माना की पीएम मोदी बहादुर हैं, पर प्रेस से क्यों दूर हैं?

पीएम नरेन्द्र भाई मोदी की जिस तरह की ब्रांडिंग हो रही है, उससे लगता है कि वे बहादुर हैं, पर सवाल यह है कि फिर वे प्रेस से क्यों दूर हैं? प्रेस से बातचीत तो छोडि़ए, वे तो कईं ज्वलंत मुद्दों पर ही चुप्पी साध लेते हैं, और शायद इसीलिए मौन रहने का भाजपाई आरोप झेलने वाले पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने भी कुछ समय पूर्व पीएम मोदी पर व्यंग्यबाण चलाए थे कि... उन्हें बोलने का उपदेश देने वाले मोदी क्यों ज्वलंत मुद्दों पर चुप्पी साधे रहते हैं?
नरेंद्र भाई मोदी प्रेस के साथ एक तरफा संवाद रखते हैं जैसा अपनी पार्टी के नेताओं के साथ रखते हैं, उनके भाषण सुनो, उनके मन की बात सुनो और उनके बयान खुब प्रचारित करो. 
यही वजह है कि भाजपा के सांसद शत्रुघ्र सिन्हा ने कर्नाटक में भाजपा सरकार गिरने के बाद ट्वीट किया था- महोदय, अब एक पूर्ण प्रेस कांफ्रेंस को संबोधित करने का समय आ गया है... असली और वास्तविक नागरिकों के असली और वास्तविक प्रश्रों का उत्तर दें... केवल सरकारी दरबारियों और चमचों के नहीं... जय हिन्द.
यही नहीं, सिन्हा ने यह भी लिखा कि... प्रधान सेवक. मेरा विनम्र अनुरोध है कि पार्टी की अंतरध्वनि को सुने... सम्भवत: आपसे न कोई बोलता है, न आप किसी की सुनते हैं... अभी भी ज्यादा क्षति नहीं हुई है, लेकिन आप कार्यशैली में बदलाव करें... पार्टी में सबों को एक नजर से देखें, जिससे पार्टी में नयी ऊर्जा का संचालन हो... जय बिहार, जय भारत.
पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह जिनका मजाक बनाते हुए, उन्हें- मौन मोहन सिंह प्रचारित किया जाता रहा, भी नियमित रूप से प्रेस से बातचीत करते थे? मनमोहन सिंह ने कभी प्रेस कांफ्रेंस से कतराने की कोशिश नहीं की, यही नहीं विदेश यात्राओं के दौरान हवाई जहाज के अंदर भी वे नियमित रूप से प्रेस के प्रश्रों का उत्तर देते थे, लेकिन... वर्तमान स्थिति प्रेस के लिए अघोषित आपातकाल जैसी है. 
पीएम नरेन्द्र मोदी ने तकरीबन अर्धशतक जितने विदेशी दौरों के दौरान प्रेस को साथ ले जाने की परंपरा भी खत्म कर दी, जाहिर है... प्रेस के समक्ष मौन रहने के मामले में वे देश के किसी भी पूर्व प्रधानमंत्री से बहुत आगे हैं? यही वजह है कि देश में घटित गैंगरेप जैसे गंभीर मामले को लेकर पीएम मोदी की लंबी चुप्पी पर पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कहा था कि... मोदी जो सलाह मुझे देते थे, उस पर खुद अमल करना चाहिए और खुलकर बोलना चाहिए.
दरअसल, पीएम मोदी को शायद यह बात पसंद नहीं है कि कोई उनकी बात काटे या कोई उनसे सवाल करे? वे केवल एक तरफा अपनी बात कहते हैं और बस, इसके आगे कुछ नहीं. शेष, तार्किक सवालों पर कुतर्क करने के लिए समर्थकों की एक डिजिटल सेना है.
उनके मिरर इंटरव्यू जैसे साक्षात्कार भी बड़े दिलचस्प होते हैं, एक सवाल, एक जवाब... न बीच में टोकना और न ही जवाब से पैदा होने वाला कोई पूरक प्रश्र? एकदम किसी फिल्म के शॉट की तरह, साफ-सुधरा, सधी भाषा में.
मजेदार बात यह है कि डिजिटल सेना द्वारा प्रचारित- अज्ञानी राहुल गांधी भी प्रेस से सीधी बात करने से नहीं डरते, यही नहीं... जिन विषयों की उनको जानकारी नहीं है, उसे भी स्वीकारने का साहस रखते हैं.
समझ से परे है कि विश्व के सबसे दबंग और शक्तिशाली भारत के पीएम नरेन्द्र भाई मोदी प्रेस से इतनी दूरी बना कर क्यों रखते हैं? उन्हें किस बात का डर है? या फिर वे प्रेस को अपने स्तर का या उनसे सवाल करने के लायक नहीं मानते?
वैसे, पीएम मोदी के ट्विटर हैंडलों, नमो एप, रेडियो पर एक तरफा- मन की बात आदि के माध्यम से जो जानकारियां मिल रही है, वे क्या कम है? जो प्रेस कांफ्रेंस की जरूरत पड़े.

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