बाल ठाकरे और सावरकर को भारत रत्न नहीं देने के पीछे की राजनीति

महाराष्ट्र के दो सपूत हैं शिवसेना के संस्थापक बाल ठाकरे और हिंदूवादी नेता विनायक दामोदर सावरकर. इन दोनों के विचारों को लेकर भाजपा महाराष्ट्र में शासन कर रही है. भाजपा ने 2019 के अपने चुनावी संकल्प पत्र में सावरकर को भारत रत्न देने का वादा कर चुकी है. भाजपा-शिवसेना की संयुक्त राज्य सरकार ने सावरकर को भारत रत्न देने की मांग की थी. उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली महा विकास आघाड़ी सरकार ने भी सावरकर को भारत रत्न देने के लिए दो बार केंद्र सरकार से सिफारिश की थी. लेकिन भाजपा ने अपना चुनावी वादा अब तक पूरा नहीं किया है. बाल ठाकरे को भारत रत्न देने के बारे में भाजपा कुछ बोल नहीं रही कहा. अब जब इस साल लोकसभा के चुनाव होने वाले हैं तो उससे पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश के पांच महान नेताओं और शख्सियतों को भारत रत्न देने की घोषणा कर दी है. इसमें बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री और समाजवादी नेता कर्पूरी ठाकुर के अलावा भाजपा के वरिष्ठ नेता और पूर्व उप प्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी के साथ देश के दो पूर्व प्रधानमंत्रियों चौधरी चरण सिंह, पीवी नरसिम्हा राव और देश में हरित क्रांति के जनक डॉ. एमएस स्वामीनाथन शामिल हैं. चुनाव से पहले भारत रत्न के लिए नामों की घोषणा को राजनीतिक नजरिए से भी देखा जा रहा है. इसका सबूत बिहार में देखने को मिला. भारत रत्न के लिए कर्पूरी ठाकुर के नाम की घोषणा होते ही नीतीश कुमार न सिर्फ विपक्षियों के इंडिया गठबंधन से अलग हुए बल्कि लालू प्रसाद की पार्टी राजद के साथ सरकार चलाने वाले नीतीश ने भाजपा का दामन थामकर बिहार में अपनी नई सरकार बना ली. इसका लाभ भाजपा को लोकसभा चुनाव में साफ-साफ दिख रहा है. यहां लोकसभा की 40 सीटें हैं और ओबीसी, अति पिछड़ा वर्ग और महादलित वर्ग को भाजपा-जदयू गठबंधन की ओर चुंबकीय प्रभाव से खींचने की कोशिश हो रही है. यह दीगर बात है कि बिहार में यादवों की संख्या सबसे ज्यादा है. लेकिन जिस तरह से कर्पूरी ठाकुर को देश का सर्वोच्च सम्मान देने की घोषणा की गई है उससे बिहार के समाजवादियों के बीच भी चुनावी राजनीतिक समीकरण बदल जाएंगे.

