महाराष्ट्र में राज्य के उपमुख्यमंत्री अजित पवार ने मुस्लिमों को पांच फीसदी आरक्षण देने की मांग करके भाजपा की परेशानी बढ़ा दी है. भाजपा मुस्लिमों को आरक्षण देने के खिलाफ है. राज्य के उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ही नहीं बल्कि केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने बार-बार कहा है कि मुस्लिमों को अलग से आरक्षण नहीं दिया जा सकता है. क्योंकि, संविधान में इसका प्रावधान नहीं है. धर्म के आधार पर मुस्लिमों को आरक्षण नहीं दिया जा सकता है. मुस्लिम आरक्षण को लेकर भाजपा की यह स्पष्ट नीति जानने के बावजूद अजित पवार ने ऐसे समय में मुस्लिम आरक्षण का मुद्दा उठाया है जब एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली भाजपानीत सरकार मराठा आरक्षण और धनगर आरक्षण को लेकर होने वाले आंदोलन को शांत करने का प्रयास कर रही है. दूसरी ओर भाजपा की ओर से 2024 के लोकसभा के चुनावों में जीत की रणनीति पर काम किया जा रहा है ताकि महाराष्ट्र की सभी 48 सीटों पर विजय हासिल करके नरेंद्र मोदी को अगले प्रधानमंत्री के रूप में सुनिश्चित कर दिया जाए. इसके लिए भाजपा अपने सहयोगी दलों के साथ हिंदुत्व का झंडा बुलंद किए हुए है. लेकिन चुनाव से पहले अजित पवार के मुस्लिम प्रेम ने भाजपा को उलझन में डाल दिया है. अगर अजित पवार के दबाव में भाजपा मुस्लिमों को किसी भी तरह का आश्वासन देती है तो इसका असर न सिर्फ महाराष्ट्र में बल्कि दूसरे राज्यों में किस तरह से होगा फिलहाल अभी कुछ भी कहना मुश्किल है. मगर यह तय है कि भाजपा के हिंदुत्व के एजंडे पर इसका प्रतिकूल असर पड़ सकता है. इस समय देशभर के हिंदुओं का नेतृत्व भाजपा कर रही है. हिंदुओं में एक विश्वास पैदा हुआ है कि बावरी मस्जिद ढ़ांचा विध्वंस के बाद भाजपा अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण करा रही है और इसके बाद काशी-मथुरा का भी कार्य पूरा कर लिया जाएगा.
भाजपा पर हिंदुओं का विश्वास जिस तरह का भी हो. अजित पवार अपनी राजनीतिक जमीन कम होने देना नहीं चाहते हैं. इसलिए वह अपने पुराने जनाधार को पकड़े रखने के लिए मुस्लिम प्रेम भी नहीं छोड़ना चाहते हैं. यही वजह है कि उन्होंने मराठा आरक्षण और धनगर आरक्षण आंदोलन के माहौल के बीच मुस्लिम आरक्षण के मुद्दे पर आगे आए हैं ताकि आने वाले चुनावों में उन्हें मुसलमानों का समर्थन मिल सके. हालांकि, जब मुसलमान अजित पवार के साथ जाएंगे तो उसका फायदा भाजपा को भी हो सकता है. क्योंकि, अजित पवार गुट के उम्मीदवार लोकसभा के चुनाव जीतेंगे तो उसका लाभ भाजपा के साथ मोदी को भी होगा. लेकिन इस मुस्लिम तुष्टीकरण से भाजपा को अपने हिंदू वोट बंटने का डर भी सताएगा. इसलिए इस खतरे की आशंका भाजपा को तो होगी ही और ऐसे में मुस्लिम आरक्षण के समर्थन में बात करके भाजपा कोई खतरा मोल लेना नहीं चाहेगी. वैसे, शिंदे के नेतृत्व वाली सरकार में शामिल होकर अजित पवार अपने सपने को पूरा नहीं कर पा रहे हैं. उन्होंने जब अपने चाचा शरद पवार से बगावत की और शिंदे के सरकार में शामिल हुए तो उन्होंने कहा था कि वह मुख्यमंत्री बनने का सपना पूरा करना चाहते हैं. यह उनका दूर का सपना बना हुआ है. उनके समर्थक भी उन्हें मुख्यमंत्री के रूप में देखना चाहते हैं. लेकिन भाजपा के बड़े नेता भी खुलकर बोलते हैं कि अजित पवार का मुख्यमंत्री बनना आसान नहीं है. सिर्फ 45 विधायकों के बल पर यह सपना पूरा नहीं हो सकता है. इसके लिए 145 विधायक की जरूरत है. इस कटु सत्य से अजित पवार भी वाकिफ हैं. इसलिए वह अपनी राजनीतिक जमीन को देखते हुए मुस्लिमों को झूठी दिलासा दिलाकर रिझाने की कोशिश में लगे हैं. जब वह अपने चाचा शरद पवार के साथ एनसीपी में थे तब मुस्लिमों का झुकाव कांग्रेस के साथ एनसीपी की तरफ था. अब एनसीपी में शरद पवार गुट और अजित पवार गुट हो जाने से मुस्लिमों को अपनी ओर खींचने की मजबूरी अजित पवार की बढ़ गई है. क्योंकि, उन्हें पता है कि मुस्लिमों का विश्वास उनमें और शरद पवार में से किसमें ज्यादा है.
