तो क्या सचिन पायलट की सियासी उड़ान क्रैश हो गयी है? उन्हें उप मुख्यमंत्री सहित राजस्थान प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष पद से हटा दिया गया है. उनके समर्थक तीन मंत्रियों की छुट्टी कर दी गयी है. लेकिन अब इन्तजार है पायलट के अगले कदम का. वह राजनीतिक पृष्ठभूमि वाले परिवार से हैं. बगैर किसी पुख्ता तैयारी के उन्होंने बगावती तेवर नहीं ही अपनाए होंगे. भाजपा से हाथ मिलाने का विकल्प तो उनके पास पहले से ही है, अब देखना यह है कि क्या इस एक कदम के अलावा उनके तरकश में कोई और तीर भी मौजूद है? वैसे देखा जाए तो कांग्रेस का यह कदम उसकी सख्ती का परिचायक कम दिखता है. मामला डर पर विजय पाने की कोशिश वाला है
इसलिए कठोर कार्यवाही के जरिये बाकी लोगों को चेतावनी देने का प्रयास किया गया है. यह भय स्वाभाविक है. छत्तीसगढ़ में जिस तरह संसदीय सचिव पद की रेवड़ी बांटी गयी, उससे जाहिर है कि बगावत के संक्रमण की बात से यह दल सहमा हुआ है. हालांकि छत्तीसगढ़ में कांग्रेस के पास विधानसभा में बंपर बहुमत है. पतंगबाजी में पेंच लड़ाने का एक खास दांव होता है. दोनों पक्ष अपनी-अपनी पतंगों को लगातार ढील देते जाते हैं. फिर एक निर्णायक क्षण पर जो तेजी से डोर खींच ले, वह अगले की पतंग काट देता है. यहां मामला अलग है. पायलट शुरू से ही डोर तान कर मैदान में हैं. कांग्रेस कल तक ढील पर ढील देती रही. उसने पायलट को पुचकारा.
तीस दिन के भीतर मंत्रिमंडल के पुनर्गठन का झुनझुना देकर नाराज विधायकों को बहलाने की कोशिश की. फिर आज उसने भी डोर खींच दी. किसी भी बड़े निर्णय के पीछे बहुत बड़ी हानि की आशंका भी छिपी रहती है. लेकिन कुछ लोग अलग मिट्टी के बने होते हैं. वह यह सोचकर ही आगे बढ़ते हैं कि इससे ज्यादा से ज्यादा उनका यही नुकसान ही हो सकता है. यह जूनून भीतर हो तो घाटे के बावजूद अगले के तेवर ठन्डे नहीं पड़ते हैं. वह विपरीत परिस्थितियों से संघर्ष जारी रखता है. पायलट भी निश्चित ही अपने इस हश्र से अनभिज्ञ नहीं रहे होंगे. इसलिए माना जा सकता है कि आज वाली कार्यवाही से उनका खेमा खास विचलित न हो. शायद वह अब प्लान बी पर काम शुरू कर दे.
क्योंकि इन हालात के बावजूद यदि अशोक गेहलोत सरकार कायम रह गयी तो यह सियासत की पिच पर इस सचिन के लिए हिट-विकेट वाली शर्मनाक स्थिति बन जाएगी. ज्योतिरादित्य सिंधिया और उनके समर्थकों को हाथों-हाथ लेकर भाजपा ने पहले ही पायलट जैसी मानसिकता के लिए 'अच्छे दिन' वाले संकेत का प्रदर्शन कर रखा है. ये कल्पना तो आकाश कुसुम खिलाने जैसी होगी कि पायलट भाजपा विधायकों को तोड़कर अपनी नयी पार्टी के जरिए सत्ता में आ जाएंगे. उस पर यह सोचना तो और भी बचकाना होगा कि भाजपा पायलट को मुख्यमंत्री बनाने के लिए अपने विधायक दल का समर्थन उपलब्ध करा देगी. प्राइवेट सेक्टर में एक बात कही जाती है.
एक नौकरी रहते हुए दूसरी की बात करो तो तनख्वाह में फायदा होना तय है, लेकिन पहली नौकरी छोड़ने के बाद दूसरी की तलाश में नुकसान होना तय है. पायलट यदि उप मुख्यमंत्री रहते हुए ही बगावती तेवर कायम रखते तो भाजपा उन्हें खासा बड़ा लाभ आफर कर सकती थी. अब शायद ऐसा न हो पाए. लेकिन लालच तो बीजेपी को भी होगा ही. आखिर कांग्रेस की सरकारों को गिराने में उसकी खासी महारत है. इसलिए मुमकिन है कि पायलट के विधायकों का समर्थन पाने की खातिर यह पार्टी इस गुर्जर युवा तुर्क को उनकी वर्तमान स्थिति के मुकाबले कुछ अधिक तवज्जो देने पर राजी हो जाए. राजस्थान की मौजूदा सरकार गिरे न गिरे, लेकिन इस घटनाक्रम ने कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व की क्षमताओं का ग्राफ एक बार फिर गिरा दिया है. पायलट और उनके समर्थक नाराजगी की जो दीमक पार्टी और सरकार के भीतर छोड़ कर गए हैं, उससे निपटना कांग्रेस के लिए आसान नहीं होगा. तो देखना होगा कि अब भविष्य के पेस्ट कण्ट्रोल के लिए कांग्रेस की कोई प्लानिंग है भी या नहीं.