प्रभात झा निसंदेह एक गजब की खूबी से भरे नेता हैं. बयान के जरिए कब, कहां और कितनी आग उगलना है, इस मामले में उनके कैलकुलेशन का कोई सानी नहीं है. टीवी कैमरे पर उन्होंने शायद ही कभी किसी बाइट की शुरूआत से अंत तक अपने तीखे आरोह को अवरोह के समीप भी आने दिया हो. इस से ठीक उलट हिसाब है कमलनाथ का. कई बार तो ऐसा लगता है कि उनके होंठों की फड़फड़ाहट से इंतजार में कैमरा ही दम न तोड़ दे. उत्तर इस मुद्रा में देते हैं कि अक्सर सवाल पूछने वाल ही भ्रमजाल का शिकार हो जाता है कि आखिर उसने क्या सवाल पूछा था. झा बयानों में विशुद्ध रूप से अपने मतलब (लाभ कहना ज्यादा उचित होगा) की बात कहते हैं, लेकिन किसी खास शब्द का ऐसा दुमछल्ला भी फिट कर देते हैं कि बाइट चाहने वालों की सनसनी की भूख उस समय के लिए खत्म हो जाती है. जबकि कमलनाथ इस तरह से जो बात रखते हैं, उनका स्वरुप अक्सर क्षण भंगुर वाला होता है. पेरिस में एक शख्स जनाना लिबास हाथ में लिए सड़क पर बदहवास दौड़ रहा था. किसी ने पूछा, तो बोला, बीवी के लिए नया ड्रेस खरीदा है. इसके पहले की फैशन बदल जाए, ये उसे सौंप देना चाहता हूं
कमलनाथ भी बयान के नाम पर जो पुड़िया थमाते हैं, उसकी एक्सपायरी डेट बहुत कम देर ही होती है. यानी के कब उसका भावार्थ बदल जाए, कोई नहीं जानता. बेजन दारूवाला यूं तो स्वाभाविक मृत्यु को प्राप्त हुए, लेकिन मेरा दावा है कि यदि उन्होंने नाथ के किसी कथन से जुडी बात को भविष्यवाणी की कसौटी पर रखने की कोशिश की होती, तो वे अहसास-ए-नाकामी से पहले ही दम तोड़ चुके होते. तो अब राजनीतिक कव्वाली का ताजा मुकाबला झा और नाथ के बीच ही चल रहा है. भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष ने प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री को चीन का एजेंट कह दिया है. नाथ शायद इससे भी बड़े किसी आरोप की प्रतीक्षा कर रहे हैं. लिहाजा झा के कहे पर उन्होंने अंगड़ाई लेने तक का उपक्रम नहीं किया है. उनके मुखपत्र के इंसानी अवतार नरेन्द्र सलूजा अलबत्ता हत्थे से उखड गए हैं. कुछ और सिपहसालार भी सक्रिय हो उठे हैं. कह रहे हैं कि झा हताशा में आकर ऐसी गलत बयानबाजी कर रहे हैं. मगर कमलनाथ खामोश हैं. इतनी ही खामोशी के साथ उन्होंने मुख्यमत्री रहते हुए चीन के लिए अपने लगाव का परिचय दे दिया था. चीन में एक खास किस्म का बांस उगता है. इसे टुल्डा बांस कहते हैं.
इससे बनी अगरबत्ती काडी का बाजार भारत और मध्य प्रदेश में बढ़ रहा है. मुख्यमंत्री बनने के बाद कमलनाथ ने चीनी टुल्डा बांस की प्रजाति छिंदवाड़ा में लगाने के लिए एक विशेष बैठक बुलाई थी. इसमें बांस मिशन के अफसरों को निर्देश दिए गए थे कि इस चीनी प्रजाति को बढ़ावा दिया जाए. कमलनाथ चाहते थे कि चीनी बांस छिंदवाड़ा और अन्य जगह लगाया जाए. इसकी काड़ी बनाने का कारखाना भी जाहिर है कि छिंदवाड़ा में ही लगना चाहिए.इसके लिए उन्होंने उद्योगपतियों की एक बैठक भी बुलाई थी. वन विभाग के अफसरों ने स्थानीय बांस की प्रजाति को प्रमोट करने का प्रस्ताव भेजा था. इस प्रस्ताव में वन विभाग ने यह जिक्र किया था कि चीनी प्रजाति के बांस के लिए मध्यप्रदेश का वातावरण अनुकूल नहीं है, इसलिए वो यहां बेहतर तरीके से पनप नहीं पाएगा. इसका फायदा चीन के खाते में दर्ज होना था. खेर, कमलनाथ की कुर्सी चले जाने के बाद उनके ओएसडी रहे अशोक वर्णवाल प्रमुख सचिव वन के तौर पर शिवराज सरकार में काम कर रहे हैं और कमलनाथ के मिशन को ही आगे भी बढ़ा रहे हैं. वे लगातार बांस मिशन के अफसरों के साथ बैठक कर रहे हैं और दौरे भी .
