महाराष्ट्र में इस समय जिस तरह से राजनीतिक पार्टियों को तोड़ने मरोड़ने का खेल चल रहा है उसमें खासकर तीन राजनीतिक परिवार गहरे राजनीतिक संकट से जूझ रहे हैं.. इसमें राजनीति के चाणक्य माने जाने वाले शरद पवार का परिवार है तो बाल ठाकरे के पुत्र उद्धव ठाकरे और गोपीनाथ मुंडे के परिवार भी हैं.. इन तीनों परिवार की स्थिति महाभारत के अभिमन्यु की तरह हो गई है जो आज के दौर के सबसे सशक्त राजनीतिक पार्टी भाजपा के चक्रब्यूह में फंसे हुए हैं.. मुंडे का परिवार तो भाजपा में ही है.. बावजूद इसके मुंडे का परिवार अपनी ही पार्टी की अंदरूनी राजनीति का शिकार हो गया है.. भाजपा अपने विरोधियों पर आक्रामक होने के लिए किस तरह की रणनीति पर काम कर रही है उस पर भाजपा नेता और महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने शरद पवार की पार्टी एनसीपी को तोड़कर उनके भतीजे अजित पवार के गुट को सरकार में शामिल करने के बाद स्पष्ट किया कि रावण (विरोधी) को खत्म करने के लिए उसके पास विभीषण (अजित पवार) है.. यह कहना मुश्किल है कि अजित के भाजपा के साथ आने से महाराष्ट्र में पवार को खत्म करना आसान होगा? भाजपा ने एनसीपी से पहले शिवसेना पर प्रयोग किया और वहां उसे एकनाथ शिंदे जैसे विभीषण मिले.. जिस तरह से राम ने लंका पर विजय हासिल करने के बाद विभीषण को रावण का उत्तराधिकारी बना दिया था उसी तरह से भाजपा ने शिंदे को मुख्यमंत्री बना दिया है.. मुख्यमंत्री बनने की लालच में तो अजित भी विभीषण बने हैं लेकिन उनके लिए मुख्यमंत्री पद फिलहाल आसान नहीं दिख रहा है.. किसी भी राज्य के दो उपमुख्यमंत्री हो सकते हैं लेकिन दो मुख्यमंत्री बनाना संभव नहीं है.. फिर भी अजित को लग रहा है कि उनका मुख्यमंत्री बनने का सपना साकार हो सकता है.. यहां भी यह जुमला दोहराया जा सकता है कि मोदी हैं तो मुमकिन है..
अब हम पवार के परिवार के राजनीतिक संकट के बारे में थोड़ा समझने की कोशिश करते हैं.. जब शिंदे के समर्थन से भाजपा को राज्य में सरकार चलाने में कोई संकट नहीं था तो अजित गुट को क्यों शामिल किया? स्थिति तो साफ है कि राज्य में विपक्ष ही नहीं रहेगा.. लेकिन बिना विपक्ष के सरकार चलाने का भी तो मजा नहीं है.. इसलिए भाजपा की जो रणनीति है उसमें विपक्ष को तोड़ने के साथ ही विपक्ष के मुखिया को मोदी के सामने झुकाना सबसे महत्वपूर्ण बात है.. भाजपा को एक बात में तो सफलता मिली है कि अब ज्यादातर राजनीतिक पार्टियां हिंदुत्व की बात करती है.. शिवसेना तो पहले से ही हिंदुत्व की वकालत करती रही है.. लेकिन प्रगतिशील विचारों वाली एनसीपी भी अब हिंदुत्व की बात कर रही है.. बावजूद इसके फिलहाल पवार भाजपा के साथ गठबंधन को तैयार नहीं हैं.. अब अजित के जरिए भाजपा पवार को इस तरह से