महाराष्ट्र के हरेक राजनीतिक दल अपनी अपनी तरह से चुनावी तैयारी में जुटा हुआ है। इनको ऐसा लग रहा है कि लोकसभा और विधानसभा के चुनाव कभी भी हो सकते हैं। इसलिए ये अपनी रणनीति के तहत पहले से तैयारी कर रहे हैं ताकि इनके लिए अपने विरोधियों को हराना आसान हो। बावजूद इसके हरेक दल की चिंता भी बढ़ी हुई है। अन्य दलों के मुकाबले भाजपा थोड़ी ज्यादा ही चिंतित है। अब सवाल यह है कि भाजपा की चिंता क्या है? उसकी चिंता की वजह उनके सांसद और विधायक हैं जिनकी रिपोर्ट कार्ड खराब हैं। अगर चुनाव से पहले इनकी रिपोर्ट कार्ड दुरुस्त नहीं हुई तो महाराष्ट्र में भाजपा के लिए खासकर लोकसभा चुनाव के लक्ष्य को पाना मुश्किल हो सकता है। उत्तर प्रदेश के बाद महाराष्ट्र ही बड़ा राज्य है जहां 48 लोकसभा की सीटें हैं और इन सीटों पर भाजपा के कमजोर होने से सबसे ज्यादा नुकसान प्रधानमंत्री नरेद्र मोदी को होगा। उनके लिए ही भाजपा ने महाराष्ट्र में 48 में से 45 लोकसभा सीटों पर जीत का लक्ष्य रखा है। इसके लिए भाजपा पूरी मशक्कत कर रही है। भाजपा ने अपनी जीत के इस लक्ष्य को पाने के लिए आंतरिक सर्वे कराया है। इस आंतरिक सर्वे से भाजपा को लक्ष्य पाने का खतरा बढ़ा हुआ दिख रहा है। इसलिए भाजपा ने उन सांसदों को एक बंद लिफाफा दिया है जिनकी रिपोर्ट कार्ड खराब है। इस लिफाफे के साथ इन सांसदों को संकेत भी दिया गया है कि अगले लोकसभा चुनाव में उनके पत्ते कट सकते हैं। भाजपा का यह कठोर निर्णय इसलिए है कि किसी भी सूरत में चुनाव में कमजोर नहीं पड़ना है।
इससे पहले भी सर्वे की जो रिपोर्ट आई है उससे भाजपा खुश नहीं है। हिंदुत्व के नाम पर भाजपा के पक्ष में सकारात्मक माहौल तो दिख रहा है। लेकिन हकीकत कुछ और ही है। इसलिए भाजपा ने आंतरिक सर्वे का सहारा लिया। सर्वे के बाद भाजपा ने क्षेत्रवार सांसदों और विधायकों के साथ बैठक की। इस बैठक में भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष चंद्रशेखर बावनकुले, राष्ट्रीय सह संगठन मंत्री शिव प्रकाश और राज्य के उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने सांसदों और विधायकों की क्लास ली। इस समय राज्य में भाजपा के 23 सांसद हैं। इनमें से 7 सांसदों की रिपोर्ट बहुत ही खराब है। इन सांसदों के कामकाज से क्षेत्रीय मतदाता और सरकारी अधिकारी भी नाराज हैं। इधर विधायकों की बात की जाए तो भाजपा के 105 विधायक हैं और इनमें से 30 विधायकों से मतदाता नाखुश हैं। खराब रिपोर्ट वाले सांसदों और विधायकों के टिकट कटने की संभावना ज्यादा है। इससे राज्य में चुनाव के समय पाला बदलने की हरकत तेज हो सकती है और इसका फायदा विपक्ष को मिल सकता है। इसलिए भाजपा बहुत सावधानी बरत रही है ताकि जिनको टिकट न मिले वो बागी बनकर विपक्ष का हाथ मजबूत न कर सकें। इसलिए भाजपा ने चुनाव से पहले सांसदों और विधायकों को अपनी रिपोर्ट कार्ड सुधारने का मौका दिया है। अगर इसमें सफल नहीं हो पाए तो फिर पार्टी का फैसला सांसदों और विधायकों को पता है।
भाजपा के पास जादुई चेहरा मोदी हैं। लेकिन भाजपा के सांसद और विधायक अगर अपने कामों से मतदाताओं को नाराज करके रखेंगे तो उसका नुकसान तो मोदी को ही उठाना पड़ेगा। इसलिए महाराष्ट्र में भाजपा अपनी जमीन मजबूत करने में लगी हुई है। महाराष्ट्र में विपक्ष इंडिया महागठबंधन बनाकर सक्रिय है और भाजपा के खिलाफ माहौल बना रहा है। हालांकि, भाजपा ने उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली शिवसेना और शरद पवार के नेतृत्व वाली एनसीपी को तोड़ने में कामयाब हुई है। एकनाथ शिंदे के नेतृत्व में शिवसेना के सांसद और विधायक के अलावा अजित पवार के नेतृत्व में एनसीपी के सांसद और विधायक भाजपा के साथ सत्ता में शामिल हो गए हैं। बावजूद इसके भाजपा की स्थिति महाराष्ट्र में बहुत अच्छी नहीं है। कुछ सर्वे रिपोर्ट ने स्पष्ट कर दिया है कि शिंदे और पवार के पक्ष में मतदाता