प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जातीय जनगणना को लेकर अपने विचार सार्वजनिक रूप से स्पष्ट कर चुके हैं.. उन्होंने मध्य प्रदेश के ग्वालियर की एक जन सभा में अपनी भावना व्यक्त करते हुए कहा था कि विकास विरोधी लोग पहले भी जात-पात के नाम पर लोगों को बांटते थे और आज भी यही पाप कर रहे हैं.. उनका हमला सीधे तौर पर विपक्ष पर था.. कांग्रेस सहित अन्य विपक्षी दल जातीय जनगणना की न सिर्फ मांग कर रहे हैं बल्कि जातीय जनगणना कराने के लिए केंद्र सरकार पर दबाव भी बना रहे हैं.. लेकिन जातीय जनगणना को लेकर महाराष्ट्र में एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली भाजपानीत सरकार में शामिल एनसीपी (अजित पवार गुट) के सुर विपक्षी दलों से ही मिल रहे हैं.. एनसीपी (अजित पवार गुट) के मुखिया अजित पवार जो शिंदे सरकार में उपमुख्यमंत्री भी हैं ने मोदी के विचारों से हटकर बिहार की तर्ज पर महाराष्ट्र में भी जातीय जनगणना की न सिर्फ मांग की है बल्कि खुलकर कहा है कि महाराष्ट्र में भी जातीय जनगणना होनी ही चाहिए.. उनके साथ ही एनसीपी के ओबीसी नेता और शिंदे सरकार में कैबिनेट मंत्री छगन भुजबल ने तो मुख्यमंत्री शिंदे के साथ भाजपा नेता और उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस को महाराष्ट्र में जातीय जनगणना कराने को लेकर पत्र भी लिखा है.. इससे शिंदे सरकार और भाजपा का केंद्रीय नेतृत्व पशोपेश में है.. विपक्ष के साथ अपने ही सरकार के सहयोगी दलों की मांग से फडणवीस की परेशानी भी बढ़ी हुई है.. इसलिए उन्होंने जातीय जनगणना की मांग का बॉल यह कहते हुए मुख्यमंत्री शिंदे की तरफ उछाल दिया कि इस बारे में मुख्यमंत्री शिंदे उचित समय पर फैसला लेंगे.. शिंदे के लिए भी इस पर फैसला लेना आसान नहीं है.. क्योंकि, वह भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व के खिलाफ जा नहीं सकते और उनकी नीयत ऐसे मुद्दों को आगामी चुनावों तक टालने की है.. इसलिए वह इस पर कुछ भी बोलने से बच रहे हैं.. अजित पवार ने कुछ दिन पहले ही भाजपा की परेशानी यह मांग करते हुए भी बढ़ाई थी कि महाराष्ट्र में मुस्लिमों को शिक्षा और सरकारी नौकरी में पांच फीसदी आरक्षण मिलना चाहिए.. इस आरक्षण के विरोध में केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह और राज्य के उपमुख्यमंत्री फडणवीस अपनी पार्टी भाजपा का पक्ष स्पष्ट रूप से रखते हुए कहा था कि मुस्लिमों को धर्म के आधार पर आरक्षण नहीं दिया जा सकता है.. यह असंवैधानिक है..
अजित पवार और उनकी पार्टी एनसीपी ने जिस तरह से मुस्लिम आरक्षण और जातीय जनगणना का मुद्दा उठाया है इस पर सवाल भी खड़े हो रहे हैं.. क्या यह अजित पवार की सोची-समझी राजनीतिक रणनीति है या वह राजनीतिक फायदे के लिए इस तरह से भाजपा पर अपने दवाब तंत्र का इस्तेमाल कर रहे हैं ताकि ईडी का भय कम हो.. अजित पवार का अपने गुट के साथ भाजपा सरकार में शामिल होने से पहले मोदी ने सार्वजनिक रूप से एनसीपी को भ्रष्ट और घोटालेबाज पार्टी बताया था.. मोदी ने एनसीपी पर 70 हजार करोड़ रूपये के घोटाले का आरोप लगाया था.. अब जब मूल एनसीपी के मुखिया शरद पवार इस घोटाले की जांच कराने की मांग कर रहे हैं तो इस पर मोदी खुद भी खामोश हैं.. दरअसल कांग्रेस-एनसीपी सरकार के कार्यकाल के दौरान महाराष्ट्र के सिंचाई विभाग में यह घोटाले हुए थे और तब सिंचाई मंत्री अजित पवार थे.. अब सवाल यह है कि शिंदे सरकार इस घोटाले की जांच कैसे करा सकती है.. इसके अलावा भुजबल भी महाराष्ट्र सदन के कथित घोटाले में जेल जा चुके हैं.. भुजबल के साथ एनसीपी कोटे से दूसरे मंत्री भी कथित घोटाले में फंसे हुए हैं.. इधर फडणवीस ने यह स्पष्ट किया है कि शिवसेना से पुरानी दोस्ती के नाते शिंदे गुट के नेतृत्व में महाराष्ट्र में सरकार का गठन किया गया.. लेकिन राजनीतिक समझौता करते हुए अजित पवार गुट के एनसीपी को सरकार में शामिल किया गया है.. यह राजनीतिक समझौता सीधे तौर पर मोदी को फिर से प्रधानमंत्री बनाने के लिए महाराष्ट्र की 48 लोकसभा सीटों में से ज्यादा से ज्यादा सीटें जीतनी है और यह शिवसेना के साथ एनसीपी के टूटे हुए धड़े के साथ ही संभव है.. क्योंकि, भाजपा को खुद पर भरोसा नहीं है.. ऐसे में अजित पवार को भी अपनी पार्टी एनसीपी की अहमियत पता है.. इसलिए माना जा रहा है कि अपना वोट बैंक तैयार करने के लिए अजित पवार अपनी राजनीतिक रणनीति पर काम कर रहे हैं.. वह मराठा के साथ मुस्लिम और ओबीसी के वोट को हासिल करने के लिए मुस्लिम आरक्षण और जातीय जनगणना के मुद्दे को उठा रहे हैं.. लेकिन इससे बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की अहमियत भी बढ़ रही है.. मोदी भले ही बिहार की जातीय जनगणना को स्वीकार न करें लेकिन अजित पवार ने बिहार की जातीय जनगणना को सही ठहराया है और इसका श्रेय नीतीश कुमार को दिया है.. जातीय आधार पर सामाजिक संरचना का चित्र स्पष्ट होना जरूरी है..
