महाराष्ट्र भाजपा को अर्जुन और एकलव्य की तलाश

महाराष्ट्र में काफी अजीबो-गरीब तरीके से सियासी खेल चल रहा है.यह खेल सिर्फ सत्ता के लिए है.इसके लिए रस्सी खेंच खेल को प्रमुखता दिया गया है.इसमें भाजपा को अच्छी सफलता मिल रही है.उसने पहले शिवसेना को तोड़ा और उसके बागी एकनाथ शिंदे सहित 50 विधायकों के दम पर अपनी सरकार बना ली.इसके बाद राजनीति के चाणक्य शरद पवार की पार्टी एनसीपी को तोड़कर बागी अजित पवार के साथ भी 40 विधायकों को शिंदे के नेतृत्व वाली सरकार में शामिल कर लिया गया.लेकिन भाजपा को यह खेल थोड़ा भारी पड़ रहा है.उसे शिंदे गुट और अजित गुट को संभालना मुश्किल हो रहा है.शिंदे की तरह ही अजित को भी मुख्यमंत्री पद के लिए मुंगेरीलाल के हसीन सपने दिखाया गया है.पहले शिंदे आए तो उन्हें यह पद मिल गया.अब अजित के लिए यह पद पाना कठिन हो रहा है.विपक्ष और अजित गुट के विधायक कह रहे हैं कि शिंदे जाएंगे और अजित मुख्यमंत्री होंगे.इस बात को दम तब मिला जब शिंदे ने मुख्यमंत्री होते हुए भी एक आम कार्यकर्ता की तरह रायगड जिले के इरशालवाड़ी में भूस्खलन के बाद वहां राहत और बचाव का कार्य किया.फिर वह दूसरे दिन अपने पूरे परिवार के साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिलने दिल्ली चले गए.मोदी के बाद वे सपरिवार भाजपा नेता अमित शाह से भी मिले.दिल्ली से लौटने के बाद शिंदे की कुर्सी फिर डगमगाने लगी.क्योंकि, अजित गुट और कांग्रेस ने दावा करना शुरू कर दिया कि 10-11 अगस्त के बाद राज्य में बतौर मुख्यमंत्री अजित पवार की ताजपोशी होगी.इस राजनीतिक हलचल पर रोक लगाने के लिए भाजपा नेता देवेंद्र फडणवीस ने भी दावा किया कि शिंदे ही महायुती के मुख्यमंत्री हैं और वही मुख्यमंत्री रहेंगे.महायुती में शामिल होने से पहले यह बात अजित पवार के संज्ञान में है।

फडणवीस के दावे में ज्यादा दम इसलिए नहीं है कि जब अजित ने महायुती में आने के लिए अपने चाचा शरद पवार से बगावत की तो उन्होंने साफ कर दिया था कि वह मुख्यमंत्री बनना चाहते हैं.उपमुख्यमंत्री तो वह कई बार बन चुके हैं और पिछली सरकार में वह वित्त मंत्री भी रह चुके हैं.इसलिए वह मुंगेरीलाल के हसीन सपने को ही पूरा करने के लिए महायुती में शामिल हुए हैं.अजित के वजन को देखते हुए शिंदे गुट के विरोध के बावजूद उन्हें उपमुख्यमंत्री के साथ वित्त मंत्रालय भी दिया गया.उनके समर्थक मंत्रियों को भी मलाईदार मंत्रालय दिए गए.इससे शिंदे गुट पतला हुआ है.शिंदे सहित उनके 16 विधायकों पर अपात्रता की तलवार लटकी पड़ी है.विधानसभा में भाजपा के ही अध्यक्ष हैं जिससे दोनों तरह के संकेत दिए जा रहे हैं कि इन 16 विधायकों को अपात्र ठहराया भी जा सकता है और नहीं भी.अपात्र होने की स्थिति में अजित के मुख्यमंत्री बनने का सपना पूरा हो सकता है.लेकिन यह इतना भी आसान नहीं है.क्योंकि, भाजपा का केंद्रीय नेतृत्व महाराष्ट्र में अर्जुन और एकलव्य दोनों तलाश रहा है.मुख्यमंत्री के दावेदारों में शिंदे, अजित और फडणवीस तीनों शामिल हैं.इनमें से ही कोई अर्जुन बनेगा तो कोई एकलव्य और अर्जुन को ही मुख्यमंत्री की कुर्सी मिल सकती है.फिलहाल तो शिंदे और अजित के सहारे भाजपा अपना फायदा अगले लोकसभा, विधानसभा और मुंबई महापालिका के चुनावों में देख रही है.इन चुनावों में जीत के लिए जो कमजोर जमीन है उसे मजबूत करने की जिम्मेदारी शिंदे और अजित को दी जा चुकी है.मुख्यमंत्री की कुर्सी पर शिंदे के विराजमान होने के बावजूद अजित को भी आश्वासन मिला हुआ है.तभी तो अजित के समर्थक बतौर मुख्यमंत्री उनका पोस्टर और बैनर लगा रहे हैं और अजित उन्हें ऐसा करने से मना नहीं कर पा रहे हैं.मुख्यमंत्री पद पर लक्ष्य साधते हुए शिंदे ने हिंदुत्व के नाम पर उद्धव ठाकरे से रिश्ता तोड़कर भाजपा का दामन थामा.अजित ने भी अपने चाचा शरद पवार को जोर का झटका दिया है.भाजपा ने एक झटका अपने होनहार नेता देवेंद्र फडणवीस को भी दिया है.फिर से मुख्यमंत्री का सपना देखने वाले फडणवीस के आगे से खाने की थाली हटा दी गई और उन्हें शिंदे के नेतृत्व में उपमुख्यमंत्री बनने के लिए मजबूर कर दिया गया.यह दर्द उन्हें जिंदगीभर कचोटता रहेगा.गाहे-बगाहे वह अपना यह दर्द बयां करते हुए कहते हैं कि उन्होंने शिंदे को मुख्यमंत्री बनाया है.उपमुख्यमंत्री बनने के लिए उन पर केंद्रीय नेताओं का दबाव था.इससे वह महूसस करते हैं कि राज्य की जनता के बीच उनकी छवि सत्ता के लालची का बन गया है.इस दर्द को कम करने के लिए वह शिंदे के पक्ष में खड़े हो जाते हैं।

