अब प्रायश्चित करना चाहिए बाबा को

योग गुरु बाबा रामदेव अपनी सोच के स्तर पर बेलिबास हो गए हैं. औरतों के लिबास को लेकर जो हल्की टिप्पणी उन्होंने की, वह स्तब्ध कर देने वाली है. अपने हास्य-बोध का परिचय देने की रौ में बाबा ऐसी बातें कह गए तो उन्हें योग गुरु वाले सम्मानजनक दायरे से बाहर खींचकर गुरुघंटाल वाली जमात के पास ला खड़ा कर देने के लिए पर्याप्त है.

यह सोचकर और शर्म आती है कि ऐसा उस व्यक्ति ने किया, जो अपने आचार-विचार से अब तक भारतीयता और हिंदुत्व का प्रतीक-पुरुष माना जाता रहा है. बहुत संभव है कि बाबा अब कह दें कि उनके कहे का गलत अर्थ निकाला गया. उनकी बातों को तोड़-मरोड़कर पेश किया गया. उनके शब्दार्थ और भावार्थ के बीच जमीन-आसमान का अंतर है. ऐसी तमाम उलटबासियों का आविष्कार पहले ही हो चुका है और उन पर किसी का कॉपीराइट नहीं है.
बाबा स्वतंत्र हैं कि इनमें से किसी भी अस्त्र को चलाकर वे खुद पर हो रहे हमलों से अपना बचाव कर सकें. लेकिन किसी को भी यह स्वतंत्रता नहीं है कि किसी के भी लिए इस तरह की बात कह दे, जो रामदेव ने कही. किसी समय स्त्री का लिबास पहनकर ही गिरफ्तारी से बचे रामदेव अब उस मानसिकता के गिरफ्त में दिख रहे हैं, जो कई सवाल खड़े करती है.

सबसे बड़ा सवाल तो यह कि यह वाक्य बाबा के स्वभाव के मूल का परिचायक है या नहीं? ओशो रजनीश जब कहते थे कि हर इच्छा की पूर्णता के बाद ही समाधि वाले सुख को सही अर्थ में पाया जा सकता है, तब उनकी काफी आलोचना भी हुई. किन्तु आज ऐसा लगता है कि रामदेव के भगवा चोले के नीचे वाले जिस्म को ओशो के इस उपदेश के अनुपालन की सख्त जरूरत है. और यदि ऐसा नहीं है तो फिर योग गुरु को बिना किसी ‘किन्तु-परन्तु’ के तत्काल प्रभाव से अपने कहे के लिए माफी मांगनी चाहिए.

यकीनन आप सितारा छवि के धनी हैं. करोड़ों लोगों को आपने भारतीय जीवन, व्यायाम तथा चिकित्सा पद्धति से जोड़ने का महान काम किया है. लेकिन इसका अर्थ यह नहीं हो जाता कि आप मर्यादा को तोड़ने के अधिकारी बन जाएं. कम से कम इस बात का तो आपको ध्यान रखना ही होगा कि आपकी बेलगाम जुबान उस शरीर से जुड़ी है, जो एक धर्म के प्रतीक भगवा वस्त्र में लिपटा हुआ है. आपकी वाणी एक पूरे उस समुदाय को विचित्र स्थिति में ला दे रही है, जिसकी सदस्यों की बहुत बड़ी संख्या ने आपको आध्यात्मिक विभूति वाला सम्मान प्रदान किया है.

एक महिला के परिवार में रिश्ते के लिए लोग आए. पति ने ताकीद की कि लड़के के पिता की नाक कुछ खराब है और उसके बारे में टिप्पणी किए जाने से वह बेहद चिढ़ते हैं. महिला ने तय कर लिया कि चाहे जो हो, वह नाक के बारे में कुछ भी नहीं बोलेगी. लेकिन नाक की बात उसके दिमाग में जैसे स्थायी रूप से बैठ गयी. लड़के वाले आए. महिला ने उस आदमी की तरफ देखने तक से परहेज किया. किंतु विचार में तो नाक ही घूम रही थी. इसलिए जैसे ही उसने मेहमानों की चाय में शकर डालना शुरू की, वैसे ही उस आदमी के लिये उसके मुंह से अपने आप निकल गया, ‘आपकी नाक में कितनी शकर डालनी है?’ क्या ऐसा ही रामदेव के साथ हुआ है?

क्या स्त्रियों के लिए ऐसे विचार उनके मन में कहीं लगातार विचरण कर रहे थे? जिन्हें वह किसी तरह दबाते चले आ रहे थे और जो अपने आप ही मुंह से निकल गए? वजह चाहे जो भी रही हो. आशय कैसा भी हो. सन्दर्भ कुछ भी हो. इस सबके बाद भी जो हुआ, वह किसी भी दृष्टि से उचित नहीं कहा जा सकता है. बाबा ने न सिर्फ नारी जगत को अपमानित किया है, बल्कि उन्होंने अपने पद और कद, दोनों के लिए खुद ही सम्मान को कम भी कर लिया है और अब इसका प्रायश्चित उन्हें स्वयं ही करना होगा.

© 2023 Copyright: palpalindia.com
CHHATTISGARH OFFICE
Executive Editor: Mr. Anoop Pandey
LIG BL 3/601 Imperial Heights
Kabir Nagar
Raipur-492006 (CG), India
Mobile – 9111107160
Email: [email protected]
MADHYA PRADESH OFFICE
News Editor: Ajay Srivastava & Pradeep Mishra
Registered Office:
17/23 Datt Duplex , Tilhari
Jabalpur-482021, MP India
Editorial Office:
Vaishali Computech 43, Kingsway First Floor
Main Road, Sadar, Cant Jabalpur-482001
Tel: 0761-2974001-2974002
Email: [email protected]