भाजपा इस साल अपने राजनीतिक जीवन का नया इतिहास बनाने की कवायद में है. संसद में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्पष्ट घोषणा कर दी है कि इस बार के लोकसभा चुनाव में भाजपा को 370 और एनडीए को 400 के पार सीटें मिलेगी. इसे मोदी का विश्वास नहीं बल्कि गारंटी के रूप में देखा जा रहा है. मोदी जो बोलते हैं वो होता है. बिहार में सत्ता परिवर्तन कराकर लोकसभा चुनाव के नतीजे का संकेत दे दिया गया है. कर्पूरी ठाकुर के बाद भारत रत्न के लिए जिन नामों की घोषणा की गई है उसके भी राजनीतिक मतलब हैं और यह एक बड़ी राजनीति का समीकरण भी है. इसका विपक्ष को गहराई से मंथन करना चाहिए. मंथन करने में विपक्ष विफल होता है तो राजनीति के मैदान में विपक्ष बहुत पीछे चला जाएगा और भाजपा पर लोकतंत्र की हत्या करने का आरोप बस एक रस्म अदायगी रह जाएगी. भाजपा का दक्षिण भारत में जनाधार कमजोर है और वहां अपना जनाधार मजबूत करने के लिए वह लगातार कोशिश कर रही है. किसानों को भाजपा अब भी पूरी तरह से खुश नहीं कर पायी है. राम मंदिर के निर्माण के उत्साह से भाजपा गदगद है. लेकिन भाजपा के अंदर कुछ इस तरह का डर है जिसको दूर करने के लिए कुछ प्रयोग किए जा रहे हैं. भाजपा ने कांग्रेस को काफी हद तक कमजोर कर दिया है. महाराष्ट्र में कांग्रेस बिखर रही है. विधायक और बड़े नेता इस्तीफा दे रहे हैं. अब कांग्रेसियों के मन को बदलने का भी काम किया जा रहा है और भाजपा को भरोसा हो रहा है कि कांग्रेसी वोटर उसकी ओर आ रहे हैं जो भाजपा के नए इतिहास बनाने में सहायक साबित हो सकते हैं. किसानों को खुश करने के लिए पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह को भारत रत्न देने की घोषणा की गई. उनकी किसान नीति से मोदी प्रभावित रहे हैं और उनकी कुछ नीति को मोदी ने अपने कार्यकाल में लागू करने का प्रयास किया है. वैसे, चौधरी चरण सिंह भी कांग्रेस विरोधी थे और इनके नाम पर भाजपा अपना राजनीतिक लाभ देख रही है. भाजपा को लगता है कि लोकसभा चुनाव में उसे किसानों का वोट मिलेगा और ये किसान भी उसके इतिहास रचने में सहायक साबित होंगे.

भाजपा कांग्रेस को कमजोर करने और कांग्रेसियों को अपनी ओर खींचने में काफी सफल रही है. इसलिए कांग्रेस के जो नेता अपने आलाकमान से खुश नहीं थे वैसे नेताओं को भाजपा ने सत्ता में भी सम्मान वाला ओहदा दिया है और इसका फायदा भी भाजपा को मिला है. कांग्रेसी नेता प्रणव मुखर्जी को राष्ट्रपति पद के साथ भारत रत्न से भी सम्मानित किया गया था. इस बार देश से सर्वोच्च सम्मान के जरिए भी भाजपा अपना खेल खेल रही है. कांग्रेसी और पूर्व प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव को भारत रत्न देने की घोषणा से काफी कुछ समझा जा सकता है. यह सबको याद होगा कि जब अयोध्या में बाबरी मस्जिद ढ़हाया जा रहा था तब देश के प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव थे. उनके बारे में कहा जाता है कि बाबरी मस्जिद को ढ़हाए जाने की भाजपा की योजना में वह कथित रूप से शामिल थे. इसलिए उस वक्त वह गूंगा प्रधानमंत्री साबित हुए थे. लेकिन उन्होंने उस वक्त अपने विरोधियों से यह भी कहा था कि उन्हें भी राजनीति आती है. उन दिनों कांग्रेस में उन्हें दरकिनार करने की कोशिश हो रही थी और वह भाजपा के साथ मिलकर अपनी हिंदूवादी नीति को भी चुपके से लागू करने में लगे हुए