महाराष्ट्र में मराठा आरक्षण की आग लगी हुई है.. मराठा आरक्षण के खिलाफ कोई पार्टी खड़ी नहीं है.. हर पार्टी की मांग है कि ओबीसी आरक्षण से समझौता किए बिना मराठों को आरक्षण दिया जाना चाहिए.. लेकिन आरक्षण के लिए मराठा यह मांग कर रहे हैं कि उन्हें कुनबी जाति का प्रमाण दिया जाए जिससे उन्हें आरक्षण का लाभ मिलेगा.. कुनबी को ओबीसी का आरक्षण मिलता है.. इस वजह से ओबीसी के नेता मराठा को कुनबी प्रमाण पत्र देने का विरोध कर रहे हैं.. उनका मानना है कि इससे ओबीसी आरक्षण में छेड़छाड़ होगा.. यह शिंदे सरकार के लिए परेशानी का कारण है.. शिंदे सरकार मराठा को खुश भी करना चाहती है ताकि आने वाले लोकसभा चुनाव में भाजपा गठबंधन को फायदा हो.. महाराष्ट्र की आबादी में लगभग 32 फीसदी मराठा हैं और सत्ता में इनकी भागीदारी सबसे ज्यादा है.. बावजूद इसके मराठा को आरक्षण नहीं मिल रहा है.. राज्य में अब तक सबसे ज्यादा मुख्यमंत्री मराठा ही हुए हैं और इस समय मुख्यमंत्री शिंदे के साथ उपमुख्यमंत्री अजित पवार भी मराठा हैं.. लेकिन सिर्फ मराठा के दम पर मोदी के लिए लोकसभा की ज्यादा से ज्यादा सीटें जीतना संभव नहीं है.. यह सच्चाई है.. ओबीसी और दूसरी जातियों को नाराज नहीं किया जा सकता है.. इसलिए जातियों के मूड को भी परखा जा रहा है.. इस समय जब मराठा आंदोलन कर रहे हैं तब एक सर्वे ने जाहिर किया है कि अगले चुनाव में ज्यादातर मराठा भाजपा के पक्ष में हो सकते हैं.. लेकिन दूसरे नंबर पर मराठा की पसंद कांग्रेस है.. ओबीसी मतदाताओं का रूझान भी कुछ इसी तरह है.. दलित और एसटी कांग्रेस के साथ हैं.. इस रूझान में चुनाव आने तक काफी बदलाव हो सकते हैं.. महाराष्ट्र में इस समय कुल 52 फीसदी आरक्षण में से एससी और एसटी को क्रमश: 13 और 7 फीसदी, ओबीसी को 19 फीसदी, विमुक्त जाति और घुमंतू जनजातियों, विशेष पिछड़ा वर्ग और खानाबदोश जनजातियों को 13 फीसदी आरक्षण मिलता है.. महाराष्ट्र में एसटी में 47 से अधिक जातियां और उपजातियां हैं.. एसी में 59 से अधिक जातियां और उपजातियां हैं.. ओबीसी में भी 261 से अधिक जातियां और उपजातियां हैं.. लेकिन ओबीसी में जातियों और उपजातियों की संख्या बढ़ रही है और अब यह 346 हो गई है.. इसलिए सही आंकड़े जानने के लिए बिहार के तर्ज पर जातीय जनगणना कराने की मांग जोर पकड़ रही है.. सभी राजनीतिक पार्टियों का अनुमान है कि अगर महाराष्ट्र में जातीय जनगणना कराई गई तो राज्य की राजनीति को अलग दिशा मिल सकती है.. इसका असर आने वाले चुनावों पर दिख सकता है..