घेरने की कोशिश कर रही है जिससे वह झुक जाएं.. मगर पवार राजनीति के पुराने खिलाड़ी हैं.. इसलिए 82 बसंत देख चुके पवार खुद को जवान मानते हुए झांसी की रानी की तरह राजनीतिक युद्ध के मैदान में डटे दिख रहे हैं.. पवार के रूख को देखकर राजनीतिक पंडितों की अलग-अलग धारणा है-एक पक्ष का कहना है कि जो मोदी पवार को अपना गुरू मानते हैं उनके आगे पवार कैसे झुक सकते हैं, दूसरे पक्ष का कहना है कि बारामती में पवार अपनी बेटी सुप्रिया सुले की लोकसभा सीट बचाने की जद्दोजहद कर रहे हैं.. लेकिन यह भी बात है कि पवार के मन में क्या है यह समझना मुश्किल है.. इसीलिए शिंदे सरकार में शामिल होने के बाद भी उनके भतीजे अजित अपने चाचा को मना रहे हैं कि वह भी उनके साथ भाजपा में आ जाएं.. इस पर अजित को पवार का दो टूट जवाब मिल चुका है.. इसे भी कुछ लोग पवार का गेम मान रहे हैं.. भविष्य की ओर इशारा करते हुए यह चर्चा हो रही है कि सुप्रिया को केंद्र में मंत्री पद और अगले राष्ट्पति पद पवार को दिए जा सकते हैं.. अगर इस प्रलोभन पर पवार झुकते हैं तो इसमें कोई दो राय नहीं कि महाराष्ट्र के राजनीतिक इतिहास में पवार का अस्तित्व खत्म हो जाएगा.. और एक समझदार राजनेता इस तरह से आत्महत्या करना नहीं चाहेगा.. पवार के राजनीतिक जीवन का अपना इतिहास है.. कहा जाता है कि जिस तरह से शिवाजी महाराज का राज्याभिषेक रायगढ़ किले में हुआ था उसी तरह बारामती में पवार का राजनीतिक जन्म हुआ था.. शिवाजी ने मराठवाड़ा के 360 किले को जीता था और पवार का भी इस मराठवाड़ा पर पकड़ है.. अजित के पास संगठन कौशल है लेकिन बारामती के बाहर उनका जनाधार नहीं है.. पवार मराठों, दलितों, ओबोसी और मुसलमानों में काफी लोकप्रिय हैं.. आज भी राज्य की राजनीति में निर्णायक शक्ति रखने वाले पवार जैसा दूसरा नेता नहीं है.. तभी तो फडणवीस जब मुख्यमंत्री थे तो मराठा आंदोलन ने राज्य की भाजपा सरकार की नींद हराम कर दी थी.. राज्य की राजनीति में शिवाजी के रण कौशल को भी अहम दर्जा मिला हुआ है.. उस पर एक नजर इस तरह से डालते हैं.. तोरणा किले को शिवाजी ने सबसे पहले जीता था जो पुणे जिले में है.. इसी तरह पवार ने भी अपने राजनीतिक जीवन का पहला किला नासिक में जीता था जहां से उनको सबसे ज्यादा सीटें मिली थी और आज भी उनके साथ है.. यह दीगर बात है कि इस समय नासिक के सभी छह विधायक अजित खेमे में गए हैं.. लेकिन पवार का युवा मन अगले चुनाव में इन सीटों को फिर से हासिल करने का हौसला रखता है.. इसलिए अजित के बगावत के बाद पवार ने सबसे पहले यहां रैली की और बागी छगन भुजबल के खिलाफ आवाज उठाई.. उन्होंने नासिक के लोगों से माफी मांगते हुए कहा कि उनसे भुजबल जैसे लोगों को पहचानने में गलती हुई है.. अब दोबारा ऐसी गलती नहीं होगी..
