सीएए को लेकर जिस तरह की तस्वीर उभर रही है, उसको देखते हुए बड़ा सवाल यह है कि क्या अति-आत्मविश्वास में निर्णय लेकर पीएम मोदी सरकार उलझ गई है?
इसे लेकर विपक्ष को तो खैर विरोध करना ही था, लेकिन सहयोगी और सहयोगी दलों की सियासी बेचैनी बीजेपी के लिए परेशानी का सबब है!
खबर है कि पश्चिम बंगाल भाजपा के उपाध्यक्ष और नेताजी सुभाष चंद्र बोस के पौत्र चंद्र बोस का कहना है कि- वे नेताजी के राजनीतिक मार्ग पर नहीं चल पा रहे हैं और अगर धर्मनिरपेक्षता को लेकर उनकी चिंताओं का समाधान नहीं किया गया तो वे पार्टी में बने रहने पर पुनर्विचार कर सकते हैं?
उन्होंने नागरिकता संशोधन कानून की प्रशंसा तो की लेकिन साथ ही यह भी कहा कि कुछ बदलाव करने होंगे ताकि किसी भी पीड़ित को नागरिकता दी जा सके, चाहे वे किसी भी धर्म के हों?
उनका कहना था कि- मैं भाजपा के मंच का इस्तेमाल करके धर्मनिरपेक्षता और समावेश के सिद्धांतों को फैलाना चाहता हूं और जब मैंने जनवरी 2016 में भाजपा की सदस्यता ली थी तो मैंने यह बात पीएम नरेंद्र मोदी और तत्कालीन बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह से कही थी? वे भी इस पर सहमत हुए थे!
परन्तु.... अब मुझे लग रहा है कि मैं नेताजी के सिद्धांतों का पालन नहीं कर पा रहा? अगर यह चलता रहा तो मुझे पार्टी में बने रहने पर सोचना होगा!
याद रहे, पहले भी चंद्र बोस ने मुसलमानों को नागरिकता संशोधन अधिनियम के दायरे में लाने का अनुरोध किया था और कहा था कि- किसी भी कानून को लोगों को डराकर लागू नहीं किया जा सकता है?
राजनीतिक जानकारों का मानना है कि सीएए से बीजेपी को कोई बड़ा सियासी फायदा तो होना नहीं है, अलबत्ता केन्द्र सरकार ने अपने आप को ही सवालों के घेरे में खड़ा कर लिया है? बाहरी विरोधियों को तो जवाब देना जरूरी नहीं है, लेकिन अंदर असंतुष्ट बढ़ते गए तो क्या होगा?