इसमें कोई दो राय नहीं कि शैक्षणिक और आर्थिक रूप से मुस्लिम समुदाय भी पिछड़ा हुआ है. इसलिए इस समुदाय के विकास के लिए आरक्षण की जरूरत महसूस की गई. 2014 से पहले महाराष्ट्र में कांग्रेस और एनसीपी की सरकार थी. लोकसभा चुनाव में भाजपा-शिवसेना से शिकस्त मिलने के बाद कांग्रेस-एनसीपी सरकार ने मराठा के साथ मुस्लिमों के आरक्षण के लिए एक अध्यादेश लाया जिसके आधार पर मराठा को 16 फीसदी और मुस्लिमों को 5 फीसदी आरक्षण मिलना था. यह आरक्षण शिक्षा और सरकारी नौकरी के लिए था. मगर यह अध्यादेश अदालत में टिक नहीं पाया. क्योंकि, यह अध्यादेश कानून में परिवर्तित नहीं किया गया था. बांबे हाईकोर्ट ने इस व्यवस्था पर रोक लगा दी थी. लेकिन मुस्लिमों को शिक्षा में पांच फीसदी आरक्षण कायम रखा था. बाद में देवेंद्र फडणवीस के नेतृत्व में भाजपा सरकार ने मराठा आरक्षण के लिए कानून बनाया. लेकिन मुस्लिमों को अनदेखा कर दिया. तब फडणवीस सरकार का हिस्सा शिवसेना भी थी. मराठा आरक्षण का मुद्दा अब सुप्रीम कोर्ट में है. उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली महा विकास आघाड़ी सरकार ने भी मराठा को आरक्षण देने के लिए सक्रिय हुई और फिर से कानूनी तौर पर कमजोर पड़ गई. हालांकि, महा विकास आघाड़ी सरकार के एनसीपी कोटे के अल्संख्यक विकास मंत्री नवाब मलिक ने शिक्षा में 5 फीसदी मुस्लिम आरक्षण लागू करने के लिए कानून बनाने की बात की थी. लेकिन शिवसेना के एकनाथ शिंदे के बगावत करने से महा विकास आघाड़ी सरकार गिर गई और मुस्लिम आरक्षण को लेकर कोई कानून नहीं बन सका. मुस्लिम नेताओं का मानना है कि मुस्लिमों के लिए 5 फीसदी आरक्षण लागू नहीं होने से पिछड़े मुस्लिमों का विकास रूक गया है. तत्कालीन कांग्रेस-एनसीपी सरकार ने 2014 से पहले मोहम्मद उर्र रहमान समिति की रिपोर्ट के आधार पर मुस्लिम समाज की 50 पिछड़ी उपजातियों के विद्यार्थियों को पांच फीसदी आरक्षण देने का निर्णय लिया था और अध्यादेश जारी किया था. इसमें कहीं भी धर्म के आधार पर आरक्षण देने की बात नहीं की गई थी. इस आरक्षण का आधार सिर्फ और सिर्फ पिछड़ापन है. लेकिन भाजपा ने मुस्लिम समुदाय को धर्म से जोड़कर उसे आरक्षण नहीं देने की बात कर रही है.
हिंदुत्व के नाम पर राजनीति करने वाली भाजपा के साथ सरकार में अब एकनाथ शिंदे और अजित पवार भी हैं. एकनाथ शिंदे के बगावत करने से उद्धव ठाकरे की सरकार गिर गई थी. इसलिए एकनाथ शिंदे को मुख्यमंत्री बनने का मौका मिला. लेकिन इस गठबंधन में अजित पवार गुट के शामिल होने को देवेंद्र फडणवीस ने इसे राजनीतिक घटना बताया. अजित पवार को भी उपमुख्यमंत्री के साथ वित्त मंत्री का बड़ा ओहदा मिला. लेकिन जैसे जैसे समय गुजर रहा है अजित पवार खुद को कमजोर महूसस करने लगे हैं. बतौर वित्त मंत्री अजित पवार कोई भी फैसला लेंगे तो उनके फैसले को पहले देवेंद्र फडणवीस देखेंगे फिर उस फैसले को अमल में लाया जाएगा. अजित पवार का मुख्यमंत्री बनने का सपना भी पूरा नहीं हो रहा है. ऐसे में उन्हें लगता होगा कि आने वाले समय में कहीं उनकी अपनी राजनीतिक जमीन ही खिसकी हुई दिखाई दे. शायद यही वजह होगी कि उन्होंने अपने मुस्लिम जनाधार को मजबूत करने की कवायद के लिए मुस्लिम आरक्षण की मांग शुरू की है. वैसे, वह मुस्लिम समुदाय को आरक्षण को लेकर कोई ठोस आश्वासन देने से बचे हैं. उन्होंने यही कहा है कि वह शिक्षा के क्षेत्र में मुस्लिम आरक्षण लागू करना चाहते हैं जिसको लेकर बांबे हाई कोर्ट ने भी सकारात्मक रूख दिखाया था. पर भाजपा का रूख अलग है. भाजपा अब भी मानती है कि मुस्लिम को धर्म के आधार पर आरक्षण नहीं दिया जा सकता है. यह आरक्षण असंवैधानिक है. ऐसे में अजित पवार के लिए मुस्लिम आरक्षण की वकालत करना उनकी राजनीतिक सूझबूझ है. उन्हें एकनाथ शिंदे गुट के मंत्री अब्दुल सत्तार और एनसीपी गुट के मंत्री हसन मुश्रिफ ने मुस्लिमों को आरक्षण देने की राय दी. चूंकि, राज्य में तीन दलों की सरकार है. इसलिए अजित पवार इस मुद्दे पर मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे और उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस के साथ बातचीत करके सुगम रास्ता तलाशने की कोशिश में जुटे हैं. अब देखना है इसमें उन्हें कितनी सफलता मिलती है.