थे. कांग्रेस की कोशिश हो रही थी कि बाबरी मस्जिद का लाभ भाजपा को न मिले. लेकिन नरसिम्हा राव ने खेल ही उलटा कर दिया था. भाजपा को राजनीतिक फायदा मिला और अब भाजपा ने भारत रत्न से नरसिम्हा राव को सम्मानित करने की घोषणा कर दी है जिससे दक्षिण के दो राज्यों में भाजपा को अपना वोट बैंक मजबूत होता दिख रहा है. इस बाबरी मस्जिद के लिए भाजपा ने अपने नेता लालकृष्ण आडवाणी को भी भारत रत्न से सम्मानित करने की घोषणा की है. उनके योगदान को भुलाया नहीं जा सकता है. लालकृष्ण आडवाणी की रथ यात्रा का अपना इतिहास है और इस रथ यात्रा में मोदी भी शामिल थे. आज जब मोदी ने राम मंदिर का निर्माण कराया और प्रभु राम की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा की है तो वह लालकृष्ण आडवाणी को कैसे भूल सकते थे. इसी राम मंदिर के बल पर हिंदुओं की भावनाओं के साथ वह लोकसभा में 400 के पार जाने का अपना ख्वाब पूरा करना चाहते हैं. इस राम मंदिर का सपना बाल ठाकरे ने भी देखा था और बाबरी मस्जिद ढ़हाए जाने की जिम्मेदारी जब भाजपा लेने को तैयार नहीं थी तब बाल ठाकरे ने अपने शिवसैनिकों की पीठ थपथपाई थी. हिंदू नेता के रूप में उनकी अलग छवि बन गई थी. लेकिन बाद में इस मामले को भाजपा ने राजनीतिक रूप से लपक लिया और आज उसका राजनीतिक लाभ उसे मिल रहा है. बाल ठाकरे को भारत रत्न देने के लिए केंद्र सरकार उत्साहित नहीं है जबकि महाराष्ट्र में शिवसेना (शिंदे गुट) के साथ भाजपा सरकार चला रही है और उनके विचारों के सहारे लोकसभा का चुनाव भी लड़ने जा रही है. यह सच है कि बाल ठाकरे के हिंदूवादी विचारों के साथ भाजपा का दशकों पुराना राजनीतिक रिश्ता है जिसके बल पर भाजपा ने अपनी राजनीतिक जमीन मजबूत की है. लेकिन महाराष्ट्र में बाल ठाकरे के बिना भाजपा के लिए राजनीति करना संभव नहीं है. बावजूद इसके फिलहाल भाजपा भारत रत्न जैसे सम्मान देकर बाल ठाकरे के कद को और ऊंचा करना नहीं चाहती है. वह किसी ऐसे मौके की तलाश में है जब उसे सिर्फ और सिर्फ बाल ठाकरे के नाम की जरूरत होगी तब उन्हें देश के सर्वोच्च सम्मान से नवाजा जा सकता है. यह मौका महाराष्ट्र विधानसभा का चुनाव हो सकता है. बाल ठाकरे के समर्थकों का मानना है कि उन्हें भी भारत रत्न का सम्मान मिलना चाहिए. इस पर भाजपा की ओर से कोई मांग नहीं हो रही है. क्योंकि, इस बारे में अभी भाजपा की राजनीतिक इच्छा शक्ति शून्य है. माना जा रहा है कि महाराष्ट्र में बाल ठाकरे और सावरकर को तब भारत रत्न का सम्मान दिया जाएगा जब भाजपा के हाथ से महाराष्ट्र फिसलने की स्थिति में होगी. पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने तो भारत रत्न के लिए सावरकर के नाम की सिफारिश की थी. मगर तत्कालीन राष्ट्रपति केआर नारायणन ने इसे ठुकरा दिया था. इसके बाद मोदी ने सावरकर के नाम को आगे नहीं बढ़ाया जबकि महाराष्ट्र भाजपा और उद्धव ठाकरे ने सावरकर को भारत रत्न देने की कई बार मांग की है. महाराष्ट्र में भाजपा ने मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के नेतृत्व में बाल ठाकरे के हिंदूवादी विचारों को ही तरजीह दी है. लेकिन बाल ठाकरे और उनके विचारों को मानने वाले मोदी उन्हें भारत रत्न से कब सम्मानित करेंगे ऐसे दिन देखने के लिए महाराष्ट्र की जनता भी धैर्यपूर्वक इंतजार कर रही है.

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