल आदर्श प्रवचन का नहीं है. समय रहते हर सेक्टर की वास्तविक समस्याओं को समझते हुए उनके प्रायोगिक समाधान का है!