यहां यह भी उल्लेखनीय है कि जंगल महकमे के अफसर श्रीनिवास को प्रमोट करने के लिए जो उद्योगपति भोपाल आए थे, कमलनाथ ने उनकी मुलाकात अशोक वर्णवाल से कराई थी और उनको ही मिशन का दायित्व सौंपा था. पूर्वोत्तर भारत में उसका अगरबत्ती की सींक बनाने सहित अन्य कुछ और निर्माण में भी टुल्डा बांस का इस्तेमाल किया जाता है. लेकन न मध्यप्रदेश की मिट्टी इस बांस के अनुकूल है और न ही यहां की आबो-हवा. पता नहीं क्यों कमलनाथ इस बांस से जुड़ी इंडस्ट्री छिंदवाड़ा में लगाने पर तुले थे. ऐसा करने से पहले ही उनके तम्बू में बम्बू हो गया. ज्योतिरादित्य सिंधिया ने नाथ के इस हिंदी-चीनी भाई-भाई के नारे का सत्यानाश कर दिया. एक बहुत रोचक कहानी तीसरा अपराध पढ़ी थी. इसका मुख्य किरदार खुद पर लगे हर आरोप/आक्षेप पर चुप रहता है. लेकिन तीसरी बार होने पर वह प्रतिवाद में मुंह खोलता है. बस एक वाक्य कहता है और कहानी खतम. नाथ को एक झटका सिंधिया ने दिया तो दूसरे के संवाहक दिग्विजय सिंह बने. अब झा ने तीसरा काम कर दिया है. उम्मीद की जाना चाहिए कि उनका कुछ गुस्सा सामने आएगा.
दिग्विजय के मामले में वह कुछ गुस्से में दिखे जरूर थे, लेकिन फिर जस की तस धर दीनी चदरिया वाली मुद्रा में अपने राजनीतिक भाई के साथ सामान्य हो गए. इसलिए कमाल है. झा के आरोप को चौबीस घंटे बीतने के बावजूद नाथ चुप हैं. यूं भी उनका गुस्सा जताने का तरीका नायाब है. मुख्यमंत्री बने तो तत्कालीन विपक्ष इमरजेंसी का मामला उठा लाया. जवाब में नाथ ने अपनी और संजय गांधी की तस्वीरों की सार्वजनिक तौर पर नुमाइश कर दी. अंदाज, लो, जो करते बने, कर लो वाला था. तब थे भी वह मुख्यमंत्री. इसलिए डरे नहीं. लेकिन अब तो उन्हें और डर नहीं होना चाहिए. जीवन के सबसे बड़े राजनीतिक लाभ को महज पंद्रह महीने में खोने के बाद तो उन्हें जुनूनी हो जाना चाहिए था. मुख्यमंत्री पद से यूं रुखसती के बाद इतने बुरे किसी और घटनाक्रम की तो नाथ के विरोधी भी कामना नहीं करते होंगे. इसलिए प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष को चाहिए कि वह सप्रमाण झा के आरोपों का जवाब दें. कमलनाथ से यह अपेक्षा भी बेमानी नहीं है कि उनका यह जवाब मुंहतोड़ हो. यदि आप सच्चे हैं तो फिर पलटवार में विलम्ब कैसा और किसलिए होना चाहिए. जिस पार्टी का शीर्ष नेतृत्व ही चीन से मधुर संबंधों को लेकर बगले झांकने वाली मुद्रा में आ गया हो, उस पार्टी की स्थिति कमलनाथ पर लगे ताजा आरोप से और भी ज्यादा मलिन हो रही है. इसलिए दिल्ली के स्तर से न सही, दिल यानी देश के हृदय प्रदेश के स्तर से ही भाजपा को करारा जवाब दे दिया जाना चाहिए. लेकिन लाख टके का सवाल यह कि क्या खुद नाथ कोई जवाब दे पाने की स्थिति में हैं? आखिर धुंआ तो मौजूद है ही....