यह ओछापन और खोटापन, दोनों पुश्तैनी वाले मामले ही हो सकते हैं. बाकी कांग्रेस खुद तो कभी-भी ऐसी नहीं रही, जैसी कर दी गयी है. बरसात में बहुधा लोगों को पेट खराब होने की दिक्कत होती है. बारिश का पानी जमीन में जाकर पानी की पाइप लाइन के महीन सुराखों से भीतर घुस जाता है उसमें जमीन से शामिल हुई गंदगी घुलकर हमारे शरीर में प्रवेश कर जाती है. कांग्रेस की वैचारिक पाइपलाइन में भी पिछले कई दशकों से ऐसे अनगिनत सुराख हो चुके हैं, जिन से परिवारवाद और चम्मचवाद की लगातार होती मूसलाधार से घुसी संक्रामक गंदगी ने इस दल को शरीर सहित आत्मा के लिहाज से भी वह बीमारियां दे दी हैं, जिनका कोई इलाज फिलहाल तो नजर नहीं आता. फिर ये पार्टी तो ‘मेरा कातिल ही मेरा मुंसिफ है’ वाली शोचनीय अधोगति को प्राप्त होती जा रही है.
हद है कि आप उस अराजक समूह का समर्थन कर रहे हैं, जो देश के विभिन्न हिस्सों को गृह-युद्ध की आग में धकेलने पर आमादा है. कांग्रेस ‘अग्निपथ’ योजना के उन विरोधियों के हक में भारत बंद का आह्वान कर चुकी है, जो बेशक समूची मानवता के विरोधी कहे जा सकते हैं. इधर-उधर जलाई गयी अरबों रुपए की राष्ट्रीय संपत्ति को देखकर शायद राहुल गांधी का चेहरा भी दैदीप्यमान होकर बोल चुका होगा, ‘देखा! मेरी वाली चिंगारी का असर!’ यह सुनकर चमचे भी झूम उठे होंगे. देश को झुलसा रही हिंसा की इस आग के इर्द-गिर्द वे राहुल भैया की जय बोलते हुए कैम्प फायर का आनंद लेने लग गए होंगे. ऐसा होना अस्वाभाविक भी नहीं है, जो बाबा अफजल गुरूके समर्थकों के पक्ष में धरने पर बैठ सकते हैं, उनके लिए इस समय जारी बवाल तो फिर बहुत छोटी बात है. दिल्ली दंगों (Delhi Riots) के समय जो सोनिया गांधी दंगाइयों के पक्ष में ‘आमने-सामने की लड़ाई’ का आव्हान कर सकती हैं, उनके लाड़ले से भी इसी खतरनाक मानसिकता के विस्तार की आशंका की ही जा सकती है. फिर आशंका तो अब सच भी साबित हो चुकी है.
क्या विपक्ष में होने के नाते आपका यह कर्तव्य नहीं बनता कि इन युवाओं को भड़काने की बजाय समझाएं? उन्हें बताएं कि इस तरह के हिंसक काम से ये युवा खुद के लिए अग्निवीर सहित किसी भी अन्य नौकरी के दरवाजे स्थाई रूप से बंद करने की आत्मघाती राह पर चल चुके हैं? अकेली कांग्रेस ही क्यों, भाजपा-विरोधी तमाम राजनीतिक दल भारत बंद की आड़ में इस हिंसा को मान्यता दे चुके हैं. यदि इन्हें युवाओं के भविष्य की इतनी ही चिंता है तो फिर उन्हें यह क्यों नहीं बताया जा रहा कि रोजगार के हिसाब से 21 साल की उम्र में संभावनाएं खत्म नहीं हो जाती हैं. बल्कि उम्र का यह पड़ाव अक्सर ऐसी नयी दिशाओं के दरवाजे खोलता है. उस पर यदि 21 साल की आयु में कोई सेना के अनुशासन एवं उससे जुड़े प्रशिक्षण का भी धनी हो तो उसके लिए तो फिर रोजगार के और उम्दा अवसर सामने रहेंगे. निजी घराने महिंद्रा (Mahindra) सहित देश के कई राज्य और सरकारी विभाग घोषणा कर चुके हैं कि उनके यहां नियुक्तियों में अग्निवीरों (agniviron) को प्राथमिकता दी जाएगी. तो क्यों नहीं युवाओं के हिमायती बन रहे विपक्षी दल उन्हें इन तथ्यों से अवगत करा रहे हैं? क्यों ऐसे होड़ मची दिख रही है कि राहुल गांधी के कैरोसीन को कौन और कितनी अधिक चिंगारी प्रदान कर सकता है?
