कांग्रेस का प्रोफेशनल माई-बाप

कांग्रेस  के वैचारिक स्खलन तथा उससे उपजी ऐसी शिथिलता की तो शायद उसके दुश्मनों ने भी कभी कामना नहीं की होगी। यदि देश के सबसे पुराने इस राजनीतिक दल को अपनी दशा और दिशा में सुधार की गरज से प्रशांत किशोर  के आगे त्राहिमाम वाली मुद्रा में समर्पित हो जाना पड़ गया है तो यह सचमुच हालात के कैनवास  पर उकेरा गया कांग्रेस का विचित्रतम चित्र ही कहा जा सकता है। यह इस दल का दुर्भाग्य ही कहा जाएगा कि आज भी अपने यहां अनेक दिग्गज एवं सक्षम चेहरों के मौजूद होने के बावजूद इस दल को रणनीति के लिए किसी ‘ऋण-नीति’ की जरूरत आन पड़ गयी है।

प्रशांत किशोर कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक में शामिल हुए। उन्होंने इस दल की स्थिति को लेकर एक प्रेजेंटेशन  दिया। शायद पार्टी का वर्तमान नेतृत्व  इस सबसे अभिभूत हो गया, इसलिए किशोर किसी से यह ख्वाहिश तक जाहिर कर गए कि वह दरअसल कांग्रेस का राष्ट्रीय उपाध्यक्ष  होना चाहते हैं। कांग्रेस के लिहाज से इस अभिलाषा में कोई ताज्जुब की बात नहीं होना चाहिए। जिस दल के चुनाव हारने का रिकॉर्ड कायम करने वाले राहुल गांधी आज भी अध्यक्ष पद के लिए उपयुक्त माने जाते हों, वहां कम से कम प्रशांत तो किसी भी वरिष्ठ पद के लिए राहुल से अधिक मुफीद ही माने जा सकते हैं। लेकिन क्या वाकई यह दल विपरीत परिस्थितियों के दलदल में इस कदर फंस चुका है कि उसे किसी चुनावी रणनीतिकार के आगे दंडवत की मुद्रा में बिछ जाना पड़ जाएगा?

यूं तो प्रोफेशनल्स की मदद कांग्रेस ने पहले भी ली है, लेकिन तब आज के मुकाबले परिस्थितियां बिलकुल उलट थीं। उस समय विपक्ष कमजोर था और कांग्रेस मजबूत। आज कांग्रेस उतनी भी मजबूत नहीं रह गयी है, जिसने उसके मुकाबले किसी समय दो लोकसभा सीट वाली भाजपा  हुआ करती थी। ऐसे में अहम सवाल यह कि प्रशांत किशोर आखिर किस तरह कांग्रेस को आगे ले जा पाएंगे? इस समय PK किन लोगों के नजदीकी हैं? पता नहीं कांग्रेस  ने इस सवाल पर गौर किया या नहीं। ममता बैनर्जी  और केसीआर के भी वे इस समय मुख्य सलाहकार हैं। क्या ममता व्हाया प्रशांत किशोर कांग्रेस के जेरे साए अपने लिए राष्ट्रीय राजनीति  में कोई जगह तलाश रही हैं? ममता और केसीआर तो फिर भी अपने राज्यों में ताकतवर हैं लेकिन क्या आज गांधी परिवार की छत्रछाया में कांग्रेस इस स्थिति के आसपास भी है। सबसे बड़ी बात यह कि क्या कांग्रेस आज इस लायक रह गयी है की खुद को किसी प्रोफेशनल की नीतियों के मुताबिक ढाल सके?

मौत के मुहाने पर पहुंचे किसी मरीज को जीवनदायिनी औषधि देकर यकायक फिर से चुस्त-दुरुस्त नहीं बनाया जा सकता है। यही स्थिति आज कांग्रेस की है। उसकी अंदर से कमजोर हो चुकी काया को जिस नेतृत्व तथा उसके प्रति विश्वास की दरकार है, वह सब प्रशांत किशोर के गणित से संभव नहीं है। वरना तो यह याद ही है कि किस तरह खाट पर चर्चा जैसे असरकारी लगने वाले प्रयोग के बाद भी उत्तर प्रदेश  के वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव  में कांग्रेस सात सीटों पर ही सिमट कर रह गयी थी। सही मायनों में तो उसकी खाट खड़ी हो गयी थी। इसकी वजह यह कि यह दल अब ऐसे किसी प्रयोग को पूरी ताकत से सफलतापूर्वक लागू करने की शक्ति तथा इच्छाशक्ति, दोनों से ही वंचित हो चुका है। उत्तरप्रदेश में प्रियंका  की ‘लड़की हूं लड़ सकती हूं’ की मैराथन में कांग्रेस इतनी आगे निकल गई कि सात से दो सीटों पर आकर रूकी।

पंकज शर्मा  कभी राजधानी दिल्ली के सत्ता के गलियारों में एक दमदार पत्रकार की हैसियत रखते थे। बाद में वे कांग्रेसी हो गए। अब आज की कांग्रेस के लिहाज से दो तरह से अनफिट भी हो गए। पहला, वह पार्टी पर काबिज कागजी नेताओं की तुलना में अधिक समझदार हैं। दूसरा, आखिर वे पत्रकार हैं तो उनके भीतर अब भी सच बोलने का माद्दा बचा है। इन दोनों, या इनमें से किसी एक वजह के चलते वह कांग्रेस में हाशिये पर हैं। इसलिए यह कल्पना भी बेमानी है कि इस विषय पर कांग्रेस शर्मा की राय को कोई तवज्जो देगी। वरना तो शर्मा ने किशोर जैसे शर्मनाक अध्याय को लेकर जो कहा है, वह तीखा सच है। पंकज शर्मा ने अपनी फेसबुक वाल पर लिखा है, ‘यह सोच कर ही अजीब लग रहा है कि 24 साल से कांग्रेस चला रहीं सोनिया गांधी और 18 साल से राजनीति कर रहे राहुल गांधी को अपने चार-पांच दशक पुराने दिग्गजों के साथ पांडे जी की पाठशाला में बैठ कर 2024 का आम चुनाव जीतने के तरीके सीखने पड़ रहे हैं। ऐसे तो हो गया नरेन्द्र मोदी  से मुकाबला!’ उनकी दूसरी टिप्पणी भी गौर करने लायक हैं, पहले अनाप-शनाप पैसे ले कर जनाब जो काम करते थे, अब हैसियत से बड़ा पद ले कर वह काम करेंगे। तब आंख मूंद कर नोटों के बोरे जनाब को थमा देने वाले भी अजब थे और अब बिना सोचे-समझे राजनीतिक कुर्सी जनाब को सौंपने की तैयारी कर रहे भी गजब हैं।’

किशोर के दखल को लेकर पार्टी के बाकी असंतुष्टों के स्वर भी सुने और गुने जाने लायक हैं। यदि सोनिया गांधी, राहुल गांधी और प्रियंका वाड्रा अपने-सपने स्तर पर घोर असफल साबित हुए हैं तो इसका मतलब यह नहीं है कि पार्टी के शेष नेताओं को भी नाकारा समझकर किसी प्रोफेशनल को माई-बाप मान लिया जाए।

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