शिंदे, अजित और फडणवीस तीनों का लक्ष्य भले ही मुख्यमंत्री की कुर्सी हो लेकिन भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व का लक्ष्य तो लोकसभा, विधानसभा के साथ मुंबई महापालिका है.इन तीनों के लिए टास्क है लोकसभा की 45 सीटें, 200 से ज्यादा विधानसभा की सीटें और मुंबई महापालिका की सत्ता हासिल करना.भाजपा के लिए फिलहाल शिंदे, अजित और फडणवीस तीनों अर्जुन हैं.लेकिन भाजपा ने अर्जुन से ज्यादा एकलव्य की तलाश शुरू कर दी है.उसे जब तक एकलव्य नहीं मिलेगा तब तक वह अपने अर्जुन को मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बिठा नहीं पाएगी.शिंदे, अजित और फडणवीस में से दो को एकलव्य बनना होगा.इसके लिए भाजपा का केंद्रीय नेतृत्व तीनों की परीक्षा ले रहा है.यह परीक्षा लोकसभा चुनाव तक या फिर विधानसभा चुनाव तक भी चल सकती है.इस दौरान अफवाहों का भी दौर चल रहा है.कहा जा रहा है कि अगर भाजपा आगामी चुनावों में अपने दम पर सत्ता हासिल करने की संख्या हासिल कर लेती है तो उसके लिए शिंदे गुट और अजित गुट का सहयोग ज्यादा मायने नहीं रखेगा.इसलिए अभी से शिंदे गुट और अजित गुट को उनकी ताकत का एहसास कराया जा रहा है.शिंदे गुट ठाणे तक तो अजित गुट मराठवाड़ा तक सीमित है.दूसरी ओर इन दोनों गुटों के विधायक केंद्रीय एजंसियों के रडार पर हैं.इसलिए ये भाजपा में रहकर विद्रोही नहीं हो सकते हैं.शिंदे और अजित दोनों ही दिल्ली दरबार में हाजिरी लगा रहे हैं.वहां से मिले निर्देशों को प्रदेश में आकर अमल भी करते हैं.संख्या बल में शिंदे जितना मजबूत हैं उतना अजित नहीं हैं.अजित पर दबाव है कि किसी भी तरह से शरद पवार को ही भाजपा में लाया जाए.इसमें अजित को सफलता मिलती है तो शिंदे काफी कमजोर पड़ सकते हैं.शिंदे गुट के लिए अब यह स्थिति नहीं है कि वो उद्धव गुट में चले जाएं.वैसे, आज की राजनीति में कुछ भी संभव है.अब देखिए, अजित के सरकार में शामिल होने से पहले से ही शिंदे गुट के फडणवीस से रिश्ते में थोड़ी खटास आ गई.सर्वे रिपोर्ट के जरिए शिंदे और फडणवीस एक-दूसरे से ज्यादा लोकप्रिय बताने की कोशिश की.राजनीतिक पंडितों को इसमें राज्य और केंद्रीय नेताओं के बीच अंतर्द्वंद की भी झलक दिखती है.अगर शिंदे सहित 16 विधायक अपात्र घोषित हो जाते हैं तो शिंदे को मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ेगा.इस पर शिंदे गुट का दावा है कि शिंदे को विधान परिषद की सदस्यता दिलाकर फिर से मुख्यमंत्री बना दिया जाएगा.लेकिन अजित गुट इससे उदास नहीं है.इस गुट को अजित के सपने को पूरा होने की संभावना दिख रही है.एनडीए की बैठक के बाद अजित की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह से बातचीत हुई थी.और जब वह मुंबई लौटे तो उनमें काफी तब्दीली थी.उनके पास वित्त मंत्रालय भी है तो उन्होंने लोकसभा चुनाव से पहले विधायकों के लिए तिजोरी खोल दी.मतदाता क्षेत्रों के विकास के लिए पूरक मांगों में 1500 करोड़ रूपये का प्रावधान करके विधायकों को पेट भर भरके फंड बांट दिए.इससे अजित विवादों में घिर गए हैं.विपक्ष के अलावा शिंदे गुट के भी कुछ विधायक फंड न मिलने और कम फंड मिलने से नाराज हैं.इस मामले में फडणवीस अजित के पक्ष में खड़े हुए और विपक्ष को चुप करते हुए कहा कि महा विकास आघाड़ी सरकार ने भी भाजपा के विधायकों को फंड नहीं दिया था.हालांकि, उस समय भी अजित ही वित्त मंत्री थे.इस बार अजित ने शरद पवार गुट के विधायकों को अपने पाले में लाने के मकसद से उन्हें भी ज्यादा फंड दिया है.शिंदे गुट को शांत करने के लिए मुंह मांगा फंड दिया.इससे भाजपा को राहत मिली है कि कैबिनेट विस्तार देर से भी किया जा सकता है.

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