यूं भी जो लोग देश को आग में झोंकने की नीयत लिए हुए हों, उन्हें सेना के भीतर तो दूर, उसके इर्द-गिर्द भी फटकने देना नहीं चाहिए. ऐसे लोगों के लिए भविष्य की सुनहरी धूप नहीं, बल्कि काल कोठरी के अंधेरे का ही इंतजाम किया जाना होगा. यह काम तो सरकार का है, लेकिन उससे भी असरकारक तरीके से मतदाता को अब इन विपक्षी दलों को सबक सिखाना होगा, जो अपने राजनीतिक स्वार्थों के लिए एक पूरी पीढ़ी और देश के अमन-चैन को नष्ट करने की दिशा में घातक तरीके से आगे चल पड़े हैं.
अपना उल्लू सीधा होना चाहिए, बाकी देश का चाहे जो भी हो. आम और बेकसूर लोगों को भले ही उसका कोई भी खामियाजा भुगतना पड़ जाए. खासतौर से यह कांग्रेस पर काबिज परिवार की पुश्तैनी परंपरा रही है. प्रधानमंत्री बनने के लिए हजारों निदोर्षों को बंटवारे की आग में झोंक दिया गया. तुष्टिकरण की जहरीली चाशनी को पकाने की खातिर 1947 में कश्मीर का बड़ा भाग पाकिस्तान को सौंप दिया गया. विश्व में शान्ति का मसीहा बनने के स्वांग में सेना में कमी की गयी और इसके नतीजे में बुरी तरह हारे 1962 के युद्ध बाद चीन को अरुणाचल प्रदेश की बेशकीमती जमीन दे दी गयी. किसी ने न्यायपालिका के न्याय से चिढ़ कर देश को आपातकाल की बेड़ियों में जकड़ दिया तो किसी ने हजारों सिखों के नरसंहार को ‘बड़ा पेड़ गिरने’ के गौरव से जोड़कर अपनी हल्की सोच का परिचय दिया.
यही इस ओछेपन और खोटेपन की पुश्तैनी विरासत के कुछ उदाहरण हैं, जिसका जिक्र आरंभ में किया गया था. ‘अग्निपथ’ को लेकर सोनिया और राहुल के नेतृत्व में कांग्रेस देश की युवा पीढ़ी और शांति-सुरक्षा को जिस पथ पर धकेलना चाह रही है, उसे देखते हुए अब कह सकते हैं कांग्रेस नेतृत्व के संकट के साथ दिशा और रणनीति के संकट का भी सामना कर रही है. अग्नाशय मानव शरीर में पाचन को दुरुस्त रखने का सबसे महत्वपूर्ण माध्यम है. इसके एंजाइम पाचन रसों का रिसाव करते हैं. एक स्वस्थ लोकतंत्र के लिए विपक्ष के रूप में कुशल अग्नाशय की बहुत बड़ी जरूरत होती है. दुर्भाग्य से देश में अग्निपथ के समय ये अग्नाशय और उनके एंजाइम उन तमाम जहरीले रसों का रिसाव कर रहे हैं, जो सारे देश के लिए बहुत बड़ी मुसीबत का सबब बन गया है.