बेरोजगारी पहले भी बड़ा मुद्दा थी, परन्तु नोटबंदी, जीएसटी जैसे निर्णयों ने बेरोजगारों का दर्द और भी बढ़ा दिया है. यही नहीं, नोकरियां तो मिल नहीं रही हैं, जिनके पास नोकरी थीं उनमें से कई अपनी गंवा चुके हैं या वेतन में कटौती का शिकार हो गए हैं.
कांग्रेस लोकसभा चुनाव में रोजगार के मुद्दे पर मोदी सरकार के पांच सालों के कामकाज पर प्रश्नचिन्ह तो लगाएगी ही, अपनी ओर से बेरोजगारी खत्म करने की योजना भी अपने घोषणा पत्र में शामिल करेगी. खबर है कि इसके लिए रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन द्वारा तैयार की गई एक विस्तृत रिपोर्ट को आधार बनाया जाएगा.
उल्लेखनीय है कि राजन पीएम मोदी सरकार की आर्थिक नीतियों के समर्थक नहीं रहे हैं और वे 2016 में की गई नोटबंदी के भी विरोध में थे.
हालांकि, राजन की रिपोर्ट निश्चितरूप से रोजगार के लिए उपयोगी होगी, परन्तु इसके अलावा भी कांग्रेस अध्यक्ष आमजन की राय लेंगे कि बेरोजगारी कैसे खत्म होगी? इसके लिए कई प्रमुख शहरों में रोजगार के लिए सुझाव जैसे कार्यक्रम आयोजित होंगे.
क्योंकि हर साल दो करोड़ रोजगार जैसा वादा जुमला साबित हुआ है, इसलिए भाजपा के सामने भी कोई ठोस योजना देने की बड़ी चुनौती है. पीएम मोदी सरकार बचे हुए समय में बेरोजगारों के लिए कोई प्रायोगिक निर्णय ले पाती है तो ही भाजपा के लिए बेरोजगारों को संतुष्ट कर पाना संभव होगा.
केन्द्र सरकार ने सामान्य वर्ग हेतु दस प्रतिशत आरक्षण का भी एलान किया है, लेकिन बगैर रिक्त पदों के इस आरक्षण का भी कोई विशेष तत्काल लाभ नहीं होगा.
बेरोजगारी बढ़ाने में जहां नोटबंदी का बड़ा हाथ है तो जीएसटी ने भी प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष असर दिखाया है. इन दो बड़े कारणों से रोजगार दाताओं की सोच में बड़ा बदलाव आया है और रोजगार प्रदान करनेवाली योजनाओं के विस्तार पर रोक लगी है.
वर्ष 2018 की बेरोजगारी की बढ़ती दरों को देखें तो कई प्रदेशों में स्थिति बेहद खराब हो गई है. इन प्रदेशों में मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान जैसे राज्य भी प्रमुखता से हैं, जहां भाजपा विधानसभा चुनाव में अपनी सत्ता खो चुकी है.
युवाओं की समस्या केवल वर्तमान बेरोजगारी नहीं है, भविष्य में रोजगार की संभावनाएं नहीं होना बड़ा मुद्दा है. इसके लिए राजस्थान के ब्राह्मण नेता चन्दूलाल उपाध्याय द्वारा सुझाया गया भाई साहब स्वर्गीय लक्ष्मीनारायण द्विवेदी का रोजगार माॅडल उपयोगी हो सकता है जिसके तहत तमाम सरकारी सेवाओं को आठ-आठ घंटे की दो शिफ्ट में कर दिया जाए जिसमें दिन की सरकारी सेवाएं निशुल्क हों और रात की सरकारी सेवाएं सशुल्क हों, ताकि इस सदी की 24 घंटे की जिंदगी में समय की परेशानी नहीं हो. सबसे बड़ा फायदा यह है कि विभिन्न सरकारी भवनों का, उपकरणों का दोहरा उपयोग हो सकेगा, जैसे दिन में सरकारी स्कूल चलेगी तो रात में कोचिंग क्लासेस, उन्नत व्यवसायिक प्रायोगिक प्रशिक्षण, प्रौढ़ शिक्षा केन्द्र जैसी सशुल्क सुविधाएं मिल सकेंगी. ऐसी व्यवस्था से जहां अतिरिक्त कर्मचारियों का समायोजन हो सकेगा वहीं, आवश्यकतानुसार नए पद भी सृजित हो सकेंगे.
यदि कांग्रेस या भाजपा बेरोजगारों को संतोषजनक रोजगार मार्ग नहीं दिखा पाए तो रोजगार का मुद्दा असाध्य सियासी रोग बन जाएगा!