नाथ का भूला वाला अंदाज

रोहित शेट्टी की तमाम घटिया फिल्मों में से एक का 'भूला' नाम वाला किरदार याद आ गया. वह चरित्र, जो किसी भी समय अचानक याददाश्त खो बैठता है. फिल्म में उससे जुड़े ऐसे प्रसंग हास्य का पुट बढ़ाने की गरज से इस्तेमाल किये गए थे. घटियापन तो मध्यप्रदेश की अट्ठाइस सीटों पर होने जा रहे उपचुनाव में पहले ही कूट-कूटकर भर दिया गया है. अब इस सियासी सेल्युलॉइड में कमलनाथ 'भूला' की तरह ही हास्य के पात्र बन गए हैं. यह कमाल उन्होंने खुद ही कर लिया है

'आयटम' वाले बयान पर नाथ ने गजब मासूम दलील दी है. कह रहे हैं कि यह बात कहते समय वह इमरती देवी का नाम भूल गए थे. आयोजकों ने जो लिस्ट उन्हें थमाई, उसमें कई आयटम के नाम लिखे थे. इसी झोंके में वह इमरती की जगह भी आयटम कह गए.

सचमुच इस सादगी पर कौन न मर जाए खुदा....जो महिला पंद्रह महीने में असंख्य बार मंत्री की हैसियत से कमलनाथ कैबिनेट की बैठक में शामिल हुई, जिसका मंत्री के तौर पर चयन खुद कमलनाथ ने किया था, उसी महिला का पूर्व मुख्यमंत्री यदि नाम भूल गए हैं तो फिर उनकी मानसिक हालत पर तरस ही खाया जा सकता है. नाथ को चाहिए की कि वे तत्काल किसी अच्छे डाक्टर की सलाह और इलाज लें. भूलने की ऐसी विस्मयकारी अवस्था बहुत खराब तबीयत की ही पहचान कही जा सकती है. अब बीजेपी ने तो और तगड़ा दांव चल दिया है.


बिसाहूलाल सिंह के बिगड़े बोल के लिए खुद राज्य के गृह मंत्री नरोत्तम मिश्रा ने माफी मांग ली है. नाथ ने भी अपने कथन के लिए खेद तो जताया है, किन्तु यह भाव उनके साथ-साथ पूरी कांग्रेस के व्यवहार में कहीं भी नजर नहीं आ रहा. नाथ अब भी अपने कहे की व्याख्या कर उसे सही ठहराने का जतन कर रहे हैं. कांग्रेस प्रवक्ता भूपेंद्र गुप्ता तो और भी गजब कर गुजरे.
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को खत लिखकर उन्होंने कहा कि यदि बीजेपी को आयटम शब्द से इतनी ही आपत्ति है तो वे इस शब्द के इस्तेमाल पर राज्य में प्रतिबन्ध लगवा दें. गुप्ता को कौन समझाए कि आपत्ति 'आयटम' से नहीं, बल्कि उसके किसी महिला के लिए इस्तेमाल से है. जिस तरह किसी निर्वाचित जनप्रतिनिधि के लिए 'गद्दार' और 'बिकाऊ' शब्द कहना गलत है, उसी तरह से किसी भी मनुष्य को आयटम कहकर बुलाना भी घोर आपत्तिजनक आचरण है. दरअसल कांग्रेस यह साहस भी नहीं दिखा पा रही कि अपने प्रदेश अध्यक्ष की गलती स्वीकार कर ले. इसी फेर में यह दल एक गलती को ढकने के चक्कर में गलती-दर-गलती करता जा रहा है. यदि नाथ वाकई इमरती देवी का नाम भूल गए तो फिर इससे तो उनकी नेतृत्व क्षमता पर सवाल उठने लगेंगे. संगठन में पदाधिकारी तो दूर, अधिक से अधिक कार्यकर्ताओं तक को पहचानना जरूरी होता है. यही वह तत्व है, जो किसी भी संगठन को मजबूती प्रदान करता है. लेकिन भूलने की बीमारी के शिकार किस तरह संगठन को अपनी बीमारी के अन्य रोगों के रूप में होने वाले संक्रमण से बचा सकेंगे, यह सवाल बेहिचक किया जा सकता है.

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