गैरभाजपाई पार्टियों में विभाजन के लिए भाजपा का अश्वमेध यज्ञ

देश की गैरभाजपाई पार्टियों में विभाजन के लिए भाजपा का अश्वमेध यज्ञ जारी है. भाजपा ने अपने अश्वमेध यज्ञ के जरिए सबसे पहले कांग्रेस को तोड़ने की रणनीति पर काम किया और इसमें उसे बड़ी सफलता मिली. इसी का नतीजा है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में केंद्र में भाजपा का 2014 से शासन है. भाजपा ने हिंदुत्व के नाम पर कांग्रेस के प्रति नफरत की हवा फैलाई है. कांग्रेस पर भ्रष्टाचार के भी आरोप लगाए गए हैं. यह दीगर बात है कि इसी कांग्रेस से बाहर हुए नेताओं को भाजपा ने अपने साथ जोड़ा है और इसके सहारे ही अपनी राजनीतिक ताकत भी बढ़ा रही है. कांग्रेस के अलावा भाजपा ने उन गैरभाजपाई पार्टियों में भी विभाजन कराने का काम कर रही है जिससे उसे चुनावी राजनीति में जबर्दस्त टक्कर मिल रही है. भाजपा ने अपने अश्वमेध यज्ञ के लिए यह रणनीति तय कर ली है कि उसके सामने जो भी राजनीतिक पार्टी चुनौती देने के लिए खड़ी होगी उसमें विभाजन करके उसे कमजोर कर दिया जाए. भाजपा ने जिस तरह से कांग्रेस को कमजोर करके अपना विजय रथ आगे बढ़ाया है, उसके बाद उसने बिहार में भी प्रयोग किया. राजनीति के क्षेत्र में यह माना जाता है कि अगर बिहार में प्रयोग सफल हुआ तो पूरे देश में विजय पताका फहराना आसान हो जाता है. बिहार में रामविलास पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) में विभाजन कराने के बाद भाजपा ने महाराष्ट्र पर फोकस किया और जिस शिवसेना के साथ लगभग तीन दशकों से सत्ता की दोस्ती कायम थी उसमें भी विभाजन कराकर भाजपा ने बड़ी जीत हासिल कर ली है. शिवसेना में विभाजन ने देश की राजनीति में हलचल पैदा कर दी. इसके बाद भाजपा ने देश की राजनीति के चाणक्य माने जाने वाले शरद पवार की पार्टी एनसीपी में भी विभाजन कराकर बाकी गैरभाजपाई पार्टियों को भी सीधा-सीधा संदेश दे दिया है कि या तो भाजपा के आगे आत्मसमर्पण कर दो या फिर विभाजन के लिए तैयार रहो. वैसे, गैरभाजपाई पार्टियों में विभाजन का खेल 2024 के लोकसभा चुनाव तक शतरंज की चाल जैसा चलेगा. क्योंकि, भाजपा हर हाल में मोदी को तीसरी बार प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बिठाना चाहती है.

 

हिंदुत्व के जाल में फंसी देश की जनता को न तो देश के आर्थिक विकास की संरचना के बारे में पता है और न ही बेरोजगार युवाओं को अपने रोजगार पाने की ललक है. बेकारी में लाचार युवा नारेबाजी में ही अपनी ऊर्जा खर्च कर रहे हैं. किसानों की भी हालत अच्छी नहीं है. देश में जन समस्याओं का अंबार लगा हुआ है जिसका किसी को एहसास नहीं है. आम जनता की आवाज भी नक्कारखाने में तूती की तरह है. ऐसे में भाजपा अपने फायदे के लिए अश्वमेध यज्ञ में व्यस्त है तो यह उसके राजनीतिक सेहत के लिए बेहतर है. यह माना जा रहा है कि भाजपा के अश्वमेध यज्ञ को सफल कराने में केंद्रीय एजंसियां मददगार साबित हो रही हैं. वहीं, गैरभाजपाई पार्टियां अपने विभाजन को बचाने के लिए जद्दोजहद भी कर रही है. बावजूद इसके भाजपा दिल्ली और पंजाब में आम आदमी पार्टी, पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस, उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी, झारखंड में झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) के साथ बिहार में जदयू और राजद को भी विभाजित करने की रणनीति पर काम कर रही है. इन राज्यों में भाजपा का अश्वमेध यज्ञ सफल हो जाता है तो भाजपा के सामने चुनौती देने वाला विपक्ष बचेगा ही नहीं. जबकि लोकतंत्र में विपक्ष का होना बहुत जरूरी है. विपक्ष के बिना सत्तापक्ष राजतंत्र का प्रतिनिधित्व करता है.