भाजपा ने अपनी तोड़ फोड़ की नीति में पवार की नीति को अपनाया है.. पवार ने कांग्रेस से बगावत करके अपने 40 समर्थक विधायकों के साथ अलग हुए थे और राज्य में सरकार बनाई थी.. यह सरकार लंबे समय तक नहीं चली थी.. अब भाजपा ने भी शिवसेना को तोड़ने के लिए 40 विधायकों को शिंदे के साथ बाहर कराया.. उसी तर्ज पर अजित ने भी एनसीपी से 40 विधायकों को अपने पाले में लाने का काम किया है.. यह माना जाए कि बागियों के लिए 40 का नंबर लकी होता है.. भाजपा ने उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली महा विकास आघाड़ी सरकार को गिराने के लिए शिवसेना के 40 विधायकों को अपने पाले में लाया.. शिंदे मुख्यमंत्री बनाए गए.. शिवसेना को तोड़ने के पीछे भी भाजपा की वही रणनीति है-उद्धव को झुकाना.. भाजपा और शिवसेना दोनों का एक-दूसरे पर आरोप है कि मुख्यमंत्री पद को लेकर किए गए समझौते का पालन नहीं किया गया.. लेकिन इसके साथ ही भाजपा और शिंदे गुट की तरफ से उद्धव पर दबाव बनाया जाता रहा है कि वह मोदी की शरण में चले आएं.. हिंदुत्व के नाम पर फिर से भाजपा के साथ सत्ता में शामिल हो जाएं.. लेकिन भाजपा और शिवसेना के बीच खटास इतनी ज्यादा बढ़ गई है कि उद्धव के लिए झुकना मुश्किल है.. सुप्रिया की तरह ही वरली विधानसभा सीट पर आदित्य ठाकरे को भी चुनाव में शिकस्त देने की तैयारी भाजपा ने की है.. इसमें भाजपा को विभीषण शिंदे की मदद मिल रही है.. आदित्य बाल ठाकरे परिवार के पहले सदस्य हैं जिन्होंने सक्रिय राजनीति में प्रवेश किया और विधानसभा का चुनाव जीता.. अदित्य ने एनसीपी के डॉ. सुरेश माने को हराया था.. अब भाजपा का यह प्रयास है कि आदित्य के हारने से उद्धव के नेतृत्व वाली शिवसेना में यह संदेश जाएगा कि उद्धव की शिवसेना को शिवसैनिकों ने नकार दिया है और शिंदे की शिवसेना को शिवसैनिकों ने स्वीकार कर लिया है.. लेकिन आदित्य को हराना भी आसान नहीं होगा.. आदित्य को अपने शिवसैनिकों पर भरोसा है जो बाल ठाकरे को भगवान की तरह मानते हैं.. अब हम बात करते हैं कि गोपीनाथ मुंडे परिवार की जो भाजपा के साथ ही है.. लेकिन भाजपा में वे सब हाशिए पर हैं.. मुंडे की मौत के बाद उनकी बेटी पंकजा मुंडे और प्रीतम मुंडे को पिता वाली ही सीटें मिली.. पंकजा ने परली से विधानसभा और बीड से लोकसभा की सीट पर प्रीतम ने जीत हासिल की.. पंकजा को फडणवीस सरकार में मंत्री पद भी मिला.. लेकिन पिछले चुनाव में पंकजा को अपने चचेरे भाई धनंजय मुंडे से हार मिली जो एनसीपी में हैं और अभी अजित के साथ शिंदे सरकार में मंत्री भी बन गए हैं.. धनंजय के सरकार में शामिल होने से पंकजा के लिए अगले चुनाव परली से लड़ना मुमकिन नहीं है.. पंकजा को भाजपा केंद्रीय राजनीति का हिस्सा बनाया है.. पंकजा ओबीसी की बड़ी नेता हैं.. लेकिन धनंजय और भुजबल के शिंदे सरकार में शामिल होने से पंकजा की जरूरत लगभग खत्म हो गई है.. उनकी बहन प्रीतम को भी टिकट नहीं देने का पार्टी ने लगभग फैसला कर लिया है.. क्योंकि, भाजपा मोदी के लिए लोकसभा की एक सीट गंवाना नहीं चाहती है..