बहुत ज्यादा सकारात्मक नहीं हैं। इसलिए भाजपा ने अपनी जमीन मजबूत करने के लिए काम करना शुरू कर दिया है। इस समय राज्य में भाजपा सबसे बड़ी पार्टी है और भाजपा चाहती है कि अगले लोकसभा और विधानसभा के चुनावों में भी वह ज्यादा से ज्यादा सीटें हासिल करके अपने लक्ष्य को पा ले। लोकसभा चुनाव में मोदी के लिए ज्यादा सीटें जीतना है और विधानसभा चुनाव में ज्यादा सीटें जीतकर राज्य में अपने दम पर सरकार बना सके, यह भाजपा के लक्ष्य हैं। शिवसेना और एनसीपी के टूटने से उद्धव ठाकरे और शरद पवार को आम जनता की सहानुभूति मिल सकती है। इसलिए शिंदे और पवार भाजपा के लिए बहुत ज्यादा फायदेमंद नहीं दिख रहे हैं। लेकिन शिंदे और अजित पवार भी अपनी जमीन मजबूत करने के लिए पूरी ताकत के साथ जुटे हुए हैं। मुख्यमंत्री के रूप में शिंदे किसानों सहित जनकल्याण की कई परियोजनाओं को लागू कर रहे हैं और अभी मराठवाड़ा को सूखामुक्त करने के लिए 46 हजार करोड़ रूपए के पैकेज की घोषणा की है। शिंदे को भरोसा है कि अगले चुनावों में इस पैकेज का फायदा भाजपा, शिवसेना और एनसीपी गठबंधन को मिलेगा।
सत्ता पक्ष और विपक्ष को आभास है कि 2024 के चुनाव को हल्के में नहीं लिया जा सकता है। इसमें थोड़ी भी चूक हुई तो सत्ता से दूर होने का खतरा ज्यादा है। भाजपा मोदी के नौ साल के विकास कार्यों को लेकर आम जनता के पास पहुंच रही है। भाजपा के लिए यह विजय मंत्र है-मोदी है तो मुमकिन है। यह विजय मंत्र 2024 के चुनावों में कितना कारगर साबित होगा यह तो चुनाव के नतीजे आने के बाद ही पता चलेगा। लेकिन उससे पहले सत्ता पक्ष और विपक्ष आम जनता के मन को टटोल रहे हैं। आम जनता भी होशियार है और वह हरेक सर्वे में अपनी अलग-अलग राय जाहिर कर रही है जिससे राजनीतिक दलों की धड़कनें बढ़ी हुई हैं। विपक्ष को तो अपना अस्तित्व भी बचाना है। खासकर जब महाराष्ट्र में शिवसेना और एनसीपी में बड़े पैमाने पर टूट हो चुकी है। बावजूद इसके ठाकरे अपनी शिवसेना को तो शरद पवार अपनी एनसीपी को पहले की तरह ही मजबूत करने के लिए मैदान में डटे हुए हैं। दूसरी ओर भाजपा के साथ सत्ता में होने के बावजूद शिंदे अपनी शिवसेना और अजित पवार अपनी एनसीपी को मजबूत करने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। शिंदे और अजित पवार मोदी का गुणगान कर रहे हैं। वे बड़े आत्मविश्वास के साथ कह रहे हैं कि मोदी के सामने विपक्ष कुछ भी नहीं है। वैसे, भाजपा कांग्रेस पर लगातार निशाना साध रही है और उसे कमजोर करने की भी कोशिश कर रही है। भाजपा का मानना है कि कांग्रेस कमजोर तो विपक्ष भी कमजोर। लेकिन इसके जवाब में विपक्ष एकजुट होने का प्रयास कर रहा है। अगर विपक्ष की एकजुटता कायम रही तो भाजपा के सामने चिंता के साथ चुनौतियां भी बढ़ जाएगी। महाराष्ट्र में कांग्रेस, शिवसेना और एनसीपी एकजुट रहकर भाजपा को संकट में डालने की कोशिश कर रही है। लेकिन भाजपा भी एक मंजे हुए राजनीतिक खिलाड़ी के तौर पर विपक्ष के हर पैंतरे का जवाब देने के लिए मैदान में डटी हुई है। प्रधानमंत्री मोदी और गृहमंत्री अमित शाह के बार-बार महाराष्ट्र के दौरे पर आने से भाजपा के कार्यकर्ताओं का हौसला बढ़ रहा है तो संसद में शरद पवार की बेटी और एनसीपी की नेता सुप्रिया सुले ने भ्रष्टाचार के मुद्दे पर भाजपा को घेरने की कोशिश की है। सुले ने मोदी के उस बयान का जिक्र किया जिसमें उन्होंने कहा था कि एनसीपी स्वाभाविक रूप से भ्रष्ट पार्टी है। उन्होंने सिंचाई परियोजनाओं और सहकारी बैंकों के भ्रष्टाचार का मुद्दा उठाया था। सुले ने उसी भ्रष्टाचार की जांच कराने की मांग की। अगर यह जांच शुरू होती है तो महाराष्ट्र में भाजपा गठबंधन सरकार में उप मुख्यमंत्री अजित पवार इस जांच के लपेटे में आ जाएंगे। इस तरह के कई मुद्दे विपक्ष के पास हैं जिसे वे चुनाव प्रचार दौरान भाजपा के खिलाफ इस्तेमाल करेंगे। भाजपा के लिए यह भी चिंता का एक विषय है.