 

लोकतंत्र की नींव कमजोर न पड़े इसके लिए दल-बदल विरोधी विधेयक में संशोधन भी किए गए. लेकिन हर कानून की कमजोरी भी पकड़ में आ जाती है और उसका फायदा मिलता है. शायद इसी कमजोरी का लाभ लोजपा और शिवसेना को विभाजित करने में मिला है. इसमें चुनाव आयोग की भी भूमिका मायने रखती है. सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाने के बाद भी जब महाराष्ट्र विधानसभा अध्यक्ष ने जिस तरह से शिवसेना के विभाजन और शिवसेना से अलग होने वाले 37 विधायकों की अयोग्यता के मामले पर फैसला सुनाया तो यह फैसला एक नज़ीर बन गया है. विधानसभा अध्यक्ष ने अपने फैसले का आधार चुनाव आयोग के फैसले को बनाया जिससे उद्धव ठाकरे के बदले असली शिवसेना एकनाथ शिंदे गुट को मिल गई और शिंदे सहित 16 विधायकों की योग्यता कायम रही. विधानसभा अध्यक्ष ने उद्धव गुट के 14 विधायकों को भी अयोग्य नहीं ठहराया है. इस फैसले में कमजोर कानून के पेंच फंसे हुए हैं. लेकिन इस पेंच को किस तरह से सुप्रीम कोर्ट सुलझा पाता है उस पर लंबा समय लग सकता है. बहरहाल, शिवसेना की तरह शरद पवार की एनसीपी पर भी पटकथा लिखी हुई मानी जा रही है. महाराष्ट्र में शिवसेना के बाद एनसीपी पर भी जल्द ही फैसला आएगा. इसमें कोई शक नहीं कि जिस एनसीपी को शरद पवार ने खड़ा किया अब यह उनके भतीजे अजित पवार के हाथ में चली जाएगी. अजित पवार ने भी शिंदे की तरह ही 43 विधायकों को लेकर अलग हो गए हैं और असली एनसीपी पर उनका भी दावा है. विधानसभा में उनके ही गुट का बहुमत है. विधानसभा अध्यक्ष ने शिवसेना के मामले में अपने फैसले में बहुमत वाले मुद्दे पर अपनी मुहर लगाई है.

 

लोकतंत्र में शिवसेना पर फैसला मायने रखता है. इस फैसले से गैरभाजपाई पार्टियों को न तो सिर्फ सतर्क होने की जरूरत है बल्कि शिवसेना की जिन गलतियों को उजागर किया गया है उस तरह की गलतियों को विभाजन से पहले सुधार लेने की आवश्यकता है. पार्टी के संविधान को चुनाव आयोग के पोर्टल पर डालना जरूरी है और संवैधानिक तरीके से चुनाव प्रक्रिया भी पूरी होनी चाहिए. पक्ष प्रमुख की ताकत का भी उल्लेख हो. ऐसी तमाम बातों से गैरभाजपाई पार्टी खुद को मजबूत करती है और ज्यादा से ज्यादा विधायकों को अपने पास रखने में कामयाब होती है तो शिवसेना वाली नौबत नहीं आ सकती है. उद्धव के पास तो अब अपने पिता शिवसेना प्रमुख बाल ठाकरे की विरासत वाली शिवसेना नहीं है. उनको यह विरासत अब बाल ठाकरे से प्यार करने वाले शिवसैनिक ही दिला सकते हैं. यह भले ही राजनीति का हिस्सा हो. लेकिन जिस गैरभाजपाई पार्टी को शिवसेना जैसी स्थिति से नहीं गुजरना है उसे अभी से अपने बचाव में काम करने की जरूरत है. क्योंकि, भाजपा को विभाजन कराने का सफल नुस्खा पता है और जिस तरह से झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को ईडी ने घेर रखा है उससे तो यह लग रहा है कि लोकसभा चुनाव से पहले इन दोनों राज्यों में भाजपा को मनचाहा फल मिल सकता है. पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी और बिहार में नीतीश कुमार को भी भाजपा के अश्वमेध यज्ञ को सफलता से दूर रखने की कोशिश करनी होगी. ममता को यह नहीं भूलना चाहिए कि वह नंदीग्राम सीट से विधानसभा का चुनाव हार गई थीं. भाजपा की इस रणनीति को समझने की जरूरत है. बाद में ममता भबानीपुर सीट से उपचुनाव जीती थीं. नीतीश को भी जातीय जनगणना से ज्यादा खुश नहीं होना चाहिए. भाजपा ने जिस तरह से हिंदुत्व की हवा चला रखी है उससे मोदी को अपना गारंटी कार्ड मजबूत दिख रहा है और यह कार्ड लोकसभा चुनाव में भाजपा का अश्वमेध यज्ञ सफल साबित हो सकता है. कहने का मतलब जातीय जनगणना के समीकरण पर हिंदुत्व भारी पड़ सकता है. लोग जय श्रीराम के नारे लगाने में मस्त हैं. ऐसे लोग सामाजिक विकास की बात नहीं सोचते हैं. लेकिन यह भी सच है कि गैरभाजपाई पार्टियों को अपनी राजनीतिक जमीन बचाते हुए आम जनता के सामने मोदी की तरह ही कोई गारंटी कार्ड रखना पड़ेगा.

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